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फिल्म पगलैट आज सभी OTT प्लेटफॉर्म्स पर रिलीज़ हो चुकी है। ये फिल्म का टॉपिक बहुत ही हटकर एक सामाजिक मुद्दे पर है। इस में बताया गया है कि महिला की बिना उसके पति के भी एक आइडेंटिटी होती है। जरुरी नहीं हर महिला अपने पति पर निर्भर रहे। आज हम आपको बताएंगे पगलैट का रिव्यु सान्या मल्होत्रा ने कैसे उठाया विधवा का सामाजिक मुद्दा -
यह फिल्म एक ऐसी महिला के बारे में है जिसके हस्बैंड की डेथ हो जाती है और उसके फ्रेंड्स और फैमिली उसको सपोर्ट करने लगते हैं। वो जिस हिसाब से विधवा महिला को रोने को लेकर सोचते हैं वो वैसा नहीं करती जिसके कारण वो पागल हो जाते हैं। सान्या फिल्म में संध्या बनी हैं और इनको पति के मरने के बाद रोना नहीं आता है इसलिए फिल्म का नाम पगलैट रखा गया है।
संध्या को सिर्फ अपने नेटफ्लिक्स से और खाने पीने से मतलब रहता है और वो इसी में खोई रहती हैं। पिक्चर दर्शाती है कि क्यों हम विधवा महिला को सोसाइटी के एक फिक्स्ड तरीके से ही रियेक्ट करने को कहते हैं। हमें उसको जो करना है वो करते रहने देना चाहिए। उसको हर स्टेप पर बताने की जरुरत नहीं होती कि अब क्या करो और क्या न करो।
इस फिल्म में सालों से चली आ रही सोच बदलेगी। इस फिल्म में उन मुद्दों को उठाया गया है जो ये समाज एक विधवा से एक्सपेक्ट करते हैं उसके पति के मरने पर। हमारे समाज में अगर किसी पति की पत्नी मरती है तो वो उस बात को मानकर आगे बढ़जाता है और दूसरी औरतों के साथ भी नयी ज़िन्दगी आसानी से शुरू भी कर देता है। अगर यही चीज़ एक विधवा करे तो उसको बहुत बड़ा पाप माना जाता है। इस फिल्म में दर्शाया गया है कि एक महिला खुद से भी खुश रह सकती है और वो अपने पति पर निर्भर नहीं होती है।
1. क्या है पगलैट फिल्म की स्टोरी ?
यह फिल्म एक ऐसी महिला के बारे में है जिसके हस्बैंड की डेथ हो जाती है और उसके फ्रेंड्स और फैमिली उसको सपोर्ट करने लगते हैं। वो जिस हिसाब से विधवा महिला को रोने को लेकर सोचते हैं वो वैसा नहीं करती जिसके कारण वो पागल हो जाते हैं। सान्या फिल्म में संध्या बनी हैं और इनको पति के मरने के बाद रोना नहीं आता है इसलिए फिल्म का नाम पगलैट रखा गया है।
2. क्या संध्या के लिए है पति से ज्यादा नेटफ्लिक्स जरुरी ?
संध्या को सिर्फ अपने नेटफ्लिक्स से और खाने पीने से मतलब रहता है और वो इसी में खोई रहती हैं। पिक्चर दर्शाती है कि क्यों हम विधवा महिला को सोसाइटी के एक फिक्स्ड तरीके से ही रियेक्ट करने को कहते हैं। हमें उसको जो करना है वो करते रहने देना चाहिए। उसको हर स्टेप पर बताने की जरुरत नहीं होती कि अब क्या करो और क्या न करो।
3. क्यों ऐसी फिल्में हैं समाज के लिए जरुरी ?
इस फिल्म में सालों से चली आ रही सोच बदलेगी। इस फिल्म में उन मुद्दों को उठाया गया है जो ये समाज एक विधवा से एक्सपेक्ट करते हैं उसके पति के मरने पर। हमारे समाज में अगर किसी पति की पत्नी मरती है तो वो उस बात को मानकर आगे बढ़जाता है और दूसरी औरतों के साथ भी नयी ज़िन्दगी आसानी से शुरू भी कर देता है। अगर यही चीज़ एक विधवा करे तो उसको बहुत बड़ा पाप माना जाता है। इस फिल्म में दर्शाया गया है कि एक महिला खुद से भी खुश रह सकती है और वो अपने पति पर निर्भर नहीं होती है।