जब दीपिका पादुकोण ने अपने डिप्रेशन के विषय में बात करी तो उन्होंने उस महिला के विषय में भी बताया जिन्होंने उनकी उस समय मदद की. काउंसलर ऐना चंडी ने उनको उनके उस मुश्किल समय में एक दिशा दी. वह बाद में दीपिका पादुकोण की ” लिव लव लाफ फाउंडेशन” की चेयरपर्सन भी बन गई. यह एक ऐसी आर्गेनाईजेशन है जो मानसिक स्वास्थ्य के साथ जुड़े कलंक को मिटाना चाहती है. उनकी नई किताब "बॉटल्स इन द माइंड" उनकी अपनी कहानी है जिसमें वह अपने भावनात्मक दर्द और उसको जीतने के विषय में बात करती हैं. उन्होंने इसमें अपनी ट्रांसक्शनल थैरेपिस्ट बनने की जर्नी के विषय में भी बताया है.
आपने अपनी किताब के द्वारा क्या प्राप्त करने की उम्मीद की थी?
मुझे यह किताब लिखने में 3.5 वर्ष लगे. मैं इस किताब के द्वारा निराशाजनक लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण पैदा करना चाहती थी. मुश्किलों का सामना कैसे करना है, मैं इसका एक जीता जागता उदाहरण है. मुझे अपने जीवन में बहुत समय तक अंधकार नजर आता था और मैं सोचती थी यदि मैं कभी उससे बाहर भी आ पाऊंगी या नहीं. ऐसा ही महसूस करने वाले मैं उन लोगों को यह दिखाना चाहती थी ऐसी स्थिति से बाहर आना संभव है.
अपने लिखने की प्रक्रिया के विषय में कुछ बताइए.
जब मैंने लिखना शुरू किया ,मेरे अंदर की आवाज ने मुझे कहा कि अब समय आ गया है. मैंने अपने ऊपर इतना काम किया हुआ था कि मेरे लिए यह आसान था. परंतु किताब के कुछ ऐसे भाग थे जिनके कारण मुझे गहरी उदासी महसूस हुई. उन्हें लिखने के बाद मुझे 1 से 2 दिन अपनी सामान्य स्थिति में आने में लगे.
किताब में आप उन महिलाओं के बारें में बात करी है जो निर्धारित लिंग भूमिकाओं का पालन करती है. महिलाएं खुद का ख्याल क्यों नहीं रखती? उनकी ज़रूरतें चुप क्यों करा दी जाती हैं ?
मैं इस विषय में बहुत सोचती हूँ. मुझे लगता हैं भारत के संदर्भ में , जन्म से ही, एक लड़की दुनिया को संबंधों के लेंस से देखती हैं. वह दुनिया को अपनी माँ के लेंस से देखती हैं और कभी स्वयं को उस समुदाय से अलग नहीं करती. जब मैंने उन चीज़ो के विरुद्ध आवाज़ उठानी शुरू करि जो मेरे लिए ठीक नहीं थी, तो मुझे सजा दी गयी. सभी मनुष्य एक दुसरे से सभी इंसान जुड़ना और संबंधित रहने चाहते है तो इसलिए अपनी अद्वितीयता को बनाये रखना मुश्किल हैं.
मैं आशा करती हूँ क़ि इस किताब से उन लोगों क़ि बहुत मदद होगी जो व्यक्तिगत स्तर पर संघर्ष कर रहे है और जिन्हें लगता हैं क़ि उनकी समस्याओं का कोई हल नहीं है.
मेरा थेरेपी में अपने एक अच्छा अनुभव रहा है जिसके कारण मैं अपनी जर्नी के विषय में बात कर पायी. मैं थेरेपी में काम कर चुकी हूँ और मैंने काउंसलिंग स्पेस में काफी काम लिया हुआ है जिसके कारण मैं स्वयं को इस प्रकार अपनी कहानी से अलग कर पायी की मैं स्वयं उसको सुना सकू.
क्या महिलाएं सहायता लेने में संकोच करती हैं?
बहुत सी महिलाएं अपने मुद्दों के विषय में बात कर रही हैं. परन्तु अपनी समस्या को स्वीकार करने और उसका हल निकलने के निर्णय के बीच महिलाएं बहुत समय ले लेती हैं. उन्हें ऐसा करने के परिणाम से डर लगता है परन्तु अब उन्हें अपने पहले वाली स्थिति में ही जीने के बजाय परिणाम का सामना करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए.