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Sexist Bollywood Dialoges: डायलॉग जिन्हें फिल्मों से दूर रहने चाहिए

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Monika Pundir
15 Jun 2022
Sexist Bollywood Dialoges: डायलॉग जिन्हें फिल्मों से दूर रहने चाहिए

दुनिया भर में सिनेमा ने हमेशा दर्शकों की मांगों और स्वाद को पूरा करने की कोशिश की है। इस कोशिश में अक्सर फिल्मे स्टीरियोटाइप और सेक्सिस्म को बढ़ावा देने की गलती क्र देते हैं। कुछ सेक्सिस्ट डायलॉग ऐसे है जो विलेन के मुँह से भी शायद फिल्मों से दूर ही रहते तो अच्छा होता। फिल्मों और मीडिया पर जनता की परसेप्शन बदलने की ताकत होती है, इसलिए उन्हें ऐसे सेक्सिस्ट डायलॉग कॉमेडी के तौर पर भी नहीं देने चाहिए।

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Sexist Bollywood Dialoges: फिल्मों के कुछ सेक्सिस्ट डायलॉग -

1.“तू लड़की के पीछे भागेगा, लड़की पैसे के पीछे भागेगी। तू पैसे के पीछे भागेगा, लड़की तेरे पीछे भागेगी": वांटेड, 2009

महिलाओं की "गोल्ड डिगर" होने की और पैसे के लिए पुरुषों के पीछे चलने की स्टीरियोटाइप।

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2. "बुढ़ी हो या जवान, मेलोड्रामा दुनिया की सारी औरतों के खून में है": 2 स्टेट्स, 2014

यह महिलाओं की ड्रामेटिक होने या आसानी से रोने के स्टीरियोटाइप पर आधारित है। 

3. "सपने देखो जरूर देखो पर उनके पुरे होने की शार्ट मत रखो": दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, 1995

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क्योंकि आपको सपनों और महत्वाकांक्षाओं की आवश्यकता क्यों है जब आप एक महिला हैं? आपको शादी करनी है, बच्चों की परवरिश करनी है और जीवन भर रोटी बनानी है। यह हमारे अस्तित्व का एकमात्र उद्देश्य है।

4. "बलातकर से याद आया मेरी बीवी कहां है": ग्रैंड मस्ती, 2013

बिल्कुल बेतुका और अस्वीकार्य। रेप को मज़ाक की तरह पेश करना या मैरिटल रेप को मज़ाक समझना दोनों ही समस्या है।

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5. "प्रीति, चुन्नी ठीक करो": कबीर सिंह, 2019

कबीर सिंह फिल्म में बहुत सारे प्रोब्लेमैटिक चीज़े थी, मगर इस डायलॉग की सबसे बड़ी समस्या यह है की लोग लड़कियों को कपडे ठीक करना, खास कर दुपट्टा ठीक करने को कहना अपना हक़ मानते है। इसे रोमांस के तरह दर्शना गलत मेसेज दे सकता है। 

6. "एक हाथ में गर्लफ्रेंड, एक हाथ में ट्रॉफी।": स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2, 2019

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यह 21वीं सदी है और हम अभी भी महिलाओं को इंसानों के रूप में मानने के बजाय जीतने के लिए पुरस्कार के रूप में ऑब्जेक्टिफ़ाइ कर रहे हैं।

7. "मर्द को दर्द नहीं होता": मर्द, 1985

एक "मर्द के" शरीर में दर्द रिसेप्टर्स को डिफ़ॉल्ट रूप से अक्षम किया जाना चाहिए ताकि उन्हें दर्द महसूस न हो। बॉलीवुड को वास्तव में टॉक्सिक मर्दानगी का समर्थन करना बंद करने की जरूरत है। एक सामान्य इंसान की तरह इमोशनल होना और भावनाओं को महसूस करना ठीक है।

लोगों को फिल्म के डॉयलोग्स अपने जीवन में इस्तेमाल करने आदत होती है, इसलिए यह फिल्म  मेकर्स की ज़िम्मेदारी है की वे गलत स्टेरोटाइप न फैलाय। 

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