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इस ग्लोबलाइजेशन और मोडर्निज़ेशन के सदी में, जहां बस आर्थिकता ही नही बल्कि सोच विचारो का भी आदान प्रदान हो रहा है वहां इकीसवीं सदी में एक बहुत ज़रूरी विषय ये है कि क्या एक औरत का आर्थिक तरह से आज़ाद होना ज़रूरी है या नही और अगर है तो आखिर क्यों?
भारत में जहां 2017 के सेन्सस के अनुसार 48.18% महिलाएं रहती है, वहां सिर्फ 27% औरते तृतीयक श्रम में है । सिर्फ 17% औरतो की एक स्थिर आमदनी है। ब्रिक्स देश में ये सबसे कम प्रतिशत है।
भारत जैसे देश में जहां घरेलू हिंसा के कारण लाखो महिलाये अपनी जान गावा देती है, जहां कन्या भ्रूण हत्या की जाती है, जहां अभी भी औरतो पे तरह तरह के जुल्म होते है वहां आर्थिक तरह से आज़ाद होना काफी आवयशक है। आज भी खेती में महिलाओं का पुरुषों से ज्यादा योगदान है , किन्तु सारी ज़मीन या तो मालिक के या पति के नामपे होती है । श्रम करने वाली औरत को श्रम का उचित मूल्य नही दिया जाता ।
अक्सर काम न करने वाली महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती है, इसका एक बहुत बड़ा कारण अर्थिक निर्भरता है। एक औरत अपने पति पे इस रूप से निर्भर होती है। इससे निकलने के लिए औरत को अपने ज्ञान का इस्तेमाल कर , अपने और अपने बच्चों को आर्थिक रूप से आज़ाद करना ही पड़ेगा। एक अर्थिक रूप से आज़ाद महिला ज्यादा हिम्मतवार और स्वछन्द होती है।
एक महिला जब कमाती है तो उससे परिवार को आर्थिक सहायता मिलती है। परिवार में उसका कद भी ऊंचा होता है एवं घरेलू हिंसा या भावुक तरह से हिंसा का प्रयोग कम होजाता है। आर्थिक रूप से आजाद होकर एक महिला के सेल्फ कॉन्फिडेंस एवं मोराल को बढ़ाता है और वो सब कर सकती है बिना किसी रोक टोक के।
अक्सर ये देखा गया है कि एक औरत अपने पति के शोषण को इसीलिए झेलती है ताकि वो उसे तलाक न दे। इसमें जब एक महिला आज़ाद होगी तो उसे किसी के सहारे की ज़रूरत नही पड़ेगी, वो खुद ही अपने और अपने बच्चों को संभाल सकती है। कई औरतों घर से काम कर सक्सेसफुल उद्यमियों के रूप में उभर के आती है।
आखिर में एक आर्थिक रूप से आज़ाद महिला सिर्फ अपने कार्य में ही नही , अपने परिवार को संभालने में भी शशक्त है। अब औरते सिर्फ टीचर जैसे ही नही बल्कि बड़ी पोस्ट पे बड़ी नौकरियों में अव्वल हो सकती है।
प्रतिशत के अनुसार
भारत में जहां 2017 के सेन्सस के अनुसार 48.18% महिलाएं रहती है, वहां सिर्फ 27% औरते तृतीयक श्रम में है । सिर्फ 17% औरतो की एक स्थिर आमदनी है। ब्रिक्स देश में ये सबसे कम प्रतिशत है।
क्यों है ये आर्थिक आज़ादी ज़रूरी?
भारत जैसे देश में जहां घरेलू हिंसा के कारण लाखो महिलाये अपनी जान गावा देती है, जहां कन्या भ्रूण हत्या की जाती है, जहां अभी भी औरतो पे तरह तरह के जुल्म होते है वहां आर्थिक तरह से आज़ाद होना काफी आवयशक है। आज भी खेती में महिलाओं का पुरुषों से ज्यादा योगदान है , किन्तु सारी ज़मीन या तो मालिक के या पति के नामपे होती है । श्रम करने वाली औरत को श्रम का उचित मूल्य नही दिया जाता ।
घरेलू हिंसा का सबसे बड़ा कारण
अक्सर काम न करने वाली महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती है, इसका एक बहुत बड़ा कारण अर्थिक निर्भरता है। एक औरत अपने पति पे इस रूप से निर्भर होती है। इससे निकलने के लिए औरत को अपने ज्ञान का इस्तेमाल कर , अपने और अपने बच्चों को आर्थिक रूप से आज़ाद करना ही पड़ेगा। एक अर्थिक रूप से आज़ाद महिला ज्यादा हिम्मतवार और स्वछन्द होती है।
परिवार की सहायता करना
एक महिला जब कमाती है तो उससे परिवार को आर्थिक सहायता मिलती है। परिवार में उसका कद भी ऊंचा होता है एवं घरेलू हिंसा या भावुक तरह से हिंसा का प्रयोग कम होजाता है। आर्थिक रूप से आजाद होकर एक महिला के सेल्फ कॉन्फिडेंस एवं मोराल को बढ़ाता है और वो सब कर सकती है बिना किसी रोक टोक के।
तलाक के बाद किसी पे बोझ नही बनना
अक्सर ये देखा गया है कि एक औरत अपने पति के शोषण को इसीलिए झेलती है ताकि वो उसे तलाक न दे। इसमें जब एक महिला आज़ाद होगी तो उसे किसी के सहारे की ज़रूरत नही पड़ेगी, वो खुद ही अपने और अपने बच्चों को संभाल सकती है। कई औरतों घर से काम कर सक्सेसफुल उद्यमियों के रूप में उभर के आती है।
अंत में
आखिर में एक आर्थिक रूप से आज़ाद महिला सिर्फ अपने कार्य में ही नही , अपने परिवार को संभालने में भी शशक्त है। अब औरते सिर्फ टीचर जैसे ही नही बल्कि बड़ी पोस्ट पे बड़ी नौकरियों में अव्वल हो सकती है।