मिलिए सामाजिक हिंसा से लड़कर कानून को नया रुख देने वाली महिलाओ से

भारत में महिलाओं को रुढ़िवादी समाज का सामना करना पड़ता हैं। संविधान बनने से लेकर संशोधन तक आज भी महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के लिए कानूनों की जरूरत महसूस होती हैं। शाह बानो से लेकर वर्तमान तक ऐसे कई उदाहरण जिन्होंने इस व्यवस्था से संघर्ष किया हैं।

सत्य रानी चड्ढा- दहेज के खिलाफ

जब अपनी ही बेटी का उसका कहा जाने वाला घर "ससुराल" उसे दहेज के लिए जिंदा जला दें, तो रूह कांप सी जाती हैं। यही हुआ इनकी 20 वर्षीय बेटी के साथ, लेकिन इन्होंने न्याय मांगा था। और दहेज के खिलाफ नियमों को मजबूती दी था।

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भँवरी देवी- यौन हिंसा के खिलाफ

विशाखा गाइड्लाइन का जारी होना इन्हीं का संघर्ष बताता हैं। एक आँगनबाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर जब समाज को बदलने का प्रयास किया तो यौन हिंसा का सामना करना पड़ा। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़ना का नियम इनका ही योगदान हैं।

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सतविन्दर कौर- Abodned एन. आर. आई. दुल्हन

पंजाबी लड़कियों को एन. आर. आई. दुल्हे शादी के बाद बेरहमी से छोड़ दिया जाता हैं। उन्होंने Abodned एन. आर. आई. दुल्हन के लिए सामूहिक आवाज उठाई थीं। और एफ. आर. आई. दर्ज करवाई और लड़ाई लड़ीं थीं।

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मंजु खातिक - घरेलू हिंसा

जब घर पर ही हिंसा हो तो उसके लिए सहने की नहीं कानून का दरवाजा खट खटाने की जरूरत होती है। ऐसा ही इन्होंने किया और एक सामूहिक आवाज बनकर गाँव मे होने वाली घरेलू हिंसा की रोकथाम की।

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मीतू खुराना- फीमैल फेटीसाइड

एक शिक्षित कहे जाने वाले घर में जब अवैध लिंग चेक का दबाब उन पर डाला गया, तब उन्होंने रिश्तेदारों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने आवाज उठाई और भ्रूण हत्या का केस लड़ा। PCPNDT के तहत पहला सफल कन्विक्शन दिलवाया।

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शाह बानो- तीन तलाक

जब 60 वर्ष पर पति द्वारा तलाक दे जाएं साथ ही 5 बच्चों की जिम्मेदारी हो, तो सफर आसान नहीं होता। इन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाकर गुजारा भत्ता मांग की और भारतीय महिलाओं के हक के लिए आवाज उठाई।

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महिलाएं हार न माने

भारत का कानून महिलाओं के लिए हर तरह की हिंसा के लिए कानून बनाता हैं। साथ ही न्याय दिलाना भी अपना कर्तव्य समझता हैं। घरेलू हिंसा से लेकर सामाजिक हिंसा सबसे लड़ने के लिए महिलाओं ने लंबी यात्रा तय की हैं। इसलिए, भारतीय कानून भी महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान रखता हैं।

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