शीदपीपल.टीवी ने शुभ्रा गुप्ता से अकेले फिल्म देखने जाने के विषय में बात करी.उन्होंने इस ट्रेंड का समर्थन करते हुए कहा," आप फिल्म अकेले देखते हैं तो आपके और फिल्म के बीच कुछ भी नही होता. मेरे अनुसार यदि महिलाएं स्वयं फिल्में देखने जा सके तो इससे ज़्यादा स्वंत्रता हो ही नही सकती."
अकेले फिल्म देखने जाने के फायदों के विषय में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा," इससे आप किसी पर मौताज नही हैं. यह भी ज़रूरी नही है की आपके साथ कोई हमेशा हो. आप दूसरों के साथ भी फिल्म देखने जा सकते हैं परंतु अकेले फिल्म को देखने और उसे महसूस करने का एक अलग ही मज़ा है. एक अलग ही कनेक्शन बनता है आपके और फिल्म के बीच में.”
उन्होंने यह भी कहा कि यदि किसी महिला को फिल्म देखने में बहुत आनंद मिलता हो तो उससे किसी और कि प्रतीक्षा नही करनी चाहिए. अब वक्त आ गया है कि आप खुद जाइये, देखिये और उस फिल्म का मज़ा लीजिये.
शीदपीपल.टीवी ने दिल्ली में स्थित अनुपमा कथूरिया से बात करी. इन्होनें २०१५ में कंगना रनौत कि फिल्म क्वीन अकेले देखने का निर्णय लिया.
"मुझे क्वीन देखने का बहुत मन था. मेरी बेटी दिल्ली में नहीं थी. मैं पहले तो फिल्म अकेले देखने से हिचकिचा रही थी पर फिर मुझे किसी ने बताया कि क्वीन में कंगना अकेले अपने हनीमून में पेरिस गयी थी. मैंने सोचा यदि वह पेरिस अकेले जा सकती है तो मैं फिल्म देखने क्यों नही जा सकती. बस, मैं अकेले फिल्म देखने गयी और यह एक बहुत ही आनंदमयी अनुभव रहा."
गिन्नी मल्होत्रा, जिन्होंने मैरी कॉम अकेले देखी, कहती हैं,
"मैं नहीं चाहती थी कि मैरी कॉम जैसी फिल्म में कोई भी मेरे साथ हो. मैं उस फिल्म के ट्रेलर से बहुत प्रभावित थी. मैं एक दिन कुछ समय निकालकर अकेले ही फिल्म देख आयी. किसी और पर निर्भर रहने से अच्छा है कि हम खुद ही वह सब करें, जो हमें ख़ुशी देता है."
हम इस नयी सोच को सलाम करते हैं और आशा करते हैं भारत की अनेक महिलाएँ इतनी सशक्त हो जाएँ कि वह इसी प्रकार अपने निर्णय खुद ले सके.