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क्यों ज़रूरत है हमें खुद अपने पैसे संभालने की?

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Swati Bundela
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आप मानिए या नहीं पर 26 साल की आयु में भी आज मेरे पिता मेरी पैसों की बचत और उन्हें कैसे खर्च करना है, ये देखते हैं। ये बात तबसे आयी जब मैं 20 साल की थी और कमाने लग गयी थी। मेरे माता एवं पिता को लगा की मैं सारे पैसे ख़र्च करदुंगी अगर उन्होंने ये बचत नही की तो। मैंने कभी उन्हें रोका भी नहीं क्योंकि मेरे पिता बैंक में थे।

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अपनी दूसरी दोस्तों के साथ भी मैंने यही होता देखा। उनके माता पिता या पतियों ने उनकी आर्थिक समस्याओं को सुलझाया और पैसों की बचत या उनका खरचा उनके हाथ में था। ये बात मुझे कभी महसूस नहीं हुई लेकिन आज जब मैंने एक रिपोर्ट पढ़ा तो मेरा नज़रिया बदला। 59 प्रतिशत महिलाएं जो कि 20-34 की आयु में है वी अपने पतियों पर अपनी आर्थिक तंगी के लिए निर्भर होती हैं।



मैरिटल सचुरीग जो कि यू.बी.एस फाइनेंसियल सर्विसेज में एकाउंट वाईस प्रेसिडेंट हैं, उन्होंने जब महिलाओं के साथ एक प्रोग्राम किया तो उन्हें भी आश्चर्यजनक बात देखी। ज्यादातर युवा महिलाएं ने अपने पतियों को अपने पैसों की ज़िम्मेदारी दे रखी थी।
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उन्होंने कहा कि इस ज़माने में जहां हम अपने हक़ के लिए लड़ रहें हैं, पुरूषों से बराबरी करना चाह रहें हैं या राजनीति में अपने कदम रख रहें हैं वहाँ जब हमें ये जगह और पैसे मिलते हैं तो हम क्या करते हैं।

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इकोनॉमिक् टाइम्स आर्टिकल के अनुसार, भारत में ज्यादा फर्क नहीं है। यहाँ भी हमारे सामाजिक बंधनो के कारण जो महिला कमाती है, वो भी अपने पति को ये काम सौंपती है। इ. टी. वेल्थ ने 139 महिलाओ पे किये गए रिपोर्ट से पता लगाया कि 42 प्रतिशत अपने पतियों पे ही इस बात को लेके आश्रित हैं।



जब महिलाओं की नौकरी लग रही होती है, तब हम थोड़े कम दाम में काम करने का वादा करते हैं, जिसके बाद इस आय में ऊंच नीच करना मुश्किल होजाता है। भारत में जहाँ औरतों को पुरुषों से 34 प्रतिशत कम आय मिलता है वहीं हमें अपने रिटायरमेंट के बारे में सोचना चाहिए। पैसों के बारे में हमें एक प्रोफ़ेशनल से बात करनी चाहिए जिस से बात करके हम अपने हिस्साब से अपने पैसे इन्वेस्ट या खर्च कर सकें।
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पीक अपल्हा की डायरेक्टर प्रिया सूंदर कहती हैं “ महिलाओं के मन में माइंड ब्लॉक होता है जोस कारण वो अपनी पतियों को अपने पैसे सौप देती हैं बजाय इसके की वो इस बारे में सीखे”।

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क्योंकि वोमेन्स डे अभी निकला और चूंकि इसकी शुरुआत महिला ट्रेड यूनियन के मार्च के साथ हुई थी जो आर्थिक तौर से बराबरी चाहती थी, आजकल ये बराबरी हमें वर्क्सपस में चाहिए और अपने आय पे हक़ चाहिए।



ये एक बहुत बड़ी गलतफहमी है कि आजकल की औरतें मेकअप और कपड़ो पे खर्च करती हैं तो उन्हें ये भी पता होगा कि सेविंग कैसे करते है। ये सब बातें सोचे बिना हम रूढ़िवादी सोच से बाहर निकल, अपने आप को जागरूक कर सकते हैं।
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यू.एस.बी फिनांशल सर्विसेज में 18 साल से काम करती आ रही कैथलीन इंटवीस्टले ने कहा कि “बात ये नहीं है कि कौन ज्यादा अच्छा या बेहतर है, मर्द या औरत। फर्क वहां आता है जिस हिसाब से समाज में हमे स्थान दिया गया, हमारे पालन पोषण और हमें सिखाई गयी चीज़ों में”

समय आगया है कि हम वो सब बदले।
मनी और इन्वेस्टिंग
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