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मशहूर बंगाली फिल्म्स के डायरेक्टर अनिरुद्ध रॉय चौधरी ने पहली बार हिंदी फिल्म 'पिंक' डायरेक्ट की है, जिसकी कहानी दिलचस्प और दमदार है। हर लड़की को क्या पहना है, क्या खेलना है, कैसे बैठना है, इस सबसे आज़ादी होनी चाहिए . सूजित सरकार के पास डाइरेक्टर रॉय यह कहानी बंगाली फिल्म के लिए लाए थे लेकिन साकार को लगा यह कहानी हिन्दी मे पुर देश को दिखानी ज़रूरी थी.
सुजीत सरकार अप्नी फिल्म पिंक के बारे में बात चीत करते है शी द पीपल से
यह कहानी दिल्ली में रहने वाली तीन वर्किंग लड़कियों मीनल अरोड़ा(तापसी पन्नू), फलक अली (कीर्ति कुल्हाड़ी) एंड्रिया तेरियांग (एंड्रिया तेरियांग) की है. कहानी कुछ ऐसे है. एक रात एक रॉक कॉन्सर्ट के बाद पार्टी के दौरान जब उनकी मुलाकात राजवीर (अंगद बेदी) और उसके दोस्तों से होती है तो रातो रात कुछ ऐसे घटनायें होती है
जिसकी वजह से मीनल, फलक और एंड्रिया डर सी जाती हैं. कहानी और दिलचस्प तब बनती है जब इसमें वकील दीपक सहगल (अमिताभ बच्चन) की एंट्री होती है. तीनों लड़कियों को कोर्ट जाना पड़ता है और उनके वकील के रूप में दीपक उनका केस लड़ते हैं. कोर्ट रूम में वाद विवाद के बीच कई सारे खुलासे होते हैं और अंततः क्या होता है, इसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
यह कहानी ग्रिपिंग है और तीन लड़कियों की आज़्ज़ादी, हिम्मत और दर से डील करती है. इस कहानी के ज़रिए डाइरेक्टर रॉय आंड प्रोड्यूसर सरकार महिलयों की ज़िंदगी पर एक टिप्पणी है. क्या औरतों को अप्नी ज़िंदगी उपना दूं पर जीना का कोई हक नही? क्यो सोसाइटी उनपर उंगली उठाती है और जड्ज्मेंटस करती है?