Advertisment

माँ-बेटी की जोड़ी: राष्ट्रीय चैंपियन बनीं साहना कुमारी और पवना नागराज

मिलिए साहना कुमारी और उनकी बेटी पवना नागराज से, जो दोनों राष्ट्रीय चैंपियन हैं! इस लेख में जानिए कैसे एक माँ ने अपनी बेटी को एथलेटिक्स में सफलता प्राप्त करने में मदद की

author-image
Vaishali Garg
New Update
Sahana Kumari and Pavana Nagaraj Become National Champions

Sahana Kumari and Pavana Nagaraj Become National Champions: इस हफ्ते हम मदर्स डे मना रहे हैं, ऐसे में आइए उन मजबूत मां-बेटी की जोड़ी को याद करें जिन्होंने साथ मिलकर असाधारण चीजें हासिल की हैं। मिलिए साहना कुमारी और उनकी बेटी पवना नागराज से, जो दोनों राष्ट्रीय चैंपियन हैं। 

Advertisment

माँ-बेटी की जोड़ी: राष्ट्रीय चैंपियन बनीं साहना कुमारी और पवना नागराज

खेल प्रतिभा का खानदान

प्राकृतिक प्रतिभा, ओलंपियन और राष्ट्रीय रिकॉर्डधारी पवना नागराज ने साबित किया है कि उनके परिवार में खेल प्रतिभा चलती है। उन्होंने दुबई में अंडर-20 एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में महिला लंबी कूद स्पर्धा जीतकर यह दिखाया। उनके माता-पिता के मार्गदर्शन में यह उपलब्धि हासिल हुई। 

Advertisment

पवना नागराज, 2010 के राष्ट्रीय अंतर-राज्य पुरुष 100 मीटर चैंपियन बीजी नागराज और वर्तमान महिला राष्ट्रीय ऊंची कूद रिकॉर्ड धारक साहना कुमारी की 18 वर्षीय बेटी हैं। पवना ने 6.32 मीटर की व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ लंबी कूद के साथ एशियाई अंडर-20 स्वर्ण पदक जीता।  

मां-बेटी का खास बंधन

साल 2005 में मार्च महीने में जब पवना की माँ साहना कुमारी नई दिल्ली में इंटर रेलवे मीट में भाग ले रही थीं, तब पवना उनकी गर्भ में एक महीने की थीं। साहना इस इवेंट में भारत की शीर्ष प्रतियोगी बनीं। उन्होंने 2012 में लंदन ओलंपिक में भाग लिया और वर्तमान में वह सीनियर राष्ट्रीय रिकॉर्ड धारक हैं। पवना अब अपनी माँ के नक्शेकदम पर चल रही हैं। उन्होंने 2021 में गुवाहाटी में लड़कियों की अंडर-16 स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतते हुए 1.73 मीटर का नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया।

Advertisment

खेल विरासत का बोझ

यह मानना स्वाभाविक था कि पवना के पिता, नागराज, जो 100 मीटर में पूर्व राष्ट्रीय चैंपियन हैं, की बेटी भी एक बेहतरीन एथलीट होगी। साहना साई मीडिया के साथ साझा करती हैं, "जब वह छोटी थी, तो मुझे उसे अपने अभ्यास सत्रों और कुछ प्रतियोगिताओं में भी ले जाना पड़ता था।" "2009 में बैंगलोर में एशियाई एथलेटिक्स ग्रां प्री में रजत पदक जीतने के बाद, पवना मैदान में दौड़ी और खुद ही लैंडिंग बेड में कूदने लगी।" साहना याद करती हैं, "तभी उसने पहली बार हाई जंपिंग में भी प्रतिस्पर्धा करने की इच्छा जताई थी।" 

माँ का निरंतर समर्थन

Advertisment

पवना कहती हैं, "मेरे माता-पिता दोनों को भारत और एशिया में आयोजित प्रतियोगिताओं से पदक मिले हैं, और वे सभी हमारे घर पर प्रदर्शित हैं। मुझे हमेशा यह लगता रहता है कि मुझे कम से कम वही पदक तो घर लाने ही चाहिए।" शायद उन्हीं पदकों से भी ज्यादा। साहना का मानना है कि, "मेरे पति पवना को लगातार याद दिलाते रहते हैं कि उन्हें खुद को चुनौती देने की जरूरत है। वो उससे कहते रहते हैं कि क्योंकि हमारे परिवार में पहले से ही एक ओलंपियन है, तो उसे और भी अच्छा प्रदर्शन करने की जरूरत है।"

पवना के अनुसार, उनकी माँ ने उन्हें पेशेवर रूप से काफी समर्थन दिया है। उनकी माँ हमेशा उनका समर्थन करती रही हैं और प्रतियोगिताओं में उनके साथ जाती हैं। उनकी माँ की उपस्थिति और प्रोत्साहन ने उन्हें इतना आगे आने में मदद की है। वह खुद को वास्तव में भाग्यशाली मानती हैं क्योंकि उनका मानना है कि ज्यादातर एथलीटों को ऐसा अनुभव नहीं होता है। पवना नागराज 2018 से खेलो इंडिया छात्रवृत्ति योजना की एथलीट रही हैं। 

लक्ष्य और भविष्य की योजनाएं

पवना का कहना है कि वह आने वाले वर्षों में अंडर-18 के निशान और अंततः जूनियर रिकॉर्ड को पार करना चाहती हैं। फिलहाल उनके पास अंडर-14 और अंडर-16 का राष्ट्रीय रिकॉर्ड है। एक बहुत सफल एथलीट की बेटी होने के नाते उन पर अतिरिक्त दबाव भी रहता है। 

लेकिन जैसा कि पवना कहती हैं, "मुझे लगता है कि दबाव एक अच्छी चीज है। यह मुझे कड़ी मेहनत करने और बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करता है।" इस मजबूत मां-बेटी की जोड़ी की कहानी निश्चित रूप से प्रेरणादायक है और यह बताती है कि माता-पिता का समर्थन किसी भी बच्चे की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

साहना कुमारी और पवना नागराज साहना कुमारी Pavana Nagaraj Sahana Kumari
Advertisment