कुछ समय पहले, महिलाएँ अपनी आकांशाओं का बलिदान देती थी ताकि वह उस "प्रिंस चार्मिंग" से शादी कर सके जिसका इंतज़ार उन्होंने जीवन भर किया था. परन्तु अब स्थिति में काफी बदलाव आ गया है.
आज की सशक्त महिला अपने लिए एक "सोलमेट” का इंतज़ार नहीं करती. आज की महिलाएँ एक आत्मनिर्भर समाज की ओर बढ़ रही हैं. वे केवल अपनी “डेस्टिनेशन वेडिंग” या “हनीमून टूर” के विषय में नही सोचती.
यदि मैं अपनी बात करू तो, मैं शादी करने के लिए बिलकुल भी तत्पर नहीं हूँ. मैं मानसिक रूप से तैयार नहीं हूँ. हम २०१७ में जी रहे हैं और भी प्राप्त करने को कितना कुछ है. नारीवादियों की संख्या बढ़ती जा रही है और अब हम सब एक ऐसे समुदाय का हिस्सा बन रहे हैं जो एक ऐसे समाज बनाने की इच्छा रखता है जिसमें किसी भी एक लिंग को प्राथमिकता नहीं दी जाती.
शीदपीपल.टीवी ने कुछ महिलाओं से बात करी यह जानने के लिए कि हम इस दुनिया को इस अनुसार कैसे बदल सकते हैं जिससे वो शादी न करने वाली महिलाओं के लिए उत्तम बन सके.
गायिका अमांदा इस बात को मानती हैं कि महिलाएँ एक दिन शादी करना चाहती हैं. परंतु वो कहती है कि,"मैं अमरीका और भारत में ऐसी बहुत सी महिलाओं को जानती हूँ जो एक दिन अपने मनपसंद लड़के के साथ शादी करना चाहेंगी. उनके मन में शादी करने कि इच्छा अवश्य है. परन्तु यदि ऐसा नहीं हुआ तो उनका जीवन ख़त्म नहीं हो जायेगा.. परन्तु यदि उनकी शादी हो जाती है तो वह सिर्फ उनकी खुशहाल जीवन में एक "बोनस" का काम करेगी.
शहरी स्वंत्र महिला के लिए क्यों नहीं है अब शादी ज़रूरी?
मैं अमांदा की बात से सहमत हूँ परन्तु मुझे इस बात कि चिंता है कि हम "बराबरी" के विषय में बात करते तो हैं परन्तु हमारे देश के अनेक हिस्सों में शादी को पितृसत्ता से जोड़ा जाता है.
रुआं मुख़र्जी, जो बैंगलोर में काम करती हैं, कहती हैं," शादी एक ऐसी चीज़ नहीं है जो मेरी या मेरी निजी जीवन को परिभाषा दे. मैंने जीवन में जो विकल्प लिए हैं वो केवल अपनी आकांशाओ को ध्यान में रखते हुए लिए हैं. मुझे कितनी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा हो परन्तु मैंने अपने सपनों का पीछा कभी नहीं छोड़ा. परंतु मैं बहुत ही खुशनसीब हूँ जो मुझे अपने जीवन में ऐसे लोग मिले जिन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया.
मैं ये नहीं कहूँगी कि शादी किसी के लिए ज़रूरी नहीं है. परन्तु अब यह मजबूरी नहीं है.
वेदिका गोयल, जो विद यू की फाउंडर, कहती हैं ," मैं ये नहीं कहूँगी कि शादी किसी के लिए ज़रूरी नहीं है. परन्तु अब यह मजबूरी नहीं है. शादी जीवन का एक ऐसा हिस्सा नहीं रहा जो प्रत्येक लड़को को "२५ वर्ष" कि हो जाने पर कर ही लेनी चाहिए.
"आज की महिला के लिए मैरिज एक ज़रुरत नहीं है. शादी केवल तब होनी चाहिए जब आपका किसी के साथ अपने जीवन को बाटने का मन करे. अन्यथा हम खुद में बहुत आत्मनिर्भर हैं", वेदिका कहती हैं.
"मैं शादी के बंधन में विश्वास रखती हूँ. मैं अपने आप को भाग्यशाली समझती हूँ की मैंने अपने आस पास मज़बूत शादियों के उदहारण देखे हैं. मैंने शादियों को टूटते और लोगों को और उनके जीवन को बदलते हुए देखा है. मैं चाहती हूँ कि आजकल की महिलाएँ अपने सपनों को पूरा करें. उन्हें अपना दिमाग अपने जीवन को अपने तरीके से चलाने ले लिए इस्तेमाल करना चाहिए. उनकी जीवन कथा पर किसी और का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए. " रुआं कहती हैं.
"समाज के अनुसार शादी अभी भी एक ऐसा बंधन है जिससे बचना मुश्किल है परंतु आजकल शादी की सच्चाइयाँ और महिलाओं की शादी में भूमिका बदल गयी है जिसके कारण शादी का बंधन कमज़ोर होता जा रहा है. अब महिलाओं ने अपने अधिकार के विषय में बात करनी शुरू कर दी है. उनका विकास में भी बहुत ज़रूरी भूमिका है." दीपा कहती हैं.
शहरी सभ्यता अविवाहित महिलाओं को अच्छी नज़रों से नहीं देखता परंतु " आज कल इसे एक निजी चुनाव की तरह देखा जाता है जिसके कारण बहुत सी महिलाएँ शादी न करने का निर्णय ले रही है.
दूसरी ओर, अंजना रामाकृष्णनजो बेंगलुरु में काम करती हैं, सोचती हैं की शादी आज के समय में बिलकुल ज़रूरी नहीं है. " पहले के समय में परिवार शादी को एक ज़रुरत मानती थी क्योंकि शादी महिलाओं की वित्तीय सुरक्षा के लिए ज़रूरी है. परन्तु अब सब बदल गया है. हम आज़ाद हैं और हमारे पास शादी को मात्रा एक विकल्प की तरह देख सकते हैं.", अंजलि कहती हैं.
"हमें अपने जीवन में कोई भी ऐसा नहीं चाहिए जो हमें बताएं की हमें जीवन में क्या करना है और क्या नहीं. यदि हम भारतीय शादियों की बात करें, तो आप अपने पति के परिवार वालों की बातें ज़्यादा सुनती हुई पायी जाएँगी. मैं किसी और के अनुसार अपना जीवन व्यतीत नहीं करना चाहती. " कहती हैं मुंबई की रहने वाली सिमरन बनवैत जो भारत में शादी के "असमानता" के सच को सामने लाती हैं.
"आजकल की महिलाएँ खुद के लिए कमा सकती हैं और अपना ध्यान भी स्वयं रख सकती हैं. उन्हें किसी पुरुष के घर पे निर्भर रहने की ज़रुरत नहीं है.- बेंगलुरु में रहने वाली तस्नीम सरदारिआ कहती हैं.
इससे यह साफ़ हो जाता है की शादी करना या न करना प्रत्येक महिला के ऊपर निर्भर करता है.