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बच्चों के बीच पब, फोर्टनाइट और कॉल ऑफ ड्यूटी जैसे खेलों की बढ़ती लोकप्रियता के साथ माता-पिता इस बात से अनजान हैं कि इस तरह के गेमिंग सत्र आख़िर कब तक चलने चाहिए? और क्या उनके बच्चों को इस तरह के हिंसक वीडियो गेम खेलना चाहिए या नहीं.
ऑनलाइन गेमिंग की निगरानी के बारे में जानकारी का अभाव
ठीक है, तो मेरे जैसे कुछ लोगों के लिए, यह कदम कुछ ज्यादा ही है. यह एक महंगा गैजेट है जो एक लक्जरी है जिसे ख़रीद पाना आसान नही है. हमारे घर में आईपैड एक प्रतिष्ठित ट्रॉफी की तरह है जिसे नवजात शिशु या फाइन चीइना की तरह संभाला जाता है. मैं गुस्से में टेबल पर इसे तोड़ने की कल्पना नहीं कर सकती. लेकिन फिर भी हम सब उसी तरह के गुस्से का अनुभव करते है जब हमारे बच्चे इन सब बातों को नही मानते है.
इससे पहले टेलीविजन होता था जिसकी वजह से माता-पिता के गुस्से का सामना करता पड़ता था. मैं बड़ी होने तक अपनी माँ की इस बात को सुनती रही जो कहती थी कि वह टीवी को सड़क पर फेंक देंगी अगर हम ने उसे बंद नही किया तो. अब मैं खुद अभिभावक हूं और उसी तरह का महसूस कर रही हूं. हम असहाय महसूस करते हैं क्योंकि हम अपने बच्चों को नियंत्रित करने में असमर्थ पा रहे हैं. और हमारी चिंतायें वैध हैं.
एबीसी नेटवर्क द्वारा 2012 की एक रिपोर्ट में बताया गया कि सामान्य रूप से ऑनलाइन वीडियो गेम ऐसे बनाये जाते है कि ताकि उनका नशा लग जायें. वास्तव में, गेमिंग उद्योग के लोग अक्सर मनोवैज्ञानिकों को वीडियो गेम को बनाने के लिए सलाहकार के रूप में रखते है ताकि उसे कोई किनारे न रखें.
आप जानते हैं कि ऑनलाइन गेमिंग इतनी चिंताजनक क्यों है. यह सिर्फ इन खेलों की हिंसक प्रकृति के बारे में नहीं है. मैंने कई बच्चों और वयस्कों को कैंडी क्रश और वर्चुअल पैटिंग जैसे अहानिकारक गेमों में भी दीवानगी देखी है.
ऑनलाइन गेमिंग की लत शराब और नशीली दवाओं जैसी लत ही है. गेमिंग की लत से छुटकारा पाना भी आसान नही है. शायद यही कारण है कि ज्यादातर माता-पिता प्लग खींचने का विकल्प चुनते हैं जब वे देखते हैं कि चीजें हाथ से बाहर हो रही हैं. लेकिन किशोरों के बीच बढ़ते अधिकार और आजादी की भावना के साथ, यह आसान नही है कि आप उन्हें आईपैड और स्मार्टफोन से दूर रख पायें.
अब सवाल यह उठता है कि क्या माता-पिता को गेमिंग के जुनून से बच्चों को दूर रखने के लिये कठोर उपायों के लिये अपने आप को दोषी महसूस करना चाहिए? जब ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को अभिभावकों की तुलना में दोस्त अधिक बनना चाहते हैं, तो ऐसे सख्त उपाय बच्चों के बीच झगड़े पैदा कर सकते है. लेकिन ऐसा समय होते हैं जब बच्चों के साथ दोस्ताना या ठंडा व्यवहार रखना समस्या को हल नहीं करता है. आपको माता-पिता के रूप में स्टैंड लेना होता है क्योंकि अंततः आप उनके मित्र नहीं हैं. किशोरावस्था के दौरान आपकी जिम्मेदारी है कि आप उन्हें मार्गदर्शन दें. अगर इससे कुछ समय के लिए रिश्ते और दोस्ताना संबंधों में दिक्क़त आती है तो आने दो क्योंकि एक बार चीजें नियंत्रण से बाहर हुई तो सामान्य स्थिति पर वापस आ पाना आसान नही होता है.