Advertisment

इम्तिहान के प्रैशर सकारात्मक रखें बच्चों के लिए बोझ ना बनाएं

author-image
Swati Bundela
New Update










दसवीं का इम्तिहान देने की तैयारी कर रहा तरुण पढ़ाई में औसत था पर गायन और चित्रकारी में बेहद अच्छा था पर मैथ्स के सवाल उसके लिए जी का जंजाल थे और विज्ञान भी उसके बस की बात नहीं थी।हालांकि ऐसा होना सामान्य है हर एक व्यक्ति अलग होता है फिर रुचियों का अलग होना भी तो स्वाभाविक ही है। पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में उच्च पदासीन उसके  माता-पिता के लिए ये स्वीकारना काफी शर्मनाक बात थी कि उनका बेटा पढ़ाई में मन ना लगाकर इन बेकार के कामों में मन लगा रहा है। उनको ये नहीं समझ में आ रहा था कि तरुण पढ़ाई से जी नहीं चुरा रहा बल्कि कुछ विषय उसकी बुद्धि क्षमता से बाहर हैं और जो विषय  उसकी रुचि के हैं और वो बेहतरीन प्रदर्शन कर सकता है उसको वो नहीं करने देना चाहते थे।



तरुण के पिता का कहना था कि "गायन और चित्रकारी भी कहीं लड़कों के काम होते हैं और पैसा तो इन कामों से कैसे कमा सकते हैं और हमारी इज्जत का क्या होगा नाक कट जाएगी हमारी तो..हम कैसे किसी को कहेंगे कि हमारा बेटा गायक और चित्रकार है और जब लोग पूछेंगे तो ये काम बताएंगे क्या?



"तुम तो पढ़ाई में मन लगाओ बस जिंदगी उसी से बनती है इनसे कमाओगे क्या और खाओगे क्या?जिंदगी भर क्या हम ही तुमको खिलाते रहेंगे?"



तरुण कभी सफाई में कुछ कहने की कोशिश करता तो माता-पिता दोनों भावुक हो जाते



"माँ-बाप हैं हम तुम्हारे जन्म दिया है तुमको ,हमारे प्रति भी तुम्हारा कोई फर्ज बनता है कि नहीं? माता-पिता का कर्जा तो उतारना ही पड़ता है सबको?तुम भी सब कुछ भूलकर बस पढ़ाई में लग जाओ 95%से कम मार्क्स नहीं आने चाहिए।माँ-बाप की अपेक्षाओं पर न खरे उतर सके तो जीवन में क्या करोगे।"



एक बार तरुण ने फिर कहने की कोशिश की



"पर पापा मेरा इतने ज्यादा मार्क्स लाना तो संभव ही नहीं है.. मैं नहीं हूँ उतना मेधावी।"



"तुम बस आलस और कामचोरी के मारे हो और कुछ नहीं मेहनत से तो इंसान क्या न कर ले और एक हमारे सुपुत्र को देखो इतनी सुख-सुविधाएं मिलने के बावजूद भी मेहनत करने मात्र से घबरा रहे हैं।"



"नहीं पापा ऐसा नहीं है।"



"ऐसा ही है और अब बहस करने की बजाय पढ़ने बैठो उसी से तुम्हारा भला होगा।"



तरुण पढ़ने चला गया पर मन मे इतना प्रेशर इतनी घबराहट लिए हुए पढ़ता रहता फिर इम्तिहान भी ठीक हुए पर रिजल्ट घोषित होने के ठीक पहले उसे घबराहट सी महसूस होने लगी अगर अच्छा परसेंटेज न ला सका तो पापा-मम्मी क्या कहेंगे उनकी तो नाक कट जाएगी सबके सामने।



और रिजल्ट वाले दिन वही हुआ जिसका उसे डर था उसके पैंसठ प्रतिशत ही मार्क्स आए थे।



शाम तक भी जब तरुण घर नहीं पहुँचा तो उसके पापा पहले तो गुस्सा हुए फिर चिंतित होकर उसके दोस्तों को फोन मिलाने लगे।पर कहीं से भी ठीक जवाब न मिलने पर पुलिस थाने पहुंचे और बाद में बहुत ढ़ूंढने पर तरुण उन्हें एक पुलिया के पास बैठा हुआ मिल गया जो सुसाइड नोट लिखकर बैठा अंधेरा होने का इंतजार कर रहा था कि कब जगह सुनसान हो और वो छलांग लगा कर खुद भी परेशानियों से मुक्त हो जाए और उसके माता पिता भी चैन से रह पाएंगे ना वो होगा ना उन्हें शर्मिंदगी होगी।



सुसाइड नोट पढ़कर पिता की रूह तक काँप गई कि कहीं थोड़ी देर हो जाती तो......



