नई माँ को समाज की किन अपेक्षाओं का बोझ नहीं लेना चाहिए

माँ बनना एक अद्भुत और जीवन बदलने वाला अनुभव होता है। जब कोई महिला पहली बार माँ बनती है तो वह न सिर्फ एक नए जीवन की देखभाल की जिम्मेदारी उठाती है बल्कि खुद भी एक नई भूमिका में ढल रही होती है।

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Sanya Pushkar
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What societal expectations should a new mother not feel burdened by: माँ बनना एक अद्भुत और जीवन बदलने वाला अनुभव होता है। जब कोई महिला पहली बार माँ बनती है तो वह न सिर्फ एक नए जीवन की देखभाल की जिम्मेदारी उठाती है बल्कि खुद भी एक नई भूमिका में ढल रही होती है। इस प्रक्रिया में उसे शारीरिक मानसिक और भावनात्मक रूप से कई परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है। ऐसे समय में समाज से मिलने वाली अपेक्षाएँ और दबाव उसके लिए बोझ बन सकते हैं। नई माँ को यह समझना ज़रूरी है कि उसे हर सामाजिक उम्मीद पर खरा उतरने की ज़रूरत नहीं है। नीचे कुछ ऐसी प्रमुख सामाजिक अपेक्षाएँ दी गई हैं जिनका बोझ नई माँ को नहीं उठाना चाहिए

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नई माँ को समाज की किन अपेक्षाओं का बोझ नहीं लेना चाहिए

1. तुरंत सामान्य हो जाना

समाज अक्सर यह अपेक्षा करता है कि महिला डिलीवरी के कुछ ही दिनों बाद सामान्य जीवन जीने लगे  घर का काम करे मेहमानों का स्वागत करे और हँसते मुस्कुराते सब कुछ संभाले। लेकिन वास्तविकता यह है कि डिलीवरी के बाद महिला का शरीर काफी कमजोर हो जाता है और उसे भरपूर आराम और पोषण की ज़रूरत होती है। मानसिक रूप से भी वह कई उतार चढ़ाव से गुजरती है। इसलिए उस पर जल्दी ठीक होने का दबाव नहीं होना चाहिए।

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2. परफेक्ट माँ बनने की उम्मीद

समाज अक्सर यह सोचता है कि माँ बनने के साथ ही एक महिला को हर चीज़ की जानकारी हो जानी चाहिए जैसे बच्चे को कैसे सुलाना है कैसे खिलाना है कब रोने पर क्या करना है। अगर वह गलती करती है या कुछ नहीं जानती तो उसकी आलोचना की जाती है। नई माँ को यह समझना चाहिए कि मातृत्व सीखने की प्रक्रिया है और हर माँ अपनी शैली में परिपूर्ण होती है।

3. हमेशा खुश और शांत रहने की अपेक्षा

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लोग मानते हैं कि माँ बनने के बाद महिला को हर समय खुश रहना चाहिए क्योंकि यह तो एक खुशियों का समय है। लेकिन कई बार नई माँ पोस्टपार्टम डिप्रेशन या भावनात्मक असंतुलन से जूझ रही होती है। उसे अपने जज़्बातों को व्यक्त करने और मानसिक सहयोग पाने का पूरा हक़ है। उस पर जबरन मुस्कुराने या अपने दर्द को छुपाने का दबाव नहीं होना चाहिए।

4. शरीर पहले जैसा दिखे इसकी अपेक्षा

डिलीवरी के बाद महिला के शरीर में कई बदलाव आते हैं वजन बढ़ना थकान हार्मोनल बदलाव आदि। लेकिन समाज से यह अपेक्षा की जाती है कि महिला जल्दी से फिट हो जाए और पहले जैसी दिखने लगे। यह सोच नई माँ के आत्मविश्वास को ठेस पहुँचा सकती है। उसे अपने शरीर से प्यार करना सिखाना और उसे समय देना ज़रूरी है।

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5. हर चीज़ अकेले संभालने की अपेक्षा

अक्सर समाज या परिवार मान लेते हैं कि माँ ही बच्चे की पूरी देखभाल अकेले करेगी। लेकिन नई माँ को सहयोग की ज़रूरत होती है पति परिवार और कभी कभी पेशेवर मदद की भी। उसे यह महसूस नहीं होना चाहिए कि मदद माँगना उसकी कमजोरी है। यह उसका अधिकार है।

6. पारंपरिक तरीकों को ही मानने का दबाव

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कई बार नई माँ को पुराने तौर तरीकों और मान्यताओं को अपनाने का दबाव दिया जाता है चाहे वह उसके या बच्चे के लिए अनुकूल न हों। उदाहरण के तौर पर बच्चे को घी मालिश जल्दी ठोस आहार देना या कुछ घरेलू टोटकों को मानने के लिए मजबूर किया जाता है। माँ को यह स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह आधुनिक विज्ञान और अपनी समझ के अनुसार निर्णय ले सके।

 

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