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महिलाओं को स्वतंत्र होने के लिए पुरुषों की ज़रुरत नहीं

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Swati Bundela
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क्या भारत एक स्वतंत्र देश है? जी हाँ। क्या भारत की महिला नागरिक स्वतंत्र हैं? यह सवाल भ्रमित कर देने वाला है। क्यूंकी इसका कोई सीधा जवाब नहीं हैं। हमारे समाज की मानें, तो महिलाएं स्वयं को कभी स्वतंत्र नहीं कर सकतीं। इस समाज में वे हमेशा पुरुषों पर निर्भर रहती हैं और स्वतंत्रता की अनुभूति नहीं कर पाती। लेकिन, समाज के बदलते रुख को देखकर ऐसा लगता है कि अब हर वर्ग की महिलाओं का स्वतंत्र होना बेहद आवश्यक है। और इस स्वतंत्रता को पाने के लिए उन्हें पुरुषों की मदद लेने की ज़रूरत नहीं है। आईये देखते हैं कि महिलाएं खुद को और एक दूसरे को कैसे सशक्त कर सकती हैं।

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अपनी मानसिक क्षमता को बढ़ाये



महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ रहीं हैं लेकिन यह विकास शहरी महिलाओं तक ज्यादातर सीमित है। फिर भी प्रयास की प्रक्रिया हर जगह जारी है। अगर महिलाओं को खुद को व्यक्तिगत रूप से लेकर वित्तीय रूप में स्वतंत्र करना है, तो उनकी पहली प्राथमिकता शिक्षा की ओर होनी चाहिए। शिक्षा से मानसिक विकास होता है और यह विकास हमे अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद करता है। हमे किसी पर भी अपने काम के लिए या किसी फैसले के लिए निर्भर होने की आवश्यकता नहीं है।

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बोल्ड और मज़बूत बनें



जितना महत्व मानसिक विकास को देना ज़रूरी है, उतना ही बेशक शारीरिक विकास को भी देना चाहिए। महिलाओं को ज़रूरत है कि वे शारीरिक रूप से बोल्ड और मज़बूत बनें। उन्हें अपना पक्ष रखने से कभी नहीं घबराना चाहिए और अपने बोल्ड अवतार को हमेशा अपने साथ रखना चाहिए। अगर ज़रूरत हो, तो उन्हें डिफेंस ट्रेनिंग भी लेनी चाहिए। महिलाओं के लिए हमेशा उनकी सुरक्षा एक चिंता का विषय रहा है और इसी का सहारा लेकर बहुत से पुरुष महिलाओं को बाहर नहीं निकलने देते।

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महिला समुदायों का निर्माण करें



हर व्यक्ति का अपना एक सामाजिक समुदाय होता है और यह आवश्यक भी है। लेकिन, यह ज्यादातर हमारी प्रोफेशनल लाइफ के लोगों का एक संगठन जैसा होता है। महिलाओं के संघठन कम देखने को मिलते हैं, इसलिए ज़रूरी है कि महिलाएं आगे बढ़कर उस चीज़ का निर्माण करें, जो समाज के द्वारा उन्हें भेंट में नहीं मिली है। महिलाओं को अपनी जैसे अन्य महिलाओं का एक समूह तैयार करना चाहिए ताकि वे ज़रूरत पड़ने पर पुरुषों का आसरा न देखे। आज-कल महिलाएं घर बैठकर भी सोशल मीडिया के समुदायों में शामिल हो सकती हैं।

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महिलाओं को अपनी जैसे अन्य महिलाओं का एक समूह तैयार करना चाहिए ताकि वे ज़रूरत पड़ने पर पुरुषों का आसरा न देखे। आज-कल महिलाएं घर बैठकर भी सोशल मीडिया के समुदायों में शामिल हो सकती हैं।



महिला सशक्तिकरण के विचार को समझें



जब हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, तो पहले इसका सही मायनों में मतलब समझना ज़रूरी है। यह सिर्फ एक सामजिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक विचार है। महिलाओं के अंदर यह क्षमता होती है कि यदि वे खुद सशक्त हों, तो वे अन्य लोगों को इस राह पर ला सकतीं हैं। देखा जाये तो, महिलाएं एक दूसरे को पुरुषों के मुकाबले ज्यादा सशक्त महसूस करवा सकती हैं। इसलिए, आगे बढ़ने के लिए सबका साथ होना और उन्हें भी अपनी साथ आगे लेकर जाना काफी महत्वपूर्ण है। आप खुद को भी स्वतंत्र करें और दूसरों को भी इसका ज्ञान दें।
#फेमिनिज्म महिला सशक्तिकरण सोशल मीडिया #महिला नागरिक #मानसिक क्षमता
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