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क्या है वो 5 बातें जो आपको नारीवाद के बारे में पता होना चाहिए?

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Swati Bundela
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पिछले बहुत सालो से पूरे विश्व में नारीवाद के नारे लग रहे है। चाहे वो कार्य स्थल पे हो या घर में। नारीवाद हमें ये बताता है कि कैसे पुरुष और महिला को समाज में बराबर का दर्जा दिया जाना चाहिये और सबका सम्मान करना चाहिए।

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आजकल के समय में हर औरत अपने आपको नारीवादी कहना चाहेगी और समाज से अपने हक़ के लिए लड़ रही है। आज अगर नारीवाद बढ़ रहा है, तो कुछ लोग ऐसे है जोकि इसे एक दूसरे पैमाने से देखते है और जिन्हें इस को लेकर गलत फहमी है।



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हर नारीवाद औरत पुरुष को नीचा दिखाना चाहती है



नारीवाद को लेकर लोगों के मन में गलत फहमी है जिनमें की ये सबसे ऊपर आता है कि कैसे जो भी महिला जोकि एक नारीवाद है, वो पुरुष को नीचा दिखाना चाहती है। उन्हें ये लगता है कि नारीवाद का अर्थ ही ये है कि औरतें पुरूष के ऊपर है, और अक्सर ये देखा जाता है कि लोग इसका समर्थन इसी कारण नही करते।
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नारीवाद सिर्फ आर्थिक रूप से शशक्त औरतें के लिए है
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नारीवाद की ये सोच चार्ल्स फ़ौरीरे की देन है और सबसे पहले ये एलिज़ाबेथ स्टैंटन ने शुरू किया।लोगों को ये लगा कि जो कोई भी इस आंदोलन से जुड़ा है, वो केवल आर्थिक तौर से शशक्त है और नीचे जाती की महिलाओं में इसका कोई हाथ नही है। इसलिए इस आंदोलन को ऊपर जाती से औरतों से जोड़ दिया गया।

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ये बिल्कुल सही नही था क्योंकि विश्व के हर कोने में हर औरत अपनी सामाजिक बराबरी के लिए लड़ रही थी। गांव की औरते पंचायत मे अपने स्थान के लिए, शहर में काम करती वो महिलाएं जिन्हें फैक्ट्री और कार्यस्थल पर बराबरी का दर्जा नही दिया जाता था। आज भी ये औरतें लड़ रही है और अब वो औरत भी इसके लिए लड़ रही है जो कि आर्थिक रूप से शशक्त नही है।



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हर नारीवादी महिला के अंदर अब समाज में सिखाये जाने वाले तौर तरीकों नही रहें



लोगों का ये मान ना है कि जो महिलाएं अब इस आंदोलन में लड़ रही है, उसे समाज के सिखाये गए तौर तरीके पसंद नही या वो उनका उलंघन करती है। सच ये है कि वो समाज के द्वारा सिखाये गए हर तौर तरीके का उल्लंघन नही करती बल्कि उनमें बदलाव लाती है। जो बातें उन्हें नारीवाद के ख़िलाफ़ लगती है, उनमें वो बदलाव की मांग करती है। उनमें आज भी बड़ो के लिए उतनी ही इज़्ज़त है, उठने बैठने की तमीज़ है और दूसरों के सोच को सुन ने की ताकत और हिम्मत।
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हर नारीवादी महिला पुरुषों से नफरत करती है



पुरुषों को ये लगने लग गया है कि हर वो औरत जो नारीवाद की सोच अपनाती है, वो पुरुषों के विरोध में है और ये मानती है कि उन पुरुषों में भी समाज के द्वारा दिये गए स्वभाव है। वो ये समझते है कि उनकी हर बात इन महिलाओं को गलत लगेगी और वो इनका विरोध करेंगी।



हर महिला को पुरुष जाती से नफ़रत नही होती और वो पूरी कोशिश करती है कि वो दूसरों को समझ पाए। उनकी ये लड़ाई पुरुषों से नही बल्कि उन लोगों से है जो ये सोच रखते है। नारीवादी महिलाओं को वो लोग पसंद नही जो समाज के उन नियमों को पसंद करें जो उनके लिए गलत हो चाहे वो पुरुष हो या महिला।



नारीवाद अब औरतों को बराबरी पे ले आया है और अब उन्हें ये आंदोलन करने की आवश्यकता नही है



लोगों को ये लगता है कि चूंकि ये आंदोलन काफी समय से चलता आ रहा है, अब औरतों को बराबर का दर्जा मिल ही चुका होगा। सच ये है कि आज भी औरतों को बराबरी का दर्जा नही मिलता , आज भी कार्यस्थल पे उन्हें कम आये दिया जाता है, घर में उन्हें पुरुषो के अधीन समझा जाता है और आज भी उन्हें राजनीति या पंचायत में हिस्सा कम लेने दिया जाता है।



आज भी इस आंदोलन की उतनी आवश्यकता है जितनी पेहेले थी क्योंकि आज के समय में ही ये आंदोलन लोगों की नज़रों में उभर रहा है। इस से पहले इसे दबा के रखा गया और समाज का उल्लंघन समझा गया।
#फेमिनिज्म
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