“पहाड़ों से जुड़ा यह एक बड़ा सच है. एक बार आप उनके साथ रह लेते हैं, तो आप उन्हीं के हो जाते हैं. आप इससे बच नहीं सकते.” – रस्किन बॉन्ड
पहाड़ों में जीवन का उल्लास बसता है. कद और महत्व, दोनों में विशालकाय और गज़ब के सुन्दर, वे बड़े प्यार से जंगलों, गाँवों और नगरों में प्राण का संचार करते हैं, उन्हें अपना आधार देते हैं. वे कई कहानीकारों के सृजन स्रोत हैं, उनकी कहानियों की विषय-वस्तु हैं. और अब तो ये एक शानदार लिटरेरी फेस्टिवल के भी साक्षी बनेंगे, जो उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में धानाचूली और नैनीताल में आयोजित किया जाएगा.
कॉर्पोरेट और पॉलिसी लॉयर, सुमंत बत्रा की संकल्पना, कुमाऊँ लिटरेरी फेस्टिवल चार प्रतिष्ठित महिला लेखकों और प्रकाशकों की शक्ति से संचालित है. जान्हवी प्रसादा, किरण मनराल, प्रिया कपूर और सुजाता पाराशर, इस अनोखे विचार के केंद्र में हैं साथ ही इसके एडवाइजरी बोर्ड में भी शामिल हैं. सुमंत के अनुसार, फेस्टिवल को मूर्त रूप देने में इनका महती योगदान रहता है.
सुमंत ने कहा, “कुमाऊँ लिटरेरी फेस्टिवल के लिए मैंने कई ऊँचे लक्ष्य तय किए हैं. इस भव्य कल्पना को साकार करने के लिए एक शक्तिशाली टीम साथ होना बहुत ज़रूरी था. जब मैंने कुमाऊँ लिटरेरी फेस्टिवल का खाका तैयार करना शुरू किया तो इस महत्वाकांक्षी योजना के आधारस्तम्भ के रूप में किरण, जान्हवी, प्रिया और सुजाता के नाम सबसे पहले मेरे दिमाग में आए. ये चारों ही महिलाएँ, अपने क्षेत्र में अत्यंत सफल, कार्यकुशल और विनम्र हैं. इनके कौशल, अनुभव और प्रतिष्ठा से यह फेस्टिवल बहुत बड़े स्तर पर लाभान्वित होता है. सैफ मोहम्मद और ऋषि सूरी के साथ, जो इस फेस्टिवल के प्लानिंग बोर्ड के अन्य दो सदस्य हैं, ये चारों एक लाजवाब टीम बनाती हैं.
जान्हवी, जो वर्तमान में गाँधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ पर आधारित एक ग्राफिक उपन्यास लिख रही हैं, इस फेस्टिवल की सह-मेजबान भी हैं. एबॉट्सफोर्ड, नैनीताल, इस फेस्टिवल का दूसरा आयोजन स्थल (पहला है टे अरोहा, धानाचूली), अंग्रेजी मिज़ाज़ का एक अनूठा लॉज है जो जान्हवी के परिवार ने १९०३ में खरीदा था.
उन्होंने कहा, “हम तीन एकड़ में फैली एक संपत्ति पर बड़े हुए. ताज़ी हवा, नीला आसमान, कोहरे से ढके पहाड़, सुन्दर पक्षी, जंगली बेरियाँ, वनों में लम्बी सैर, पिकनिक, खुले में खाना पकाना, तारों से बात करना, फलों से लदे पेड़ों पर चढ़ना-उतरना, इन सबने हमारे बचपन को बहुत समृद्ध बनाया. फिर हमने आगे की पढ़ाई और अपना करियर बनाने के लिए शहर का रुख किया. पर मैं वापिस आती रही, फोटोग्राफी के लिए, गाँधीजी पर अपना ग्राफिक उपन्यास लिखने के लिए (नवम्बर में हार्पर कॉलिंस द्वारा प्रस्तुत होने वाला), इस बात की योजना बनाने के लिए कि कैसे इस स्थान को समावेशी और उन लोगों के लिए सुलभ बनाया जाए जो इतिहास, प्रकृति, किताबें और शांति का महत्व जानते-समझते हैं. इस वातावरण में बड़े होते समय जो खूबसूरत अनुभव मैंने प्राप्त किए, मैं उन्हें सबके साथ बाँटना चाहती थी.” कुमाऊँ लिटरेरी फेस्टिवल जान्हवी के लिए अपनी यादों से जुड़ने का एक सुनहरा ज़रिया है और अनेक लोगों के साथ अपने अनुभव साझा करने का माध्यम भी.
