हमारे समाज में बहुत सी धारणायें औरतों के लिए बनी है उनमें से एक है कि जब भी दो या दो से ज़्यादा औरतें आपस में बात कर रही है तो वे गॉसिप ही कर रही है। उनके बीच कोई बौद्धिक बातचीत नहीं हो सकती है।यह आम धारणा है, जब आप ऐसे औरतों को बात करते हुए देखेंगे तो स्वाभाविक ही लोग कह देते है औरतें तो बस गपशप ही करती रहती है। इन्हें कोई और काम थोड़ी नहीं है। इन्हें लाइफ़ सेट है बस घर का काम कर लिया बाक़ी टाइम में बातें कर ली।
क्यों समाज औरतों का सामान्यीकरण करता है
समाज में औरतों के लिए बहुत सी धारणायें बनी हुई है जिसमें से यह भी एक है। क्या औरतों सिर्फ़ गपशप करती है? उन्हें बस दूसरे की ज़िंदगी में दख़ल देना है मर्द तो जैसे देते नहीं।हमारे समाज में यह बड़ी ग़लत बात है।
औरतों को मर्दों से कम बुद्धिमान माना जाता है
हमारा समाज आज भी औरतों को हर चीज़ में पुरुषों से कम मानता है चाहे वे हम शारीरिक तौर पर कहे या फिर दिमाग़ी तौर पर कहे औरतों को मर्दों से कम आँका जाता है।घर पर जब कोई बात होती है काम को लेकर या फिर किसी और चीज़ को लेकर पुरष अक्सर कह देते है तुमे क्या समझ आएगा? तुम्हारे बस का नहीं है।
क्या मर्द गॉसिप नहीं करते
हमारे समाज में औरतों को गॉसिप के लिए सामान्यीकरण किया जाता है।क्या मर्द किसी के बारे में बात नहीं करते? जब भी वे बात करते है वह सिर्फ़ काम को लेकर होती है उसके अलावा वह कोई बात नहीं करते है। मर्द जब भी एक-दूसरे से मिलते वह भी गॉसिप करते है। वे भी ऐसे बोलते है कि वह क्या कर रहा/रही है? उसने कैसे कपड़े पहने है?
औरतों को इस बात के लिए जज करना बंद करें
औरतों को इस बात के लिए जज करना बंद करें कि वह ज़्यादा गॉसिप करती है। गॉसिप करना स्वभाव में होता है जेंडर में नहीं। आप यह नहीं किसी को कह सकते कि मर्द बिल्कुल गॉसिप नहीं करते और औरतें गॉसिप करती है।यह व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है कि उसका स्वभाव कैसा है।किसी को जेंडर के आधार पे जज करना बिल्कुल ग़लत बात है।