New Update
हमारे देश का भी योगदान शिक्षा के क्षेत्र में कोई कम नही है. सिंतबर 5 को हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन मनाया जाता है और इस दिन को हम शिक्षक दिवस के तौर पर मनाते है. आइये हम जानें देश के कुछ शिक्षिकाओं के बारे में जिन्होंने अपने काम से अलग स्थान बनाया है.
सावित्री बाई फुले
भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले ने देश में लड़कियों के लिये पहले स्कूल की शुरुआत की थी. जब 1948, में सावित्री बाई फुले और उनके पति ने स्कूल की शुरुआत की थी तो उन्हें लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा था. इसके लिये उनके साथ कई बार बदतमीज़ी भी की गई थी. इस सब के बावजूद साल के अंत तक वह पांच और स्कूल लड़कियों के लिये खोलने में कामयाब हो गई. फुले एक कवयित्री भी थी और मराठी भाषा में वह कवितायें लिखती थी.
अच्छे शिक्षक बच्चे को हर तरह का ज्ञान उपलब्ध कराते हैं और बच्चे को इसके लिये भी तैयार करते है कि वह अपनी ताक़त और कमज़ोरी को पहचान सकें और एक अच्छा इंसान बन सके
विमला कौल
80 साल की यह शिक्षिका दिल्ली के बाहर के अपने गांव मदनपुर खादर के बच्चों को बरसों से पढ़ा रही है. गांव में शिक्षकों की कमी की वजह से उन्होंने गांव के बच्चों को करीब के सरिता विहार में ले आया. पढ़ाई के लिये इमारत नही होने की वजह से वह बच्चों को एक पार्क से दूसरे पार्क लेकर जाती थी ताकि क्लास लगाई जा सकें. आख़िरकार उन्होंने हार नही मानी और एक इमारत बना ली जहां पर वह अब कक्षा 2 तक के बच्चों को पढ़ाती है.
असीमा चटर्जी
असीमा चटर्जी को शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिये कई पुरुस्कार मिलें. उन्हें विनका अलकालोइड्स पर उनके काम के लिये जाना जाता है जिसका उपयोग कैंसर ड्रग्स में किया जाता है. असीमा पहली महिला थी जिन्हें किसी भारतीय यूनिवार्सिटी ने डाक्टर आफ साइंस दिया हो. उन्हें 1944 में यूनिवार्सिटी आफ कोलकत्ता ने यह उपाधि दी थी. पिछले साल उनके १०० वें जन्मदिन पर गूगल ने भी उनको याद किया था.
रोशनी मुखर्जी
रोशनी मुखर्जी, टीचर और शिक्षा के स्तर को लेकर खुश नही थी. इसी वजह से उन्होंने ExamFear 2011 में शुरु किया जब वह विप्रो में काम कर रही थी. अब उनके करीब 4000 वीडियो अलग अलग विषयों जैसे फिज़िक्स, कैमेस्ट्री, गणित पर यू टूयूब में मौजूद है. उनके वीडियो को देखने वालों की तादाद भी लाखों में है. रोशनी ऐसे तरीकों से बच्चों को समझाती है कि वह विषय को आसानी से समझ सकें. वह हमेशा से मानती रही है कि विषयों को ऐसा बनाया जा सकता है जिससे बच्चों को पढ़ने में मज़ा आयें.
भारती कुमारी
बचपन में ही भारती कुमारी को उनके परिवार ने बिहार में एक रेल्वे स्टेशन पर छोड़ दिया था. 12 साल की उम्र तक पहुंचते हुये वह कुसुंभरा गांव के स्कूल में हेड टीचर हो गई थी. इसी गांव में उन्हें गोद लिया गया था. हर रोज़ सुबह और शाम को वो आम के पेड़ के नीचे क्लास लगाती थी. वहां पर वह हिंदी, अंग्रेज़ी और गणित पढ़ाती थी. उनके पास गांव के 50 बच्चें पढ़ने आते थे जिनके लिये इसके अलावा शिक्षा पाने का कोई और विकल्प नही था.