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किरण राव की शार्ट फ़िल्में 10 सेकंड में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देती हैं

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Swati Bundela
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यह बिलकुल नामुमकिन है की महिला सशक्तिकरण पर मजबूत संदेशों को दस सेकंड से भी कम में लोगो तक पहुँचाया जा सके, क्या ऐसा हो सकता है? लेकिन यह ऐसा फिल्म निर्माता किरण राव ने अपनी दो शार्ट फिल्मों में कर दिखाया है । ये दस सेकेंड की फिल्में इतने कम समय में महिला सशक्तिकरण पर एक मज़बूत सन्देश देने के लिए सोशल मीडिया पर वाहवाही बटोर रही हैं। एक क्लिप में एक नौकरानी अपनी घायल मालकिन को अपना फ़ोन  देती हुई देखी जा सकती है तांकि उसकी मालकिन घरेलु हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठा सके।  फिल्म संदेश के साथ समाप्त होती है, "साहस दिखाने में कुछ सेकंड लगते हैं।" दूसरी फिल्म में, एक भाई को अपनी बहन के गिलास में कुछ दूध डालते हुए दिखाया गया है क्योंकि उसकी माँ ने उसे ज़्यादा दूध और उसकी बहन को कम दूध दिया है उस लड़के ने यह देखकर अपना दूध अपनी बहन के साथ बांटा और समानता का सन्देश दिया है। ऐसे ही आजकल की रूढ़िवादी सोच को बदलने में कुछ सेकंड लगते हैं।

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महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए यह छोटे-छोटे कदम उठाये गए है, क्योंकि ये छोटी चीजें पुरुषप्रधान समाज और लिंग हिंसा से मुक्ति पाने के लिए इन महिलाओं को एक कदम आगे बढ़ाने में मदद करेगी।



इन दो शार्ट फिल्मों के बारे में सबसे विशेष बात यह है की छोटी होने के बावजूद भी यह एक बहुत महत्वपूर्ण सन्देश देती हैं । बदलाव लाने के लिए, हिम्मत दिखाने के लिए, रूढ़ियों और पुरुषप्रधान सोच को तोड़ने के लिए। इन कुछ सेकंडों को एक-दूसरे के नज़रिये से एक शक्तिशाली आंदोलन के लिए है जो लाखों महिलाओं और लड़कियों के जीवन को प्रभावित करता है, जो उनके सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण को बदलता है। महिला मामलों को सशक्त बनाने के लिए उठाए गए छोटे कदम, क्योंकि ये छोटी चीजें पुरुष -प्रधान सोच और लैंगिक हिंसा से मुक्ति पाने के लिए इन महिलाओं की मदद कर सकता हैं।

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एक और बात जो मुझे इन लघु फिल्मों के बारे में पसंद आई वह यह है कि यह रूढ़िवादी मान्यताओं को चुनौती देती है जिन्हें हममें से कई लोग करते हैं। हम अक्सर यह मानते हैं कि घरेलू हिंसा एक ऐसा मुद्दा नहीं है जिससे आर्थिक या सामाजिक रूप से अच्छी महिलाओं को निपटना पड़ता है। किरण की एक शार्ट फिल्म में एक नौकरानी को अपनी मालकिन को घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए प्रोत्साहित करते हुए दिखाया है । यह फिल्म हमें अपनी सोच को बदलने के लिए मजबूर करती  है। दूसरी फिल्म में, एक लड़का समानता के लिए आवाज़ उठा रहा है । बदलाव दिखाया गया है। वह अपनी मां को अपने और अपनी  बहन के बीच भेदभाव करने के लिए मना कर रहा है और खुशी से अपनी बहन के गिलास में कुछ दूध डाल देता है जब तक कि वे ’समान रूप से भरे हुए’ न हों। यह सभी पुरुषों के लिए एक प्रेरणा है जो तकियानुसी सोच  को दूर करता हैं और महिलाओं को उनके बराबर दिखता हैं। पुरुषों को महिलाओं के सशक्तीकरण में अपना योगदान समझना चाहिए और उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।



किरण राव की फिल्में हमारे समाज की कठोर असलियतों से हमारा सामना करवाती हैं; वे हमें न्याय के खिलाफ आशा और उम्मीद से खड़े होने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। वे यह भी बताते हैं कि महिलाओं को मुक्त करने के लिए हम जो कदम उठाते हैं, वह छोटा है पर प्रभावी हो सकते है।
#फेमिनिज्म
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