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'वीरे दी वेडिंग' के एक दृश्य में स्वरा भास्कर मास्टरबेट करती दिखाई गयी है. इससे कई दर्शक नाखुश थे और सोशल मीडिया पर इस सीन को अशिष्ट और चीप कहने लगे. महिलाओं ने सीन को मंजूरी को हरी झंडी दिखाई. इससे पहले, बॉलीवुड ने महिलाओं की कामुकता को कभी नहीं सराहा. कुछ किरदार जैसे प्रियंवदा (नीना गुप्ता), जो 'बधाई हो' में गर्भवती हो जाती है, और सिमी (तब्बू), जिसने 'अंधाधुन' में सिडक्टिव सीन किए, काफी सराहे गए.

प्रशंसा प्राप्त करने के बावजूद, इन फिल्मों के दर्शक सिमित होते है. लेकिन, इस वर्ष, प्रशंसा के साथ इन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस और भी खूब कमाया. महिलाएं सेक्स करती हैं, महिलाएं हस्तमैथुन करती हैं और हां, वे अपनी कामुकता को लेकर शर्मिंदा नहीं है. सिल्वर स्क्रीन पर महिलाओं का अपनी इच्छाओं को पूरा करना गलत नहीं, बल्कि सही दिखाया गया.
हाँ. पहले, जिन महिलाओं को अपनी कामुकता और इच्छाओं को व्यक्त करने की अनुमति थी, वे वैंप थीं. ये पात्र नायकों और खलनायकों को आकर्षित करती थी. नायिकाएँ शांत और शर्मीली थीं, प्यार का इजहार करती हैं. लेकिन शायद ही कभी इच्छा या अपनी शारीरिक ज़रूरत का. यह हमारे देश की आदर्श नारी वाली विचारधारा को दर्शाता है.
औसत भारतीय महिलाओं से यही अपेक्षा की जाती है. उन्हें नाज़ुक, शर्मीली और वर्जिन होना चाहिए. हमारे समाज ने महिलाओं को बस पुरुषों की इच्छाओं और अपेक्षाओं के बारें में सोचने तक सिमित कर दिया है. समाज से अनुसार, उनकी स्वयं की कोई आवश्यकता नहीं होती.
सिल्वर स्क्रीन पर महिला कामुकता की स्वीकृति ऐतिहासिक है. इससे कई टैबू टूटे और उन मुद्दों पर बात हुई जिन पर चुप्पी साध ली जाती थी. भले ही यह आक्रामक और धमकी भरे ट्वीट के रूप में हुई, महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय समाज ने इसे नोटिस किया. और बॉक्स ऑफिस पर भी सरहाया.
उम्मीद है कि हमारी स्वीकृति फिल्म निर्माताओं को महिला कामुकता पर फिल्म बनाए को प्रोत्साहित करेगी. हम यह नहीं चाहते की बस आकर्षक किरदार ही आये, बसलकी घरेलू और साधारण किरदार जो की होनी इच्छा व्यक्त करे और समाज की महिलाओं को अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीने के लिए प्रोत्साहित करे.
(यह आर्टिकल यामिनी पुस्तके भालेराव ने अंग्रेजी में लिखा है)

अपनी कामुकता को लेकर शर्मिंदा नहीं है
प्रशंसा प्राप्त करने के बावजूद, इन फिल्मों के दर्शक सिमित होते है. लेकिन, इस वर्ष, प्रशंसा के साथ इन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस और भी खूब कमाया. महिलाएं सेक्स करती हैं, महिलाएं हस्तमैथुन करती हैं और हां, वे अपनी कामुकता को लेकर शर्मिंदा नहीं है. सिल्वर स्क्रीन पर महिलाओं का अपनी इच्छाओं को पूरा करना गलत नहीं, बल्कि सही दिखाया गया.
क्या हमने देरी कर दी?
हाँ. पहले, जिन महिलाओं को अपनी कामुकता और इच्छाओं को व्यक्त करने की अनुमति थी, वे वैंप थीं. ये पात्र नायकों और खलनायकों को आकर्षित करती थी. नायिकाएँ शांत और शर्मीली थीं, प्यार का इजहार करती हैं. लेकिन शायद ही कभी इच्छा या अपनी शारीरिक ज़रूरत का. यह हमारे देश की आदर्श नारी वाली विचारधारा को दर्शाता है.
लिपस्टिक अंडर माय बुरखा (2017), मार्गरीटा विद ए स्ट्रॉ (2014) और अस्तित्वा (2000) जैसी फिल्मों के साथ, भारतीय सिनेमा ने महिलाओं की सेक्सुएलिटी को ऑन-स्क्रीन दिखाना शुरू कर दिया है .
आप प्यार को व्यक्त और अनुभव कर सकती है, लेकिन अपनी कामुकता नहीं.
औसत भारतीय महिलाओं से यही अपेक्षा की जाती है. उन्हें नाज़ुक, शर्मीली और वर्जिन होना चाहिए. हमारे समाज ने महिलाओं को बस पुरुषों की इच्छाओं और अपेक्षाओं के बारें में सोचने तक सिमित कर दिया है. समाज से अनुसार, उनकी स्वयं की कोई आवश्यकता नहीं होती.
एक महिला अपनी कामुकता के बारें में सोचे या व्यक्त करे, तो गन्दी या चरित्रहीन कह दी जाती है.
सिल्वर स्क्रीन पर महिला कामुकता की स्वीकृति ऐतिहासिक है. इससे कई टैबू टूटे और उन मुद्दों पर बात हुई जिन पर चुप्पी साध ली जाती थी. भले ही यह आक्रामक और धमकी भरे ट्वीट के रूप में हुई, महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय समाज ने इसे नोटिस किया. और बॉक्स ऑफिस पर भी सरहाया.
उम्मीद है कि हमारी स्वीकृति फिल्म निर्माताओं को महिला कामुकता पर फिल्म बनाए को प्रोत्साहित करेगी. हम यह नहीं चाहते की बस आकर्षक किरदार ही आये, बसलकी घरेलू और साधारण किरदार जो की होनी इच्छा व्यक्त करे और समाज की महिलाओं को अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीने के लिए प्रोत्साहित करे.
(यह आर्टिकल यामिनी पुस्तके भालेराव ने अंग्रेजी में लिखा है)