दीपिका कुमारी के हाल ही में आर्चरी में विश्व रिकॉर्ड दर्ज करने पर भारत को गर्व है| पर वे एक लौटी नहीं हैं| पुराणों के समय से धनुष-बाण का खेल भारत की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है| आइये जानते हैं नवीन भारत में इस खेल की कमान धारण करने वाली कुच्छ महिलाओं को:
दीपिका कुमारी
दीपिका कुमारी इस समय विश्व नंबर ७ स्थान पर हैं, और पहले नंबर १ स्थान पर भी अपना नाम अंकित कर चुकी हैं| उनकी शुरुआत 2005 में अर्जुन आर्चर अकॅडमी से हुई| इसके बाद 2006 में उन्होने जमशेदपुर की टाटा आर्चरी अकॅडमी में प्रवेश लिया, जहाँ के कठोर प्रशिक्षण से उन्होने जूनियर कॉंपाउंड वर्ल्ड कप जीत कर दुनिया में भारत का झंडा लहराने का किस्सा शुरू किया||
2012 में अर्जुन अवॉर्ड जीतने वाली दीपिका देश में ओलिंपिक जीत की आशा लाई हैं| 3 बार सिल्वर मेडल और काई विश्व प्रतियोगितायें जीतने के बाद उन्हे 2016 में भारत सरकार ने पद्मा श्री पुरस्कार से भी नवाज़ा||
डोला बानेर्जी
भारत की डोला बानेर्जी देश की सबसे उम्दा आर्चर खिलाड़ियों में से एक हैं, और वे अर्जुन अवॉर्ड जीतने वाली पहली महिला आर्चर हैं| वे ओलिमपिक्स के लिए चुनी जाने वाली पहली महिला आर्चर भी हैं||
17 साल की उमर में उन्होने 1997 लोंगक्विए एशियन चॅंपियन्षिप में भाग लेकर उन्होने अपने खेल करियर की शुरुआत की, जिसके बाद उन्होने बेइजिंग एशियन चॅंपियन्षिप 1999, होंग कॉंग एशियन चॅंपियन्षिप 2001, यॅगन (माइयान्मार) एशियन चॅंपियन्षिप 2003 में अपनी कला का परदर्शन किया| 2005 में नई दिल्ली एशियन चॅंपियन्षिप में उन्होने ब्रॉन्ज़ मेडल भी जीता||
डोला ने इतिहास रचा जब उन्होने एक ही साल में युरोपियन ग्रांड प्री आर्चरी टूर्नमेंट और गोलडेन आरो ग्रांड प्री आर्चरी टूर्नमेंट, अंताल्या, टर्की में गोल्ड मेडल जीता| इसके अलावा, 2006 में हुए कोलंबो SAF खेल में भी उन्होने भारत के नाम गोल्ड मेडल किया था||
बॉमबॅला देवी लैशराम
मणिपुर की बॉमबॅला ने 1996 में अपने खेल करियर की शुरुआत की, हलाकी भारत के लिए खेलने का मौका उन्हे 10 साल बाद 2006 में मिला| उनके लिए गर्व की घड़ी तब थी जब उन्होने 2010 में नई दिल्ली में हुए कॉमनवेल्त गेम्स में हुए रेकर्व टीम इवेंट में गोल्ड मेडल जीता| उन्हे खेल की प्रेरणा उनके परिवार से ही मिली| जहाँ एक तरफ उनकी माता ज़मीनी देवी एक स्टेट आर्चरी कोच हैं, दूसरी ओर उनके पिता, मन्ग्लेम सिंह हॅंडबॉल कोच हैं||
2008 में बेइजिंग ओलिमपिक्स के लिए क्वालिफाइ करने वाली वे पहली महिला रही| भारत की रेकर्व आर्चरी टीम की बॉमबॅला देवी, दीपिका कुमारी और चेक्रोवोलु स्वुरो ने 2011 में हुए 46वी वर्ल्ड आर्चरी चॅंपियन्षिप में सिल्वर मेडल जीतकर लंडन गेम्स में अपनी जगह सुरक्षित की||
चेक्रोवोलु स्वुरो
नगलंद के एक छ्होटे से गाँव से आने वाली स्वुरो ने 2002 और 2006 के एशियन गेम्स में भारत को विश्व के अलग अल्ग हिस्सो परदर्शित किया था|
वे नगलंद पोलीस में सब-इनस्पेक्टर के पद पर हैं| उनकी बड़ी बहन, वसूज़ोलु स.वादेव भी एक नॅशनल आर्चर रह चुकी हैं| पिछले 10 साल से चले आ रहे अपने करियर में उन्होने कई मेडल जीते हैं| उन्होने 2012 के लंडन ओलुंपिक्स में देश के लिए खेला था| 64 साल के बाद ओल्यपिक्स में भाग लेने वआळी वे दूसरी नगा हैं| उन्हे 2013 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया||
लक्ष्मी रानी माझी
लक्ष्मी को स्कूल द्वारा आर्चरी सीखने का मौका मिला| आज वे देश के लिया कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेती हैं| जब लक्ष्मी छोटी थी, तो उनके परिवार वालों को पता था के लक्ष्मी के लिए स्कूल जाना सबसे ज़रूरी था| लक्ष्मी के गाओं में ज़्यादातर लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती थी||
अब, अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ-साथ वे कई प्रतियोगितायें भी जीत रही हैं| उन्हे जमशेदपुर की टाटा स्पोर्ट्स अकॅडमी ने कडेट के पद से नवाज़ा है||
लक्ष्मी को यह मौका तब मिला जब आर्चरी अकॅडमी के सेलेक्टर्स ने उन्हे सरकारी स्कूल में खेलते देखा| वे झारखंड के बगुला गाँव में बड़ी हुई, और आज वे एक रेकर्व आर्चर हैं| 2015 में कोपेनहेगन, डेनमार्क में हुई वर्ल्ड आर्चरी चॅंपियन्षिप में उन्होने सिल्वर मेडल भी जीता था||