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हमारे देश के नेता लगातार बात करते है कि महिलाओं का प्रतिनिधित्व राजनीति में बढ़ना चाहिये लेकिन हक़ीक़त में हम देखते है कि ऐसा है नही. आमतौर पर हम देखते है कि ज्यादातर नेताओं की कथनी और करनी में अंतर है. जो वह कहते है और जो वह करते है उसमें फर्क्र है. यह हम साफ तौर पर देख सकते हैं कि नेता हमेशा महिलाओं को टिकट देने के बात करते है लेकिन जब चुनाव आते है तो देखने में यही आता है कि महिलाओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. आइये जाने की महिलाओं का राजनीति में आना क्यों जरुरी है.
महिलायें अगर ज्यादा से ज्यादा पार्लियामेंट या विधानसभा में आएँगी तो वह बच्चों और महिलाओं से संबंधित मुद्दों को आसानी से उठा सकेंगी. अगर हम सेनेट्री नैपकिन वाले मामलें को ही देखे तो उस पर टैक्स हटाने में सरकार ने काफी समय लगा दिया. लेकिन अगर महिला सदस्यों के संख्या पार्लियामेंट में ज्यादा होती तो मजबूरन ही सरकार को यह निर्णय काफी पहले लेना पड़ता.
ज्यादा महिलाओं का राजनीति में रहना मतलब आधी आबादी का मज़बूत होना. अगर महिलायें राजनीति में होगी तो बाक़ी की महिलाओं को अपने आप ताक़त मिलेंगी. इसके साथ ही वह फैसले जो लेंगी वह महिलाओं के हित में होगें क्योंकि वह महिलाओं के मुद्दों के बेहतर तरीक़े से समझ सकती है.
अगर सत्ता में महिलायें ज्यादा होगी तो हम मान सकते है कि सत्ता संवेदनशील है. महिलायें आमतौर पर पुरुषों से ज्यादा संवेदनशील होती है. इसलिये अगर हमें देश में संवेदनशीलता देखनी है तो ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को हमें चुनकर भेजना चाहियें.
महिलाओं के राजनीति में आने का मतलब है कम भष्टाचार. कुछ देशों में किये गये सर्व से पता चलता है कि महिलायें पुरुषों की अपेक्षा कम भष्टाचारी होती है. भारत जैसे देश में जहां हम राजनीति में और सरकार में भारी भष्टाचार देखते है वहां के लिये यह जरुरी है कि महिलायें राजनीति में आयें ताकि हम भष्टाचार को कम कर सकें.
महिलाओं का राजनीति में आना इसलिये भी जरुरी है कि इससे महिलाओं के ख़िलाफ अपराधों में भी काफी हद तक कमी आयेंगी. अभी महिलाओं के यौन उत्पीड़न के जो मामलें सामने आते है उसमें देखने में आता है कि पुरुष राजनेता उतनी संवेदनशीलता नही दिखाते है या फिर इन मामलों में सख़्त कानून बनाने से बचते है. लेकिन अगर हम महिलाओं की ताक़त ज्यादा होगी तो महिलाओँ के ख़िलाफ होने वाले अपराधों में सख़्त से सख़्त प्रावधान आसानी से करवायें जा सकते है.
महिलायें बच्चों और ख़ुद से संबंधित मुद्दों को बेहतर तरीक़े से उठा सकती है
महिलायें अगर ज्यादा से ज्यादा पार्लियामेंट या विधानसभा में आएँगी तो वह बच्चों और महिलाओं से संबंधित मुद्दों को आसानी से उठा सकेंगी. अगर हम सेनेट्री नैपकिन वाले मामलें को ही देखे तो उस पर टैक्स हटाने में सरकार ने काफी समय लगा दिया. लेकिन अगर महिला सदस्यों के संख्या पार्लियामेंट में ज्यादा होती तो मजबूरन ही सरकार को यह निर्णय काफी पहले लेना पड़ता.
महिलाओं का सशक्तिरण होगा
ज्यादा महिलाओं का राजनीति में रहना मतलब आधी आबादी का मज़बूत होना. अगर महिलायें राजनीति में होगी तो बाक़ी की महिलाओं को अपने आप ताक़त मिलेंगी. इसके साथ ही वह फैसले जो लेंगी वह महिलाओं के हित में होगें क्योंकि वह महिलाओं के मुद्दों के बेहतर तरीक़े से समझ सकती है.
महिलायें ज्यादा संवेदनशील होती है-
अगर सत्ता में महिलायें ज्यादा होगी तो हम मान सकते है कि सत्ता संवेदनशील है. महिलायें आमतौर पर पुरुषों से ज्यादा संवेदनशील होती है. इसलिये अगर हमें देश में संवेदनशीलता देखनी है तो ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को हमें चुनकर भेजना चाहियें.
कम भष्टाचार
महिलाओं के राजनीति में आने का मतलब है कम भष्टाचार. कुछ देशों में किये गये सर्व से पता चलता है कि महिलायें पुरुषों की अपेक्षा कम भष्टाचारी होती है. भारत जैसे देश में जहां हम राजनीति में और सरकार में भारी भष्टाचार देखते है वहां के लिये यह जरुरी है कि महिलायें राजनीति में आयें ताकि हम भष्टाचार को कम कर सकें.
महिलाओं के ख़िलाफ अपराध कम होगें
महिलाओं का राजनीति में आना इसलिये भी जरुरी है कि इससे महिलाओं के ख़िलाफ अपराधों में भी काफी हद तक कमी आयेंगी. अभी महिलाओं के यौन उत्पीड़न के जो मामलें सामने आते है उसमें देखने में आता है कि पुरुष राजनेता उतनी संवेदनशीलता नही दिखाते है या फिर इन मामलों में सख़्त कानून बनाने से बचते है. लेकिन अगर हम महिलाओं की ताक़त ज्यादा होगी तो महिलाओँ के ख़िलाफ होने वाले अपराधों में सख़्त से सख़्त प्रावधान आसानी से करवायें जा सकते है.