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भारत की वर्तमान स्थिति कुच्छ इस प्रकार है की हर तरफ एक खिंचाव है, एक तनाव. यह तनाव है पारंपरीकता एवं आधुनिकता के बीच.
पित्त्रसत्ता के चलते, महिला की अधिक्तर भूमिका घरेलू क्षेत्र में सीमित रह जाती है. हालाकी स्थिति में अब कुच्छ सुधार आया है, सन् 1989 में जब महिला समाख्या की शुरुआत हुई, स्थिति कई बत्तर थी.
आज महिला समाख्या देश के 9 प्रदेशों के शहरों के 12000 गाँवों मे पहुँच चुका है. इन प्रदेशों मे झारखंड व बिहार भी शामिल हैं. महला समाख्या देश की संस्कृति से उत्पन्न होने वाले लैंगिक भेद भाव को रोकता है, और महिला शिक्षा प्रदान करता है. वैकल्पिक शिक्षा केंद्र, आवासीय शिविर व प्रारंभिक विकास केंद्र के मध्यम से वे यह बदलाव लाते रहे हैं. महिला समाख्या को प्राप्त होने वाली राशि केंद्र शिक्षा मंत्रालय, वर्ल्ड बॅंक व यूनिसेफ से आती है. भाग लेने वाली महिलाओं की बराबर भागीदारी के द्वारा, समाख्या इन महिलाओं का क्षमता निर्माण करते हैं एवं सामाजिक या पेशेवर जीवन में आने वाली कई समस्याओं को सुलझाने की योग्यता से लैस करते हैं.
हाल ही में सरकार द्वारा की गयी घोषणा मे यह जानकारी आई के महिला समाख्या अब एक स्वतंत्र कार्यक्रम ना रहते हुए, राष्ट्रीय ग्रामीण श्रम मिशन (NRLM) का भाग होगा. कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने महिला समाख्या के काम की प्रशंसा की है, और हो भी क्यों ना? अपने 26 वर्ष के कार्यकाल में, समाख्या ने कुल 1500000 महिलाओं के जीवन मे सतत प्रगती की स्थापना की है.
हर सरकार ने समय-समय पे महिला समाख्या से होने वाले विकास का श्रेय लिया है. इस कार्यक्रम पर होने वाले खर्च के बदले में होने वाला विकास, बहुत फ़ायदे का सौदा रहा. समाख्या द्वारा बनाए जाने वाले समूह का खर्चा केवल 3 वर्ष तक समाख्या का उत्तर्दायित्व होता है, जिसके पश्चात वे समूह स्व-सक्षम मान लिए जाते हैं. 11वी आयोग योजना के अनुसार, सरकार द्वारा इस परियोजना पर 200 करोड़ का परिव्यय था,जिसमें से Livemint द्वारा किए गये मूल्यांकन के अनुसार, लाभार्थी महिलाओं ने कुल 160 करोड़ का आर्थिक योगदान किया. 12वी आयोग योजना ने यह स्वीकार किया के महिलाओं के विकास में होने वाला व्यय काफ़ी कम है. इससे पहले के इसपर अमल किया जाता, सरकार ने योजना रद्द कर, नीति आयोग की स्थापना की.
इस कार्यक्रम का स्वतंत्र रूप से जारी रहना बहुत महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से अब, जब डिजिटल रेवोल्यूशन की तैय्यरी है. इससे इन महिलाओं को प्राप्त होने वाले रोज़गार विकल्पों में विविधता आने की पूर्ण संभावना है. इंटरनेट पे नागरिकों ने पेटिशन की शुरुआत भी की है. वे सरकार से अपने निर्णय पे दोबारा विचार करने का अनुरोध कर रहे हैं.
पित्त्रसत्ता के चलते, महिला की अधिक्तर भूमिका घरेलू क्षेत्र में सीमित रह जाती है. हालाकी स्थिति में अब कुच्छ सुधार आया है, सन् 1989 में जब महिला समाख्या की शुरुआत हुई, स्थिति कई बत्तर थी.
आज महिला समाख्या देश के 9 प्रदेशों के शहरों के 12000 गाँवों मे पहुँच चुका है. इन प्रदेशों मे झारखंड व बिहार भी शामिल हैं. महला समाख्या देश की संस्कृति से उत्पन्न होने वाले लैंगिक भेद भाव को रोकता है, और महिला शिक्षा प्रदान करता है. वैकल्पिक शिक्षा केंद्र, आवासीय शिविर व प्रारंभिक विकास केंद्र के मध्यम से वे यह बदलाव लाते रहे हैं. महिला समाख्या को प्राप्त होने वाली राशि केंद्र शिक्षा मंत्रालय, वर्ल्ड बॅंक व यूनिसेफ से आती है. भाग लेने वाली महिलाओं की बराबर भागीदारी के द्वारा, समाख्या इन महिलाओं का क्षमता निर्माण करते हैं एवं सामाजिक या पेशेवर जीवन में आने वाली कई समस्याओं को सुलझाने की योग्यता से लैस करते हैं.
हाल ही में सरकार द्वारा की गयी घोषणा मे यह जानकारी आई के महिला समाख्या अब एक स्वतंत्र कार्यक्रम ना रहते हुए, राष्ट्रीय ग्रामीण श्रम मिशन (NRLM) का भाग होगा. कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने महिला समाख्या के काम की प्रशंसा की है, और हो भी क्यों ना? अपने 26 वर्ष के कार्यकाल में, समाख्या ने कुल 1500000 महिलाओं के जीवन मे सतत प्रगती की स्थापना की है.
हर सरकार ने समय-समय पे महिला समाख्या से होने वाले विकास का श्रेय लिया है. इस कार्यक्रम पर होने वाले खर्च के बदले में होने वाला विकास, बहुत फ़ायदे का सौदा रहा. समाख्या द्वारा बनाए जाने वाले समूह का खर्चा केवल 3 वर्ष तक समाख्या का उत्तर्दायित्व होता है, जिसके पश्चात वे समूह स्व-सक्षम मान लिए जाते हैं. 11वी आयोग योजना के अनुसार, सरकार द्वारा इस परियोजना पर 200 करोड़ का परिव्यय था,जिसमें से Livemint द्वारा किए गये मूल्यांकन के अनुसार, लाभार्थी महिलाओं ने कुल 160 करोड़ का आर्थिक योगदान किया. 12वी आयोग योजना ने यह स्वीकार किया के महिलाओं के विकास में होने वाला व्यय काफ़ी कम है. इससे पहले के इसपर अमल किया जाता, सरकार ने योजना रद्द कर, नीति आयोग की स्थापना की.
इस कार्यक्रम का स्वतंत्र रूप से जारी रहना बहुत महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से अब, जब डिजिटल रेवोल्यूशन की तैय्यरी है. इससे इन महिलाओं को प्राप्त होने वाले रोज़गार विकल्पों में विविधता आने की पूर्ण संभावना है. इंटरनेट पे नागरिकों ने पेटिशन की शुरुआत भी की है. वे सरकार से अपने निर्णय पे दोबारा विचार करने का अनुरोध कर रहे हैं.