शास्त्रीय नृत्यांगना और कोरियोग्राफर पद्म श्री-पद्म भूषण श्रीमती मृणालिनी साराभाई अब नहीं रही.97 वर्ष की इस महान हस्ती के बेटी, मल्लिका साराभाई ने फ़ेसबुक पे पोस्ट किया, "मेरी माँ मृणालिनी साराभाई हूमें छोड़ अपने अनंत नृत्य के लिए चली गयी." मृणालिनी भारतीय स्पेस प्रोग्राम के पिता, श्री विक्रम साराभाई की धर्मपत्नी थी. वे पिछले कुच्छ दिनों से बीमार थी, और कल उनकी हालत खराब होने पर उन्हे आहेमदबाद के हस्पताल में भारती किया गया, जहाँ उन्होने आज सुबह दम तोड़ा.
इस दुनिया में कई क्षेत्रों में वे अपनी छाप छोड़ गयी हैं, जैसे की पर्यावरण वकालत, नाच, कविता और लेख. आप यहाँ से उनकी कई किताबों की ए-कॉपी मुफ़्त डाउनलोड कर सकते हैं.
वे हमेशा ही भारतीय शात्रय संस्कृति के दिग्गजों में गिनी जाएँगी. उनका पूरा जीवन कला को समर्पित था और उन्होने अपनी हर साँस कला के नाम की थी. उन्होने दर्पण नृत्य अकॅडमी की स्थापना की थी, जहाँ से लगभग 18000 छात्रों ने भरतनाट्यम और कथककाली में तालीम हासिल की. यहाँ कठपुतली, संगीत और नाटक के अलावा कई स्वदेशी संगीत वाद्यंत्र जैसे मृदानगम और बाँसुरी भी सिखाए जाते हैं, और मार्षल आर्ट कलारीपयट्टू भी.
वे आजीवन कला और कलाकारों से जुड़ी रही. वे उस ज़माने में रबींडरनाथ तगॉर के शांतिनिकेतन में पढ़ने वाली चंद महिलाओं में से थी. उन्होने कथकली की तालीम दिग्गज गुरु तकाज़ी कुंचू कुरूप से प्राप्त की.
नृत्य का अर्थ इनके लिए कुच्छ ऐसा था:
"नाच मेरी साँस है, मेरा राग, नाच मैं खुद हूँ. क्या कभी कोई यह शब्द समझेगा? नृत्य और मेरे अस्तित्व में कोई अलगाव नहीं है. यह मेरी आत्मा की चमक है, जिससे मेरे अंग का हर हिस्सा चलता है. जब मैं नाचती हूँ, तो मैं "मैं" होती हूँ, जो मैं हूँ. चुप्पी मेरी प्रतिक्रिया है, नाच मेरा जवाब."
वे वाकई में एक उत्कृष्ट कृति थी. उनका अनंत नृत्य चलता रहे.