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बेटी न बोझ है न देवी , वह एक इंसान है

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Swati Bundela
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एक बात पर आप सबने ध्यान दिया होगा कि भारत में बेटियों के साथ बहुत ही अलग प्रकार का बर्ताव किया जाता है. कुछ लोगों के अनुसार बेटियां माँ बाप के लिए बोझ होती हैं क्यूंकि एक दिन उनकी शाद्दी हो जाएगी और वह अपने ससुराल चली जाएँगी. इस कारण वह जीवन भर धन कि बचत करते हैं और अपनी बेटी को अपनी इच्छाएं मारने के लिए कहते हैं. इसके विपरीत कुछ परिवार ऐसे भी होते हैं जो अपनी बेटी को देवी का रूप मानते हैं, उन्हें बेहतरीन विद्यालयों और महाविद्यालयों में पढ़ाते हैं. परन्तु वह ऐसा इसलिए करते हैं ताकि उनकी बेटी की शादी एक अच्छे घर में हो क्यूंकि उनके अनुसार आजकल लोगों को पढ़ी-लिखी लड़कियां चाहिए. इससे उनकी शादी में कोई बाधा नहीं आएगी.

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मेरा प्रश्न यह है कि इन दोनों ही उदाहरणों में लड़की के जीवन का उद्देश्य केवल शादी क्यों है? उसका पढ़ना या न पढ़ना केवल शादी कि दृष्टि से क्यों देखा जाता है? क्या पढ़ाई जीवन के उतर चढ़ाव को समझने के लिए आवश्यक नहीं है? क्या यह पढ़ाई रोज़ की परेशानियों को सुलझाने के लिए काम नहीं आती है? हम बेटियों कि किस्मत केवल उसके भविष्य में होनी वाली शादी से क्यों जोड़ते हैं?

लोगों को समझना चाहिए कि बेटियां बोझ नहीं है. वह देवी भी नहीं है. वह एक इंसान है जिसे जीवन में आगे बढ़ने के लिए अपने माता पिता का समर्थन, विश्वास और प्यार चाहिए.

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हम क्यों बेटियों को इंसानों की तरह नहीं देख सकते जिनको पढ़ने का पूरा अधिकार है क्योंकि अच्छी पढ़ाई जीवन को सरल बनती है? अच्छी पढ़ाई के बाद अच्छी नौकरी उन्हें जीवन में आत्मनिर्भर बना सकती है. आत्मनिर्भरता से बेहतर स्वतंत्रता किसी महिला के लिए नहीं हो सकती. एक अच्छी आमदनी एक महिला को अपनी इच्छाएं पूरी करने में मदद कर सकती है. वह उस धन से वह जीवन जी सकती है जिसका वह सपना बचपन में देखती थी.



लोगों को समझना चाहिए कि बेटियां बोझ नहीं है. वह देवी भी नहीं है. वह एक इंसान है जिसे जीवन में आगे बढ़ने के लिए अपने माता पिता का समर्थन, विश्वास और प्यार चाहिए. बेटों और बेटियों के सामने जो चुनौतियाँ आएंगी वह लगभग एक जैसी ही होंगी इसलिए ज़रूरी है कि हम उन्हें बचपन से ही वह सब सिखाएं जो एक अच्छा जीवन जीने के लिए अनिवार्य है. उन्हें एक अच्छा मनुष्य बनाएं जो समाज का भला करने में सहायक हो.
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