बजेट का मौसम आ चुका है| यह साल का वह समय है जब आम-इंसान समान की खरीदारी कर लेता है, महँगाई की एक नई लहर की अपेक्षा में| कल प्रस्तुत हुआ रेलवे बजेट महिलाओं के लिए आशाजनक रहा| रेल आरक्षण में महिलाओं को अब से 33% आरक्षण हर श्रेणी में प्राप्त होगा| सोमवार को, अधीवर्ष के उस विशेष दिन, वित्त मंत्री अरुण जैटले आने वाले वर्ष की बजेट संस्तुति देश के आगे प्रस्तुत करेंगे||
हाल ही में हुई घटनाओं, जैसे की किसान खूड़खुशी, दलित अत्याचार, और शिक्षा क्षेत्र में हुए खास उत्पीड़न को देखते हुए यह जानना महत्वपूर्ण होगा के सरकार अपने खर्चे किस दिशा में केंद्रित करती है| क्या वे सेक्यूरिटी और डिफेन्स पे खर्चेंगे? या विदेश व्यापार? या शिक्षा? या समाज कल्याण? परिकल्पनाएँ कई हैं, ख़ासकर अंतिम चौथाई में आई आर्थिक मंदी के बाद||
हमने हाल ही में जाना के कैसे किसान महिलायें एक उपेक्षित प्रजाति हैं| ज़्यादातर काम महिलायें करती हैं, जिसके बावजूद किसानी एक पुरुष व्यवसाय माना जाता है| कीर्ति जयकुमार, थे रेड एलिफेंट की कहानीकार इस विषय पर अपने विचार उुआकत करती हैं:
“हमारे किसान भाइयों पर पड़े मौसम के प्रकोप को देखते हुए मैं इस साल के बजेट में गैर-कृषि उत्पाद के क्षेत्र में कुच्छ नये अवसर देखना चाहूँगी| यह महिलाओं के लिए भी एक ख़ास अवसर होगा, अपनी ग्रामीण कला और ज़मीनी गतिविधियों से नए आर्थिक अवसरों को जन्म देने का||"
भारत की महिलाओं की एक और अहम समस्या है व्यापार नेतृत्व| केवल 3-4% महिलायें इन भूमिकाओं में हैं, और ज़्यादातर इन महिलाओं के पास अपने स्तर के पुरुषों से कम अधिकार होते हैं| सुरभि देवरा, कारीएर गाइड की सी.ई.ओ व फाउंडर अपना उदाहरण देते हुए कुच्छ वैसी ही बात कहती हैं:
“हमने पिछले वर्ष देखा की इंडिया इंक. ने सरकार द्वारा संचालित लिस्टेड कंपनीज़ के न्यूनतम महिला डाइरेक्टर की माँग को पूरा करने में काफ़ी संघर्ष किया| उन्हे लीडरशिप के लिए केवल 1000 महिलाओं की ज़रूरत थी| स्पष्ट रूप से लीडरशिप में लैंगिक विविधता की आवश्यकता है| यह न्यूनतम माँग . . ने . आने . हर कंपनी पर लागू की जानी चाहिए| इससे महिलाओं को देश के आर्थिक विकास में बराबर भागीदारी करने का अवडर मिलेगा||”
स्टार्ट्प इंडिया कान्फरेन्स पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की महिला उद्ययमियों से वादा किया था की वे उन्हे कुच्छ विशेष कर छूट देंगे| आशा है की इस क्षेत्र में कुच्छ अच्छी खबर सुनने को मिलेगी, क्योंकि इससे महिला उद्ययमियों के आँकड़े में वृद्धि होने की सीधी संभावना है||
डॉक्टर शिखा सुमन, मेडिमोजो की फाउंडर व सी.ई.ओ का कहना है:
"स्टार्टाप फंड का 10% केवल महिलाओं के लिए आवंदित किया जाना चाहिए- उनके गृह- विशिष्ट परिस्थितिकी तंत्र, अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं के लिए यात्रा संबल, आदि||"
महिलाओं की सफलता के लिए सबसे आवश्यक है की एक सुविधाजनक वातावरण बनाया जाए ताकि वे मिले अवसरों का अधिकतम उपयोग कर पायें| ऑफ थे हुक की संपादक, रिचा शर्मा का कहना है:
“एक उद्ययमी के तौर पे मैं उद्ययमियों की परिस्थितिका तंत्र में बढ़ावा सुधार देखना चाहूँगी| इंक्यूबेटर्स और त्वरकों के आँकड़े में वृद्धि होने से सफलता की सड़क में और सुधार आएगा| अंत में मैं हमारे वित्तमंत्री से अनुरोध करना चाहूँगी के डिजिटल क्षेत्र में महिलाओं द्वारा संचालित स्टार्ट्प के लिए विशेष प्रलोभन देने का निर्णय लिया जाए||”
इस वर्ष लिए जाने वाले बजेट से जुड़े निर्णय, आने वाले 10 सालों के भारत की आर्थिक बुनियाद रखेंगे| निवेश पर काफ़ी ध्यान केंद्रित किया जाने वाला है| यह बजेट 1990 में चर्चित हुए उदारीकरण और निजीकरण बजेट जितना बड़ा होने वाला है||