इस एक परिवर्तन से, इतिहास पहली बार किसी महिला अंपाइयर को एक अंतरराष्ट्रीय कप के मैदान पर देखेगा| इस कप के पहले हुए क्वालिफाइयर में भी इन दो महिलाओं समेत इंग्लेंड की सू रेडफर्न और वेस्ट इंडीस की जक्क़ेलिने विल्यम्स को अंपाइयर का कर्तव्य अदा करने के लिए चुना गया था|
हमारा लक्ष्य है सवाल उठाना- कितना और समय लगेगा जिसके बाद महिलायें अपने खेल के नियम खुद तय करेंगी?
लोग कहते हैं की यह खेल के क्षेत्र महिलाओं के लिए एक ऐतिहासिक समय है, और मैं सोचती हूँ क्यों| हालाकी मैं यह मानती हूँ की इन 2 महिलाओं का अंपाइयर्स के 31 सदस्यों के पानेल का हिस्सा बनना, जो दोनो पुरुष व महिला वर्ल्ड कप का पर्यवेक्षण करेंगे, बड़ी बात है| मेरे लिए चौंका देने वाली बात यह है कि यह महिलायें किसी भी पुरुष मॅच में अंपाइयर नहीं रहेंगी| महिलाओं की स्वतंत्रता का मार्ग अभी बहुत लंबा है|
यह हमें अपने समाज की संस्कृति के बारे में क्या बताता है? जब विश्व स्तर की बात आती है, खेल के नियम पुरुष तय करते हैं, यहाँ तक की अगर खिलाड़ी महिलायें हो, तब भी| और क्योंकि दुनिया बदलाव और लैंगिक समानता की बातें कर रही है, हम कुच्छ महिलाओं को सामने ले आते हैं| और दुनिया जीत का जश्न मनाती है|
खेल के क्षेत्र में लिंग समानता सामाजिक लिंग समानता का सबसे शुद्ध प्रतिबिंब होगा, क्योंकि मुख्य रूप से खेल को पुरुष का इलाक़ा माना जाता है
हमारा लक्ष्य इन महान महिलाओं की उपलब्धियों की ठेस पहुँचना नहीं है| हमें पूरा विश्वास है की वे जहाँ पहुँची हैं, वाहा आने के लिए इन महिलाओं को किसी भी औसत मर्द से कई गुना ज़्यादा महनत करनी पड़ी होगी| हमारा लक्ष्य है सवाल उठाना- कितना और समय लगेगा जिसके बाद महिलायें अपने खेल के नियम खुद तय करेंगी?