ये सिर्फ एक घटना है पर ऐसे कई तरुण हमारे आस-पास हैं जिनको मदद की जरूरत है अगर कोई बच्चा किन्हीं विषयों में कमजोर है नहीं समझ पा रहा है तो उसे स्वीकार करिए इसमें शर्म नहीं बुद्धिमानी है क्योंकि बच्चे में आप एक्स्ट्रा बुद्धि तो डाल नहीं सकते बुद्धि जितनी है उतनी ही रहेगी तो कम से कम इन बातों से बच्चे के मन पर अनावश्यक दबाव ना डालें कि तुमको टॉपर तो होना ही है। आज कितने बच्चे हैं जो इंजीनियरिंग डॉक्टर के कैरियर से हटकर भी नाम कमा रहे हैं संगीत,लेखन,चित्रकारी इत्यादि में।तो लकीर के फकीर बने रहने से कोई फायदा नहीं बल्कि घाटा ही है ऐसे बच्चे रट्टा मारकर अच्छे नंबर दबाव में ले भी आए तो अपने प्रोफेशन के साथ न्याय कर पाएंगे क्या? और इन्ही मानसिक दबावों और परेशानियों के चलते बच्चे गलत कदम लेे लें तो क्या आप वो बर्दाश्त कर सकेंगे।



दरअसल शिक्षा तो हमें सभ्य बनाने के लिए जरूरी है। इसलिए हमारे देश में शुरू से ही शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है। प्राचीन समय में शिक्षा प्रणाली सरल थी। इसके तनावपूर्ण होने का भी कोई संकेत नही मिलता है। वर्तमान में शिक्षा को चुनौतीपूर्ण और काँपिटिशन बेस्ड बना दिया गया है। परिणाम , पर्सेंटेज को ज्यादा महत्व दिया जाता है। जिस कारण छात्रों पर अच्छा  प्रदर्शन और टॉप करने के लिए दबाव रहता है। इसे ‘शैक्षणिक तनाव’ के रूप में जाना जाता है।

तो मेरी आप सबसे यही गुजारिश रहेगी कि अगर आप भी अपने बच्चों में कुछ बदलाव देखें जैसे कि पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित न कर पाना, अक्सर स्कूल से कॉलेज से छुट्टी लेना।अनिद्रा, भ्रम, चिंता, डर, चिड़चिड़ापन, घबराहट तो उन्हें डाँटने की बजाय उनसे बात करें उनकी मदद करें उनको बताएं कि परिणाम कुछ भी हो तुम हमेशा हमारे बच्चे ही रहोगे और हमारा प्यार कभी नहीं बदलेगा।



हालांकि थोड़ा प्रैशर देना चाहिए वो अच्छा है टीन एज बच्चे को हमारी गाइडेंस की बहुत जरूरत होती है पर ये प्रैशर दूसरों से तुलनात्मक या फिर मानसिक बोझ नहीं बनना चाहिए बल्कि मार्गदर्शन की तरह होना चाहिए कि बच्चे समझें कि हमें मेहनत करनी है एक लक्ष्य लेकर चलें जो असाधारण ना हो बल्कि प्रैक्टिकल हो अगर बच्चे की बुद्धि असाधारण है और पढाई में बहुत अच्छा है जिम्मेदारी से पढ़ रहा है तो उस पर अनावश्यक भार अपनी आकांक्षा का ना डालें।



उनके दोस्त बनें उनसे कहें , बताएं कि वो आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं किसी भी अन्य चीज या व्यक्ति से।

तुलना ना करें बच्चे के अपने भाई बहन से और दोस्तों से तो बिल्कुल भी नहीं।अपनी याद करें क्या आप और आपके सभी भाई बहन एकदम एक जैसे होशियार थे तो जब एक माता पिता के सारे बच्चे एक जैसे नहीं होते तो अन्य से तुलना बेमानी है।



एक टाईम टेबल बनाएं बच्चे के साथ खुद का भी क्योंकि आप को भी उसके साथ मेहनत करनी होगी पता चला बच्चे पढ़ाई करने बैठे और आप तेज आवाज में टीवी खोलकर बैठे हैं।



सैशन के पहले दिन से रिवीजन करने की आदत बच्चों में डालें। पहले छोटे छोटे लक्ष्य रखें और धीरे धीरे उन्हें बढ़ाएं।

ऊँचे पर्सेंटेज के लक्ष्य के बजाय हर टॉपिक को समझकर पढने और सीखने की आदत बच्चों में डालें।



जब कोई टॉपिक अच्छी तरह समझ आता है तो आप इम्तिहान में बेशक उसको बढ़िया तरह से एक्सप्लेन कर सकते हैं।

बच्चों को बताए कि जब उनको ऐसा लगे कि प्रैशर अब झेला नहीं जा पा रहा तो वो आपसे बात करके हमेशा आपकी मदद ले सकते हैं और एक छोटा सा ब्रेक वो हमेशा ले सकते हैं चाहे वो एक चॉकलेट बार खाने जितना छोटा ही क्यों न हो या फिर एक जोक सुनने जितना छोटा, टॉम एंड जैरी का एक छोटा सा एपीसोड देखकर बच्चे फ्रैश हो सकते हैं और फिर से तन्मयता और ऊर्जा से पढ़ाई शुरू कर सकते हैं।





तो मेरी आप सबसे यही गुजारिश रहेगी कि अगर आप भी अपने बच्चों में कुछ बदलाव देखें जैसे कि पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित न कर पाना, अक्सर स्कूल से कॉलेज से छुट्टी लेना।अनिद्रा, भ्रम, चिंता, डर, चिड़चिड़ापन, घबराहट तो उन्हें डाँटने की बजाय उनसे बात करें उनकी मदद करें उनको बताएं कि परिणाम कुछ भी हो तुम हमेशा हमारे बच्चे ही रहोगे और हमारा प्यार कभी नहीं बदलेगा।



बस अपनी तरफ से भरसक प्रयास जरूर करो पर चिंता को मन से हटाकर।





सखियों आपके विचारों का स्वागत रहेगा आपको मेरा ये ब्लॉग कैसा लगा कमेंट करके जरूर बताएं।




©स्मिता सक्सेना










पेरेंटिंग
Advertisment