डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ने महिलाओं की ज़िंदगी बदलने में अहम भूमिका निभाई है। Digital Women Awards 2024 में, होममेकर और कंटेंट क्रिएटर सुमित्रा श्रीराम ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे सोशल मीडिया ने उन्हें सशक्त बनाया और घर की चार दीवारों से बाहर निकलने का अवसर दिया।
बंदिशों से बाहर: सुमित्रा श्रीराम की डिजिटल सशक्तिकरण की कहानी
होममेकर से डिजिटल सशक्तिकरण की ओर सफर
सुमित्रा श्रीराम की कहानी उन लाखों महिलाओं को प्रेरणा देती है जो अपनी पहचान के लिए संघर्ष करती हैं। एक रूढ़िवादी परिवार में पली-बढ़ीं सुमित्रा ने शादी के बाद अपने बैंकिंग करियर को त्यागकर बच्चों की परवरिश पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन उनका असली सफर तब शुरू हुआ जब उन्होंने अपने अनुभवों को डिजिटल दुनिया में साझा करना शुरू किया।
उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पर जेंटल पेरेंटिंग, जेंडर इक्वालिटी और मेंटल हेल्थ जैसे मुद्दों पर कंटेंट बनाना शुरू किया। आज उनके 75,000 से अधिक फॉलोअर्स हैं जो उनके विचारों और अनुभवों से प्रेरणा लेते हैं।
चुनौतियों और आलोचनाओं का सामना
सुमित्रा ने Digital Women Awards में खुलासा किया कि कंटेंट क्रिएशन के दौरान उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा,
"जब भी मैं जेंटल पेरेंटिंग पर बात करती हूं, लोग कहते हैं, 'पहले के माता-पिता बहुत सख्त थे, लेकिन हम तो 'नॉर्मल' हैं। आज की पीढ़ी खराब हो गई है।' लेकिन सुमित्रा का मानना है कि नई पीढ़ी न केवल आत्मनिर्भर है बल्कि अपने मूल्यों को भी समझती है। उन्होंने बताया कि युवा लड़कियां आज अपने अधिकारों और संभावनाओं को बेहतर तरीके से पहचानती हैं।
स्वयं की देखभाल और सशक्तिकरण का महत्व
सुमित्रा श्रीराम का मानना है कि महिलाओं को अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए। उन्होंने कहा,"40 साल की उम्र तक मैंने अपनी ज़िंदगी नहीं जी। मैं अपनी मां, अपने बच्चों की ज़िंदगी जी रही थी। इस दौरान मैं भावनात्मक रूप से थक गई। लेकिन अब मैं जानती हूं कि महिलाओं को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए इंतज़ार नहीं करना चाहिए।" उन्होंने नई पीढ़ी की माताओं से अपील की कि वे अपनी देखभाल को प्राथमिकता दें ताकि वे अपने परिवार को खुश रख सकें।
डिजिटल क्रांति का हिस्सा बनना
सोशल मीडिया के ज़रिए सुमित्रा ने न केवल अपनी ज़िंदगी को फिर से परिभाषित किया बल्कि अन्य महिलाओं को भी अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित किया। उनकी कहानी इस बात का प्रमाण है कि सशक्तिकरण की शुरुआत खुद से होती है।
सुमित्रा श्रीराम एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने हर बाधा को पार कर अपनी कहानी लिखी। आज वे लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी यात्रा हमें यह सिखाती है कि आत्मविश्वास और साहस के साथ हम अपनी क़िस्मत खुद लिख सकते हैं।