नीना लेखी एक इंटरप्रेन्योर तब बनी जब इंटरप्रेन्योर जैसे शब्द फैशन में भी नही थे. नीना ने बैगईट नाम का पहला बैग एंटरप्राइज शुरू किया. बैग्स सौ करने से लेकर, बैग्स पेंट करने तक, नीना सब कुछ खुद करना चाहती थी.
नीना लेखी एक इंटरप्रेन्योर तब बनी जब इंटरप्रेन्योर जैसे शब्द फैशन में भी नही थे
उन्होंने हाली में एक किताब लिखी है जिसका नाम है ," बैग ईट आल". शीदपीपल.टीवी की तारा खंडेलवाल ने उनसे उनकी किताब, उनकी जर्नी और उनकी चुनौतियों के विषय में बात करी.
नीना लेखी एक इंटरप्रेन्योर तब बनी जब इंटरप्रेन्योर जैसे शब्द फैशन में भी नही थे. नीना ने बैगईट नाम का पहला बैग एंटरप्राइज शुरू किया. बैग्स सौ करने से लेकर, बैग्स पेंट करने तक, नीना सब कुछ खुद करना चाहती थी.
"मैं अपने कॉलेज के पहले ही साल में फ़ैल हो गयी थी. ऐसा नही था कि मैं कुछ बहुत मुश्किल कर रही थी. अगर मैं एक इंटरप्रेन्योर बन सकती हूँ तो कोई भी बन सकता है. पर ऐसी बहुत साड़ी चीज़ें थी जिन्होंने मेरी मदद करी जैसे खुद को ट्रैन करना, अपने सपनो पर विश्वास करना और निरंतर उनकी तरफ आगे बढ़ना."
"कॉलेज के पहले साल में असफल होने के बाद मैंने एक प्रिंटिंग कोर्स किया. अब मुझे बैग्स पर प्रिंटिंग करने का सुझाव आया. चुनौती यह थी के मेरे परिवार में आजतक किसी महिला ने इससे पहले बिज़नस नही किया था. मेरे माता पिता इस आईडिया को सुनकर ज़्यादा खुश नही थे. बैग्स खरीदने के लिए मेरी मुम्मी मेरे साथ आती थी."
अपने काम और जीवन में संतुलन बनाये रखने के विषय में उन्होंने कहा कि उनके परिवार ने उनकी हिम्मत बड़ाई है. यदि वो प्रत्येक कदम पर मेरे साथ न होते तो मेरे लिए शाद्दी के बाद काम करना बहुत मुश्किल हो जाता.