Advertisment

मिल्लेनियल महिलाएं काम और ग्रहकार्य दोनों ही अधिक करती हैं

author-image
Swati Bundela
New Update
करियर बनाना, घर चलाना, और साथ ही बच्चों को संभालना आसान नहीं है लेकिन फिर भी महिलाएं यह हमेशा करती हैं। पर क्या इसे साझा जिम्मेदारी न माना जाये? हालांकि कुछ पुरुष, इस साझा जिम्मेदारी वाली विचारधारा को मानते हैं लेकिन पुरानी मानसिकता के चलते, अभी भी महिलाऐं अधिकतम जिम्मेदारियां संभालती हैं।

Advertisment


अध्ययन से पता चलता है कि मिल्लेंनियल महिलाऐं काम और ग्रहकार्य दोनों ही अधिक करती हैं। हालांकि युवा महिलाएं अधिक समय तक काम कर रही हैं और पहले से ज्यादा कमा रही हैं, लेकिन फिर भी वे घर की ज्यादा जिम्मेदारियां संभाल रही हैं।

यह कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे कई परिवार हैं जो समानता के विचार को मानते हैं और लैंगिक समानता के नए विचार अपनाते हैं। लेकिन यह केवल विचार-प्रक्रिया तक सीमित है। असल में रूढिवादियों के होने के कारण इन्हे बेपटरी कर दिया जाता है।

Advertisment


रिसर्च से पता चलता है कि 19 प्रतिशत महिलाएं, 49 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले अधिक ग्रहकार्य करती हैं। ब्यूरो ऑफ़ लेबर स्टेटिस्टिक्स के हिसाब से महिलाएं घर के काम-क़ाज़ों में अधिक समय बिताती हैं और अपनी व्यक्तिगत ज़रूरतों को पूरा करने का बहुत मुश्किल से समय पाती हैं।

बहुत प्रयासों के बाद भी यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब समानता का अभ्यास करने की बात आती है तो ज्यादातर पुरुष बात करने में इच्छुक नहीं होते।

Advertisment


जबकि काम और परिवार का संतुलन बनाना दोनों साथियों की जिम्मेदारी है लेकिन फिर भी हमेशा महिलाएं ही अधिक भार उठाती हैं। कार्यस्थल पर अधिक काम बढ़ने के साथ, महिलाओं के लिए अकेले घर का काम संभालने की अतिरिक्त जिम्मेदारी है।

महिलाएं निश्चित रूप से ज्यादा कमा रही हैं, लेकिन बराबर नहीं 

Advertisment


महिलाओं के बढ़ते वेतन से वह अपने घर-परिवार की तरफ ज्यादा योगदान दे रही हैं। वे न सिर्फ अपने वेतन से, बल्कि जिम्मेदारियां उठाकर भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। अगर पुरुषों की बात कि जाये तो वे भी ज़्यादा काम कर रहे हैं। लेकिन हमें यह साबित करने के लिए किसी अध्यन की ज़रूरत नहीं है कि पुरुषों को स्वयं के लिए अधिक समय मिल जाता है।



यह मानना कि घर की ज़िम्मेदारियां सिर्फ महिलाओं तक सीमित हैं, इससे हमें कोई प्रगति नहीं मिलेगी। पारम्परिक लिंग विभाजन हर जगह है। चाहे काम हो या घर की ज़िम्मेदारियां, महिलाएं निश्चित तौर पर पुरुषों से ज्यादा मेहनत करती हैं। लेकिन इस मेहनत और विश्वसनीयता के बावजूद, महिलाओं को अधिक लाभ नहीं हुआ है।
Advertisment


अविवाहित महिलाओं का क्या कहना है



सुनीता जोशी, जो एक बैंकर हैं, वह कहती हैं कि सिर्फ पतियों का समानता के विचार को समझना काफी नहीं है, इस विचारधारा को परिवार और सामाज दोनों को समझने और इसका अभ्यास करने की आवश्यकता है।
Advertisment




विनीता शर्मा, जो नैनीताल में एक कैफ़े की मालिक हैं उनके अनुसार भारत में चाइल्डकैअर और ग्रहकार्य की ज़िम्मेदारी सिर्फ महिला की ही है। "मैं दिन-रात अपने बिज़नेस को संभालती हूँ, लेकिन जब मैं घर पर होती हूँ तो बच्चों की तैराकी कक्षाओं से लेकर पढाई तक की सारी ज़िम्मेदारी मेरी होती है। यह बातें कि महिलओं को समानता की बातों से लाभ होता है, यह छोटे शहरों में लागू नहीं होती। कुछ पुरुष पितृसत्ता के इतने आदि होते हैं कि वह बिना किसी कारण के गलत व्यवहार करते हैं"।

Advertisment


“मैं काम पर बहुत ज्यादा मेहनत करती हूँ और मैं इस बात का खामियाजा नहीं उठाती कि समाज का क्या मानना ​​है कि महिलाओं को क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए। मेरे पति और मैं समान जिम्मेदारी साझा करेंगे और इससे फर्क ज़रूर पड़ेगा।”



बैंकर अपूर्व जोशी का कहना है कि वे घर के काम करना पसंद नहीं करती हैं। उनके अनुसार दूसरे घर में रहने का मतलब यह नहीं है कि वह अपनी विचार-प्रक्रिया से समझौता करेंगी।



हम निरंतर एक ऐसी दुनिया की बात कर रहे हैं जहां सबको सामान अधिकार मिलेगा। लेकिन हम इसे हासिल करने में कामयाब नहीं हो रहे हैं। अगर हमें समानता चाहिए तो हमें रूढ़िवादियों को हटाना होगा। और, इसके लिए हमें सबसे पहले खुद को शिक्षित करना होगा। साथ ही, हमें बच्चों को भी समानता का पाठ पढ़ाना ज़रूरी है ताकि हमारा समाज पहले से कई गुना बेहतर हो।



पढ़िए: प्रगति के लिए हमें और अधिक कामकाजी महिलाओं की आवश्यकता है : राजीव आनंद



 
इंस्पिरेशन महिला सशक्त महिलाएं कामकाजी महिलाएं महिला और समाज
Advertisment