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जो हम स्क्रीन पर देखते हैं वह वास्तविकता से बहुत अलग है - स्वास्तिका मुख़र्जी

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Swati Bundela
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विमेन राइटर्स’ फेस्टिवल (एडिशन २), की शुरुआत कोलकाता में एक्ट्रेस स्वास्तिका मुख़र्जी के साथ बातचीत से हुई. मुखर्जी ने हिंदी फिल्म 'डिटेक्टीव बायोमकेश बक्षी' (2015 ) में कैमियो किया, जिससे काफी चर्चा में रही. हमारी संपादक किरण मनराल से बातचीत के दौरान मुख़र्जी ने, 'द आर्ट एंड क्राफ्ट ऑफ द नायिका' पर, सिनेमा और साहित्य में ग्रे विमेन की स्वीकृति पर, उनके अपरंपरागत किरदार करने में रूचि पर और दर्शकों के बदलते टेस्ट पर बात की.

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https://www.facebook.com/SheThePeoplePage/videos/264301980909544/

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आखिर क्यों चुनती है अपरंपरागत किरदार



किरदारों के बारे में, मुखर्जी ने कहा कि वह उन किरदारों को करने से बचती है जो सिर्फ "पीपल प्लीसिंग" वाले होते है. "मैं ऐसे किरदार नहीं करती जिनमें रील और रियल लाइफ में काफी अंतर हो. समाज की वास्तविकता और स्क्रीन पर चित्रित कुछ चीज़ें बिलकुल अलग होती है. जो हम स्क्रीन पर देखते हैं वह वास्तविकता से बहुत अलग है."

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लेकिन इस विकल्प के साथ कठिनाइयों भी आती है. "मेरी फिल्मों में निर्देशकों और उत्पादकों की, मेरे किरदार को हटाने के लिए, सेंसर बोर्ड के साथ लड़ाई हुई है. वह सोचते हैं कि यह किरदार सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं होंगे या मानदंडों का पालन नहीं करते. "

लोग रील और रियल इमेज को अलग नहीं रख पाते

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मुख़र्जी कहती है, एक्ट्रेस ऐसे किरदार नहीं करना चाहती जिससे उनकी इमेज खराब हो. "लोग हमेशा रील और रियल इमेज को एक मानते है. वह यह नहीं समझ पाते की जो यह महिला स्क्रीन पर है, वास्तव में वो नहीं है.और नायिका के रूप में, आप अपनी रियल इमेज को बचती है, जिसे आप अपने दर्शकों, या समाज या परिवार और दोस्तों के सामने रखना चाहती हैं. "

बंगाली साहित्य में महिलाओं के चित्रण पर

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बंगाली साहित्य के आधार पर कई फिल्में करने के बाद, मुखर्जी का मानना ​​है कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के महिला किरदार काफी प्रभावशाली है. "उन्होंने अपनी ज़िद्द और आत्म-विश्वास से आगे बढ़कर अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जीने के लिए कदम उठाया. और उन पुस्तकों को जिस समय लिखा गया था, तो उसके हिसस बे वह निडर और साहसी थी." 2018 में भी बंगाली क्लासिक्स काफी रिलेवेंट है. "आज भी, जो महिलाएं आगे बढ़ना चाहती हैं, उन्हें जज किया जाता है और नीचे भी दिखाया जाता है."



मुखर्जी का मानना ​​है कि हमारी फिल्मों और साहित्य में उन महिला किरदार की कमी है जो जेल में होती है. "आप को यद् भी नहीं होंगे वो साहित्य जो इन महिलाओं पर केंद्रित हो. हॉलीवुड में, इस विषय पर काफी फिल्में है."
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"आज भी, जो महिलाएं आगे बढ़ना चाहती हैं, उन्हें जज किया जाता है और नीचे भी दिखाया जाता है." मुख़र्जी



दर्शक का ग्रे किरदारों को स्क्रीन पर स्वीकार करना



दर्शक आजकल फिल्मों और साहित्य में ग्रे महिला किरदारों को पसंद करते हैं. "वह बदलाव स्वीकार कर रहे हैं और उन महिलाओं को स्क्रीन पर पसंद कर रहे हैं. वे उस महिला किरदार सो किसी हद तक रेलाते कर पाते हैं. महिला दर्शकों को, पुरुषों के मुकाबले, यह किरदार ज़्यादा लुभाते हैं. मैंने उन्हें फेसबुक पर आलोचना करते और यह भी लिखते देखा है कि 'मैं अपनी पत्नी को यह फिल्म देखने नहीं देना चाहूंगा'. लेकिन दर्शक अपने दृष्टिकोण को बदल, रियलिटी-बेस्ड सिनेमा को पसंद कर रहे है, न कि तड़कते भड़कते किरदारों को. हकीकत में, यह जीवन नहीं है."
इंस्पिरेशन फिल्मों और साहित्य महिला किरदार विमेन राइटर्स’ फेस्टिवल साहित्य
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