अनपेक्षित के लिए तैयार रहिए - सुजाता
प्रिया कपूर, रोली बुक्स की एडिटोरियल डायरेक्टर, कहती हैं कि इस फेस्टिवल में बिखेरे जाने वाली बौद्धिक सम्पदा में से हर व्यक्ति अपने लिए कुछ ना कुछ मूल्यवान पा सकता है. सुरम्य और प्रेरणा से भरपूर आयोजन स्थल को देखते हुए इस फेस्टिवल की रूप-रेखा कुछ इस तरह बनाई गई है, जहाँ व्यक्ति रोज़मर्रा के नीरस जीवन से अलग, उन गतिविधियों को जी सकेगा जो उसके दिल के बहुत करीब हैं.”
वे आगे कहती हैं, “साहित्य से लेकर संस्कृति तक, संगीत और खान-पान, इस फेस्टिवल में हर व्यक्ति के लिए कुछ ना कुछ ख़ास है. चूँकि यह हमारा पहला वर्ष है, हमारा प्रयास रहेगा कि हम लोगों
से संबंध जोड़ सकें, और ऐसे संरक्षकों की खोज कर सकें जो हर वर्ष हमारी इस पहल को अपना सहयोग दें.”
लेखिका, लिटरेरी एजेंट, प्रकाशक आदि के रूप में आज महिलाएँ प्रकाशन उद्योग में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. लेखिका और बोर्ड की सदस्य किरण मनराल कहती हैं कि आज साहित्य जगत में महिलाओं की लेखनी को बहुत सम्मान दिया जा रहा है, उनके द्वारा रचित कहानियों को उन्हीं की शर्तों पर स्वीकार किया जा रहा है – फेस्टिवल की पैनल और इस आयोजन में अपने विचार रखने वाले वक्ताओं में महिलाओं के वृहद प्रतिनिधित्व से भी यह बात झलकती है.
१०७ प्रतिभागी लेखकों में, ५५ महिला वक्ता हैं.
लेखिका और बोर्ड सदस्य, सुजाता पाराशर कहती हैं, “आज अधिक से अधिक महिलाएँ शिक्षा प्राप्त कर रही हैं, आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बन रही हैं. फलस्वरूप, उनमें साहस है, आत्म-विश्वास है, और अपने विचार मज़बूती से अभिव्यक्त करने की क्षमता है. आज के समय की महिला लेखकों द्वारा लिखी जा रही किताबों में यह बात साफ दिखाई देते है. कुमाऊँ लिटरेरी फेस्टिवल, सबको साथ लेने के अपने प्रारूप के अनुसार, लगभग सभी सत्रों में लोकप्रिय और सशक्त महिला लेखकों को स्थान देगा.” बोर्ड ने यह जानकारी दी कि इस फेस्टिवल में महिलाओं का बोलबाला अधिक रहेगा. “१०७ प्रतिभागी लेखकों में, ५५ महिला वक्ता हैं और ५२ पुरुष वक्ता, है न यह कमाल की बात?”
कुमाऊँ लिटरेरी फेस्टिवल, एक आत्मीय और अनुभव पर केन्द्रित उत्सव - किरण
फेस्टिवल में कलाकार, नीति निर्माता, इतिहासकार, फिल्म निर्माता, संगीतज्ञ, आर्ट क्यूरेटर, प्रशिक्षक, प्रेरक वक्ता आदि अपने विचार रखेंगे. इस विषय पर किरण ने आगे बताया, “कुमाऊँ लिटरेरी फेस्टिवल एक आत्मीय और अनुभव पर केन्द्रित उत्सव है, जिसमें दर्शकों-श्रोताओं की संख्या सीमित है, आपसी संवाद जिसका महत्वपूर्ण पक्ष है और विभिन्न शैलियों, भाषाओँ और विधाओं के लेखक जिसका अभिन्न अंग हैं. हमारा उद्देश्य है उन समस्त धाराओं को साथ लाना, जिनसे कला और सृजनात्मकता पोषित हो सके, और एक ऐसी सार्थक चर्चा करना जिसमें अलग-अलग नज़रियों को समझा जा सके और उनसे सीख ली जा सके.”
यह फेस्टिवल, कुमाऊँ क्षेत्र को भी एक सांस्कृतिक प्रतिष्ठा प्रदान करेगा. फेस्टिवल के अंतर्गत इस क्षेत्र के विद्यालयों में जाकर उन बच्चों की खोज की जा रही है जिनमें नैसर्गिक कलात्मक और साहित्यिक प्रतिभा है. फेस्टिवल उन्हें अपना काम लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर देना चाहता है, जिससे उन्हें अपनी कला में श्रेष्ठ बनने का प्रोत्साहन मिले. स्थानीय कवि, कथा सुनाने वाले कलाकार और लेखक भी कुमाऊँ लिटरेरी फेस्टिवल का हिस्सा होंगे.
अंत में, सुजाता बताती हैं, “इस फेस्टिवल की हर बात अनूठी है, अलग है, चाहे बात इसके अंदाज़
की हो या अहसास की. जिस प्रकार हरेक सत्र को विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है, वो मुझे सबसे ज़्यादा रोमांचित करता है. कुछ निराले की ही अपेक्षा रखिए, या यूँ कहें, अनपेक्षित के लिए तैयार रहिए!”