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प्यारी बुआ,
मैं जानती हूं कि आपने अपने परिवार में बहुत कुछ देखा और सहा है और आज भी करती हो। मम्मी कहानियां बताती है, कि क्या हुआ और पहले कैसा था। मैं समझती हूं हम एक आइडियल परिवार नहीं है, पर शायद थोड़े बेहतर हो सकते हैं।
ये बात समझने की ज़रूरत है, कि पैट्रियार्की हमें बांट देती है। जब आपको चाची नहीं पसंद आती क्यूंकि वो हमारे परिवार की बाकी औरतों की तरह नहीं रहती, सही से बताया जाए तो झुकती नहीं, अपने लिए स्टैंड लेती है। वो बिलकुल गलत नहीं है, ऐसा करना उन्हें असंस्कारी नहीं बनाता।
बुआ मैं समझती हूं, आपके साथ जो गलत होता है, आप भी उसे गलत मानिए। औरतों के साथ यूंही होता है ऐसा मत सोचिए। जानती हूं मुश्किल है। पर जैसा बरताव आपके साथ होता है, वैसा ही अपनी भाभीयों के साथ करना क्या सही है?
हां यही होती है मिसॉजिनी जो हमारे दिमाग में फिट करती है कि औरतों को ऐसे ही रहना चाहिए, कोई भी उससे आगे बढ़ने की कोशिश करती है, तो हम सब उसे पीछे खींच लेते हैं।
अपनी बात रखे, तो बहुत बोलती है, बड़ों का लिहाज़ तक नहीं करती। कुछ ना बोलने और सिर झुकाकर काम करने से ही शायद कोई औरत संस्कारी बनती है। हैं ना? अपना हक़ मांगने पर, दिल खोलकर बात करने पर, "चंट" बन जाती है।
चाची इकदम सही कहती है, कि "काम सब करते हैं वही, बस जब औरतें करती हैं, तो सबकी आंखें बड़ी हो जाती हैं।" मेरे छोटे बालों से तकलीफ है आपको, मगर वो मुझे दिल से पसंद हैं। सुनाने से बस मेरे और आपके बीच में खट्टास बढ़ेगी। पर एक दूसरे को समझना शुरू करना होगा, थोड़ा आपको आगे आना होगा, थोड़ा मुझे।
मैं जानती हूं आप जिस माहौल में बड़ी हुई, उसी में ढल गई, या आपको उसी में ढाल दिया गया। आपको सिखाया गया कि बहुओं को काबू में रखो, उन्हें अपने मन की कुछ ना करने दो। इसलिए आप भी अपने ससुराल में सब सह लेती हैं। मगर ऐसा नहीं है, एक परिवार में किसी को दूसरे सदस्य को काबू में रखने की ज़रूरत नहीं है।
मैं जानती हूं, ये सब नया सा लगता होगा आपको, कई दफा शायद बेढंगा भी। पर बदलाव आपके लिए भी ज़रूरी है और मेरे लिए भी। इसकी वजह से ही हम एक बेहतर परिवार बन पाएंगे।
मैं जानती हूं कि आपने अपने परिवार में बहुत कुछ देखा और सहा है और आज भी करती हो। मम्मी कहानियां बताती है, कि क्या हुआ और पहले कैसा था। मैं समझती हूं हम एक आइडियल परिवार नहीं है, पर शायद थोड़े बेहतर हो सकते हैं।
ये बात समझने की ज़रूरत है, कि पैट्रियार्की हमें बांट देती है। जब आपको चाची नहीं पसंद आती क्यूंकि वो हमारे परिवार की बाकी औरतों की तरह नहीं रहती, सही से बताया जाए तो झुकती नहीं, अपने लिए स्टैंड लेती है। वो बिलकुल गलत नहीं है, ऐसा करना उन्हें असंस्कारी नहीं बनाता।
हम नहीं तो और कौन?
बुआ मैं समझती हूं, आपके साथ जो गलत होता है, आप भी उसे गलत मानिए। औरतों के साथ यूंही होता है ऐसा मत सोचिए। जानती हूं मुश्किल है। पर जैसा बरताव आपके साथ होता है, वैसा ही अपनी भाभीयों के साथ करना क्या सही है?
हां यही होती है मिसॉजिनी जो हमारे दिमाग में फिट करती है कि औरतों को ऐसे ही रहना चाहिए, कोई भी उससे आगे बढ़ने की कोशिश करती है, तो हम सब उसे पीछे खींच लेते हैं।
अपनी बात रखे, तो बहुत बोलती है, बड़ों का लिहाज़ तक नहीं करती। कुछ ना बोलने और सिर झुकाकर काम करने से ही शायद कोई औरत संस्कारी बनती है। हैं ना? अपना हक़ मांगने पर, दिल खोलकर बात करने पर, "चंट" बन जाती है।
चाची इकदम सही कहती है, कि "काम सब करते हैं वही, बस जब औरतें करती हैं, तो सबकी आंखें बड़ी हो जाती हैं।" मेरे छोटे बालों से तकलीफ है आपको, मगर वो मुझे दिल से पसंद हैं। सुनाने से बस मेरे और आपके बीच में खट्टास बढ़ेगी। पर एक दूसरे को समझना शुरू करना होगा, थोड़ा आपको आगे आना होगा, थोड़ा मुझे।
आपका - मेरा समय।
मैं जानती हूं आप जिस माहौल में बड़ी हुई, उसी में ढल गई, या आपको उसी में ढाल दिया गया। आपको सिखाया गया कि बहुओं को काबू में रखो, उन्हें अपने मन की कुछ ना करने दो। इसलिए आप भी अपने ससुराल में सब सह लेती हैं। मगर ऐसा नहीं है, एक परिवार में किसी को दूसरे सदस्य को काबू में रखने की ज़रूरत नहीं है।
मैं जानती हूं, ये सब नया सा लगता होगा आपको, कई दफा शायद बेढंगा भी। पर बदलाव आपके लिए भी ज़रूरी है और मेरे लिए भी। इसकी वजह से ही हम एक बेहतर परिवार बन पाएंगे।