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अपनी कहानी बताएं: चार लेखिकाएं उन चुनौतियों की बात कर रही है जिसका उन्होंने सामना किया

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Swati Bundela
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किरण मनराल, अपूर्वा पुरोहित, माधुरी बनर्जी और मेघना पंथ ने इस बात पर चर्चा की कि देश में और अधिक लेखिकाओं की आवश्यकता पहले से अब ज्यादा क्यों है. उन्होंने बताया कि किस तरह से मौजूदा और भविष्य की लेखिकायें काम कर सकती है. वार्तालाप की महत्वपूर्ण चर्चा यहां बताई गई है.

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हमें और अधिक महिला लेखिकाओं की आवश्यकता क्यों है?



इस बात पर प्रकाश डाला गया कि देश भर में महिलाएं आज भी लिखने से कैसे अपने आप को दूर रखती है, वह भी पितृसत्ता की वजह से. वे पूर्णतावादी बनना चाहती हैं. तो वो इस वजह से आपने आप को लिखने से रोकती हैं. लेखन पेशे के रूप में नहीं देखा जाता है. कई लोगों के लिए, पेशे के रूप में लिखना अभी भी काफी अच्छा नहीं माना जाता है.

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पैनल ने लेखन, अभिनय, निर्देशन, कॉर्पोरेट, राजनीति इत्यादि जैसे व्यवसायों में दृश्यता के मामले में अधिक महिलाओं को रखने पर जोर दिया. समाज बेटियों को उनका हक़ सही तरह से नही दे रहा है. इसलिए लड़किया, लड़को की तुलना में अपनी जगह कम मांगती है जिसके लायक वह होती भी है. इसलिये पैनल मानता है कि अपनी जगह को मांगने के लिये यह जरुरी है कि लड़कियां लिखें.

हमें वुमेंन राइटर्स फेस्ट की आवश्यकता क्यों है?

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चर्चा में वुमेंन राइटर्स फेस्ट की जरुरत का समर्थन सभी न किया. इस तरह के इवेंट पेशेवर लेखन, मातृत्व, नारीवाद, कार्यबल में महिलायें, पेरेंटिंग आदि पर विषयों पर संवाद शुरू करने और अपना दृष्टिकोण पेश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है.



वार्तालाप में स्टिरियोटाइप की भी बात हुई जो अभी भी किताबों से टेलीविजन से थियेटर और फिल्मों तक महिला किरदार को लेकर है. हालांकि, पैनल इस बात पर सहमत था कि कुछ मजबूत महिला पात्रों की वजह से स्थिति बदल रही है. हालांकि, उनका मानना यह भी है कि जगह सीमित है और उसका पूरी तरह से उपयोग नही किया जाता है.
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इसके अलावा, विश्वसनीयता का विषय, जो केवल पुरुष लेखकों को ध्यान में रखकर लाया गया है. पुरुष लेखकों को जो मदद मिलती है वह महिला लेखिकाओं की तुलना में कही अधिक है. साहित्य से परे एक पूर्वाग्रह भी है.

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पैनल ने महत्वाकांक्षी लेखिकोंओं को सलाह देते हुये बताया कि कैसे शुरू करना है, उन्हें किस तरह से परिभाषित करने की आवश्यकता है ताकि अधिकतम फायदा उठाया जा सकें.

मार्केटिंग

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मार्केटिंग की लड़ाई और पीआर पर भी चर्चा की गई. पुरुष लेखकों की मार्केटिंग कितनी अच्छी तरह की जाती है और महिला लेखिकाओं को अपनी पहचान बनाने के लिये किस तरह से संघर्ष करना पड़ता है

लेबल से खुद को मुक्त करना

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चारों ने अपनी किताबों के बारे में बात की और उनकी शैली, पुस्तक कवर, ब्रांडिंग और स्लॉटिंग के नियमों के बारे में भी बात की. उन्होंने बताया कि किस तरह की भावना पैदा होती है जब आपको कैटगराइज़ड किया जाता है और किस तरह का कठिन परिश्रम किया जाना चाहिये ताकि आपकी बात को सुना जा सकें.



पैनल ने इच्छुक लेखिकाओं से कहा कि वह लिखना जारी रखें. "आपको लिखने से कोई भी चीज़ न रोक पायें. पैनल ने कहा, “बस अपनी कहानी बताओ ".
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