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जानिए कैसे घर से काम करने की सुविधा महिलाओं को सशक्त कर रही है

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Swati Bundela
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भारत में औरतों ककेआ विवाह करवाने के बाद उनसे ये अपेक्षा रखी जाती है कि वो घर न छोड़े और मातृत्व के अनभूति के बाद ये बात और भी घाड़ी हो जाती है। इन औरतों के लिए घर से काम करना एक ऐसी बात है जो कि इन्हें आर्थिक तौर से शशक्त बनाता है और इनके गुणों को निखारता है। हिन्दू के अनुसार सरकार ऐसे तौर तरीके लाने की कोशिश कर रहा है जिस से ये लोग आई टी क्षेत्र में घर से काम कर सकें। नौकरी लेने और देने वालो को ये सुविधा दी जा रही है खासकर महिलाओं और विकलांगो को।

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समाज की मुसीबतें

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हर औरत अपने घर और बच्चे को अपने काम के ऊपर चुनती है और भारतीय संस्कृति के अनुसार उन्हें करना भी यही चाहिए। उसे घर को अकेले संभालना है, तीन बार खाना बनाना है और दूसरों की सेवा करनी है। हर घर में मदद के लिए एक नौकरानी होती है पर जैसे ही कोई महिला माँ बनती है तो उसके लिए ये कार्य और कठिन होजाता है।



रूढ़िवादी परिवार ये सोचते हैं कि महिलाओं को अपने बच्चो को बेबीसिटर के पास छोड़के काम पे नहीं जाना चाहिए। वो परिवार और काम में सामान्यता नहीं रख पाएंगे। कई कई बार इन महिलाओं को लौट के फिरसे घर का काम करना पड़ता है जिस कारण इन्हें तनाव और थकान होजाता है। ये एक बड़ा कारण है कि महिलाएं चैन और सुकून की वजह से नौकरी नहीं करती।
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कार्यस्थल में कम हिस्सा
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इस कारण भारत में महिलाओं का कार्यस्थल में हिस्सा कम हो चुका है। बहुत सी महिलाएं जो कि अपनी कुशलता का इस्तेमाल कर सकती हैं वो अपने पति के दबाव में आजाती हैं। इस वजह से इस समाज में औरत का कार्य बच्चे को संभालना और घर में बैठे रहने से कई ज्यादा है। हमें मर्दो को ये सिखाना पड़ेगा कि वो भी घर को संभाल सकते हैं या ये की एक औरत घर से बैठे बैठे भी कार्य कर सकती है।

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तो अगर महिलाएं बाहर नही निकल सकती तो हम काम को उनके पास ले आते हैं । इसके कई फायदे हैं जैसे समय बचना, काम आना जाना, परिवार का साथ साथ खयाल रखना और एक सही जगह। आयी एम एफ रिपोर्ट के अनुसार भारत का जी डी पी 27 प्रतिशत से बढ़ेगा अगर महिलाये कार्य करें तो। इसके ऊपर ये महिला को।कार्य करने की आज़ादी देता है चाहे वो शादी शुदा हो या माँ हो।



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आर्थिक तौर से सशक्त होना कितना जरूरी?



आर्थिक तौर से शशक्त होने पर एक औरत की उसके परिवार में इज़्ज़त और मान दोनों बढ़ते हैं, उसकी बात सुनी जाती है और वो आने जीवनसाथी पे आश्रित नहीं होते। वो अपनी सहूलियत से कार्य कर सकती हैं।



ये कदम एक बहुत ज़रूरी कदम है किंतु बात बस यही पे नहीं रुकती। हमारा अगला कदम महिलाओं को यर बताने में जायेगा कि लिंग सामान्यता आवश्यक है और पुरुषों का वर्चस्व इसमें खत्म होना चाहिए।
वीमेन एंट्रेप्रेन्यूर्स
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