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उसके सपने आसमान को छूने के थे और उन्होने वो सपना पूरा किया : मिलिए कॅप्टन जसविंदर कौर से

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Swati Bundela
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जसविंदर कौर कोई आम लड़की हो सकती थी एक छोटेसे गाव से. पर उन्होने अपना अलग रास्ता चुना. उनका लक्ष था आसमानो मे उड़ना और उन्होने सपनो का पीछा किया उन्हे पाने के लिए. बारह (१२) साल की उम्र मे उन्होने ये तय कर लिया - जसविंदर को पायलट बनना ही है. दिल्ली मे खुद के बल पे रहते हुए, उन्होने अपने कुछ घरेलू विमान उड़ानो के अनुभव शेर किए. बातचीत के कुछ अंशः यहां हैं:
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आपके पायलट बनने के ख्वाब के पीछे क्या किसीकि प्रेरणा है?



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वह मेरा बचपन से ख्वाब था.  "मुझे आसमान मे उड़ना है." यह उद्धरण मेरे हर पुस्तक के पहले पन्ने पे लिखा हुआ रहता था.



आपको पायलट बने लगभग दशक हो चुका है. अपने इस यात्रा के बारे मे कुछ शेर करे.

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मैने छोटेसे गाव से शूरवात की बिना किसी विमान पृष्ठभूमि से. उस युग मे इंटरनेट और गूगल आज के युग जैसे आसानी से उपलब्ध नही होते थे. "पायलट कैसे बने" ये जानना दूर के परियों की कहानी जैसा लग रहा था. मेरी महत्वाकांक्षा को उस समय प्रारंभ मिला जब मेरे प्रमुख उड़ान प्रशिक्षक बेतरतीब ढंग से मेरे पिताजी को टकराए और उनकी बातचीत चालू हुई. अगली चीज़, मैं शामिल हुई थी हरियाणा के पिंजोर उड़ान संस्थान मे सीखने के लिए. मैने शूरवात की छोटेसे पीले दो सीटों वाले हवाई जहाज़ से और अपने ख्वाब "आसमान में उड़ना" के साथ जी रही थी.



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जब मैने शूरवात की, तब पायलट के लिए ज़्यादा नौकरियों नही थी लेकिन यह अंत हो गया विमान के बुरे दौर का जब शूरवात हुई कम लागत वाली विमान से. तो मौके रेह्ते थे. एयर डेक्कन से मैने पहला बीड़ा उठाया, एटीआर बेड़ा मे सह पायलट के पद से शूरवात करके  मुझे मेरे पायलट पंख मिले जो की क्षेत्रीय टर्बोप्रॉप विमान था. जब २००८ मे किंग फिशर और एयर डेक्कन का विलयन हुआ, तब मुझे एयरबस ए-३२० का संक्रमण मिला और २०११ मे किंगफिशर एयरलाइन्स के एयरबस ए-३२० की मे कफ़्तान बनी. जब २०१२ मे खुद को किंग ऑफ गुड टाइम्स घोषित करनेवाले किंगफिशर एयरलाइन्स बंद हुई तब मे २०१३ मे वाडिया के गो एयरलाइन्स मे शामिल हो गयी, यह अछा दशक था जिसमे मैने काफ़ी उतार और चढ़ाव भी देखे.





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महिलाए बड़ी आसानी से कॉकपिट और किचन को संभाल रही है...



किन कठिनाइयों से आपको सामना करना पड़ा जब आपने इसमे करियर की शुरुवत की? आपने  कैसे इस पर काबू पाया?

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पहली कठिनाई यह थी की मेरे पास कोई सूचना नही थी की इस सपने को कैसे पूरा करू. एक छोटे शहेर से आना और वो भी बिना एवियेशन पृष्ठभूमि के लेकिन ये रास्ता मैने अपनी हिम्मत से चुना और व्यावहारिक अनुभव से जो मुझे मेरे फ्लाइयिंग स्कूल के शिक्षको से मिला.



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एक लड़की और घर मे सबसे बड़ी मे थी अपने भाई बेहेनो मे इसलिए मेरे घर मे सबको शंका हो रही थी खास करके मेरे दादी को लेकिन मुझे मेरे मा और पापा ने बहुत समर्थन दिया. उसी समय मे काफ़ी स्वतंत्र भी थी अपने खुद के निर्णय लेने मे चाहे वो दिल्ली जाना हो परिशा देने के लिए या विदेश जाना हो मल्टी एंजिन की ट्रैनिंग के लिए.



अगर कही कोई मुश्किल होती तो वहा काफ़ी सारे लोग थे जो मुझे भरोसा देते थे जैसे मेरी फॅमिली, रिश्तेदार, मित्र और शिक्षक.





मे हमेशा से आकाश मे उड़ना चाहती थी.



क्या तभी काफ़ी महिला पाइलट्स थी जिसको देखके आप प्रभावित हुई?



जब मैने फ्लाइयिंग की ट्रैनिंग लेना चालू की तब ज़्यादा महिला पाइलट्स नही थी. जब मे परिशा देने जाती थी तभी मे सिर्फ़ १०-१५ महिला पाइलट्स जो मेरे साथ होती थी १५०-२०० पाइलट्स के बीच मे जो इतना भी बुरा नही था क्यूकी आज भी पूरी दुनिया मे सिर्फ़ ५% महिलाए पाइलट्स है.



आज इंडिया मे सबसे ज़्यादा शृंखला है महिला पाइलट्स की और ऐसा भी समय आता है जब हम पुरी महिला टीम के साथ फ्लाइ करते है.



आप महिलाओ से क्या कहेना चाहोगे जो इस प्रोफेशन मे है?



एक समय था जब पाइलट्स के प्रोफेशन को मर्दो का हावी प्रफेससिओं कहा जाता था और कॅबिन क्र्यू को महिलाओ का प्रोफेशन लेकिन अब यह भूमिका बदल गयी है इंडिया मे क्युकि आज महिलाए पाइलट्स बनना पसंद कर रही है कॅबिन क्र्यू से ज़्यादा उनके करियर के लिए. दूसरे नौकरी की तरह, महिलाए बड़ी आसानी से कॉकपिट और किचन को संभाल रही है.



आपके हिसाब से प्रगती का मतलब क्या है आपके के लिए?



मेरे लिए प्रगती का मतलब निरंतर प्रक्रिया है कुछ नया सीखने की हर दिन.



वो कौन से सदस्य है जो आपको ये काम करने के लिए प्रेरित करते है?



किसी सदस्य से ज़्यादा ये मेरे बचपन का सपना था जो मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.



 



 



 
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