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कोटा में बच्चों द्वारा की गयी आत्महत्या की ख़बरों को सुनकर मै अपने आप को लिखने से नही रोक पायी।बच्चो के साथ जो कुछ हो रहा है ,वह बहुत ही दुखद है।मेरा उद्देश्य किसी को ठेस पहुँचाना नही है, बस इस समस्या से कैसे निकला जाये उसका हल ढूँढ रही हूँ।
आरक्षण की बेड़ियों में जकड़ा है देश,
बच्चों के साथ ये कैसा है अत्याचार ,
दिल के टुकड़े जुट जाते है अपने लक्ष्य में,
कुछ डटे रहते है, कुछ मासूम दुनिया से चले जाते है
क़सूरवार कौन है उनका!!!
किससे माँगू जबाव उनकी ज़िंदगी का,
वोटों की राजनीति ने बदल दी है इस देश की तक़दीर,
पहले दूसरों ने बनाया ग़ुलाम और अब,
अपने ही ग़ुलाम बना रहे है इस देश को,
जातियों की खाई बढ़ती जा रही है,
कोई पूछे इन राजनेताओं से क्षण भर,
इतने साल काफ़ी नही थे देश को बाँधने में
अब तो आज़ाद कर दो, हमको माफ़ कर दो।