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आपदाओं से निपटने के लिए और ज़िंदगियाँ बचाने के लिए महिलाओं की ट्रेनिंग

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Swati Bundela
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अभया राज जोशी लिखतीं हैं कि कैसे नेपाल और भारत की महिलाएं कोसी नदी की बाढ़ से निपटने के तरीके सीखती हैं।

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18 अगस्त, 2008 को एक त्रासदी हुई जिसकी चपेट में कोसी नदी आ गयी। कोसी नदी अपनी बैंकों को फाड़ते हुई बढ़ती चली गयी और सप्तरी जिले की सरिता कुमारी गिरी के हिसाब से लोग इस बाढ़ के लिए तैयार नहीं थे। गिरी ने बचाव कार्य में अपना समर्थन दिया था। उन्होंने बताया कि लोग बेहद परेशान हो गए थे कि कहीं बाढ़ का पानी उनकी बस्तियों को न उजाड़ दे और सौभाग्य से ऐसा नहीं हुआ।



तब से ही गिरी अपनी संगिनियों के साथ आपदाओं से निपटने के रास्ते खोज रहीं थी कि वर्ष 2015 में यह अवसर मिल ही गया। नई दिल्ली स्तिथ सेंटर फॉर सोशल रिसर्च ने एशिया फाउंडेशन के साथ मिलकर एक ट्रेनिंग प्रोग्राम का आयोजन किया था। नेपाल के सामुदायिक सारथी और भारत के ग्रामीण एवं नगर विकास परिषद् ने इसमें अपना योगदान दिया। यह नेपाल के सप्तरी और सुनसरी में और भारत के सहरसा और सुपौल जिले में हुआ था। इस ट्रेनिंग प्रोग्राम में महिलाओं को आपदाओं से निपटने के लिए ट्रेन किया गया था।
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सीएसआर ने कहा कि, "ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए काफी रिपोटों और दस्तावेजों का विश्लेषण किया गया। हम हमेशा महिलाओं की क्षमता को भूल जाते हैं। अगर इन महिलाओं को इनपुट्स मिलें तो वे अपना महत्वपूर्ण योगदान से सकती हैं। ट्रेनिंग के जरिये वे जीवन चक्र और आपदा शमन जैसी चीज़ों को समझ सकती हैं"।

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"वैसे तो आईडिया महिला प्रतिनिधियों को ट्रेन करने का था लेकिन नेपाल में चुनाव की कमी के कारण हमने नेतृत्व क्षमता वाली स्थानीय  महिलाओं को शामिल करने का फैसला किया", सामुदायिक सारथी की तारा भंडारी ने कहा। उन्होंने बताया कि यह आईडिया सरल और प्रभावी था। नेपाल में इसका बजट सिर्फ 2.4 मिलियन का था।



गिरी ने कहा,"यह ज़रूरी था कि महिलाओं को प्रोग्राम में हिस्सा लेने के लिए चुना गया। क्यूंकि तेरई जैसे जगहों पर ज्यादातर पुरुष काम की तलाश में बाहर चले जाते हैं और बाढ़ की परिस्तिथियों में महिलाओं को इन आपदाओं से जूझना पड़ता है"।
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सामुदायिक सारथी और सीएसआर ने नेपाल के दोनों जिलों में चर्चा के माध्यम से शुरुआत की। उन्होंने घरों में पानी की सप्लाई, गावों की स्थापना, आदि सवाल पूछे। उसके बाद कुछ महिलाओं से दीर्घ प्रश्न भी पूछे। इन सभी चर्चाओं और उत्तरों को साथ रखकर एक ट्रेनिंग मैन्युअल को बनाया गया।

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हाथ पकड़ना



इसके बाद ट्रेनिंग का सबसे एहम चरण जिसका नाम होल्डिंग हैंड्स था, उसे लांच किया गया। उसके बाद इस प्रोजेक्ट ने अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर दिया। यह प्रोग्राम जुलाई 2017 तक चला था।

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"जिन 70 महिलाओं को ट्रेन किया गया था उनमें से 22 ने यह तय किया कि वे स्थानीय महिलाओं के साथ मीटिंग्स करके उन्हें आपदाओं से निपटने कि शिक्षा देंगी। यह नयी नेता सादा, सरदार, और बंतर की सबसे कमज़ोर महिलाओं तक पहुंच गयी। इन् 22 में से हमने 10 का चयन किया ताकि वे बिहार में अपने सहयोगियों से मिल सकें और सामान्य मुद्दों पर बात कर सकें", भंडारी ने कहा।

प्रभाव

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अगस्त 2017 में दक्षिण एशिया के जब काफी हिस्से बाढ़ की चपेट में आ गए थे तब सप्तरी और सुनसरी जिले बुरी तरह से प्रभावित हुए। नेपाल में करीब 143 लोगों ने अपनी जान गवा दी। दक्षिण एशिया में गिनती एक हज़ार के ऊपर चली गयी थी।

"तब हमने इस प्रोजेक्ट की असली अहमियत को समझा। जिन जगहों में हैंड होल्डिंग प्रोग्राम का आयोजन हुआ था, वहां से कोई भी दुर्घटना सामने नहीं आयी। किसी ने भी अपनी नागरिकता और भूमि पंजीकरण के कागज़ नहीं खोये", भंडारी ने कहा।



नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों ने गिरी के काम को पहचाना और उन्हें संघीय संसद का हिस्सा बनने के लिए नामांकित किया। उनके मुताबिक जो काम उन्होंने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए था, उसकी वजह से उन्हें इस नामांकन का सौभाग्य मिला। स्थानीय महिलाओं ने आपदा योजना और प्रतिक्रिया का बजट प्राप्त के लिए स्थानीय सरकार पर दवाब बनाया जिसके बाद उनके पास कोई और रास्ता नहीं बचा।



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यह लेख पहले "थे थर्ड पोल" द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित किया गया था।
इंस्पिरेशन #अभया राज जोशी #नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी #प्राकृतिक आपदा #सरिता कुमारी गिरी
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