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समाज का एक ताना हमेशा से चलता आ रहा है 'अपनी लड़की को समझाओ'। उन्होंने ये नही देखा कि लड़के में ही दिक्कत है और सुधार भी उसी से होगा। तो कौनसी है वो पांच बातें जो आपको अपने बेटे को सिखाना चाहिए।
घर से निकलने से पहले पूछना
ये देखा जाता है कि एक परिवार में लड़की के घर से निकलने पर सौ सवाल पूछे जाते है जैसे कहाँ , क्यों, कब तक लौटोगी जैसे। पर क्या लड़को से ये पूछा जाता है कि वो कहाँ जा रहे है और क्या करने जा रहे है? बहुत कम । तो अगर लड़को से ये पूछा जाए तो आज के समय में लड़कियों पे हो रहे जुल्म आधे हो सकते है।
रोना कमज़ोरी नही होती
समाज लड़को और लड़कियों में भेद भाव करने से पीछे तो रहा नही। इसके कारण समाज ने लड़कियों और लड़कों के भर्तव करने के तरिके को अलग अलग नज़रों से देखा। लड़को को कठोर और रूढ़िवादी सोच आगे बढ़ाने का ज़िम्मा दिया गया तो लड़कियों को घर संभालने का और नरम दिल समझा गया। भारत मे आज के समय में सबसे ज्यादा आत्महत्या डिप्रेशन में लड़के करते है। ये साफ दिखता है कि लड़कों के मन में जो कठोर भाव भरे जाते है उसके कारण वो अपनी भावनाएं दुसरो को दिखा नही पाते तब भी अगर वो अंदर से कुछ दिक्कत हो तो।
रसोई के काम में हाथ बटाना
लड़कियो से ये आशा रखी जाती है कि वो परिवार संभाले एवं रसोई का काम कर परिवार की देख भाल करें। इस बर्ताव में बदलाव लाना चाहिए और एक माँ अपने बेटे को सिर्फ आर्थिक रूप से ही नही बल्कि रसोई के काम में और दूसरे कामो में भी अपनी पत्नी का हाथ बटाना चाहिए।
महिला साथी को बराबर या समान दर्ज़ा देना
कार्य करते हुए ये बात बहुत सामने आती है कि कैसे कई आफिस में एयर कंडीशनर का तापमान पुरुषों के अनुसार होता है। कई बार महिलाओं को सामान दर्जा नही दिया जाता जैसे कि पोस्ट एक ही होना पर इकलौता केबिन या आफिस सिर्फ पुरुष को दिया जाता है। अगर कार्य क्षेत्र में ही सामान्यता नही होगी, तो घर में या आम ज़िन्दगी में भी नही हो सकती।
समाज में तौर तरीके से रहना
जैसे लड़कियों को ये बताया जाता है कि उन्हें बाहर निकल के बुर्का पहन ना है या किसी एक तरीके से बर्ताव करना है , धीरे और आराम से बोलना है, लड़को को ये हिदायतें कम दी जाती है। शायद इसलिए भी क्योंकि माये अपने पति के दबाव में चुप रहती है। जब भी वो कुछ सिखाने की कोशिश करती है तो रूढ़िवादी सोच के कारण उन्हें चुप करा दिया जाता है। अगर लड़को को जनता के सामने एक सही तरीके से भर्तव करना सिखाये तो महिलाओं के खिलाफ हुए शोषण को रोका जा सके।
घर से निकलने से पहले पूछना
ये देखा जाता है कि एक परिवार में लड़की के घर से निकलने पर सौ सवाल पूछे जाते है जैसे कहाँ , क्यों, कब तक लौटोगी जैसे। पर क्या लड़को से ये पूछा जाता है कि वो कहाँ जा रहे है और क्या करने जा रहे है? बहुत कम । तो अगर लड़को से ये पूछा जाए तो आज के समय में लड़कियों पे हो रहे जुल्म आधे हो सकते है।
रोना कमज़ोरी नही होती
समाज लड़को और लड़कियों में भेद भाव करने से पीछे तो रहा नही। इसके कारण समाज ने लड़कियों और लड़कों के भर्तव करने के तरिके को अलग अलग नज़रों से देखा। लड़को को कठोर और रूढ़िवादी सोच आगे बढ़ाने का ज़िम्मा दिया गया तो लड़कियों को घर संभालने का और नरम दिल समझा गया। भारत मे आज के समय में सबसे ज्यादा आत्महत्या डिप्रेशन में लड़के करते है। ये साफ दिखता है कि लड़कों के मन में जो कठोर भाव भरे जाते है उसके कारण वो अपनी भावनाएं दुसरो को दिखा नही पाते तब भी अगर वो अंदर से कुछ दिक्कत हो तो।
रसोई के काम में हाथ बटाना
लड़कियो से ये आशा रखी जाती है कि वो परिवार संभाले एवं रसोई का काम कर परिवार की देख भाल करें। इस बर्ताव में बदलाव लाना चाहिए और एक माँ अपने बेटे को सिर्फ आर्थिक रूप से ही नही बल्कि रसोई के काम में और दूसरे कामो में भी अपनी पत्नी का हाथ बटाना चाहिए।
महिला साथी को बराबर या समान दर्ज़ा देना
कार्य करते हुए ये बात बहुत सामने आती है कि कैसे कई आफिस में एयर कंडीशनर का तापमान पुरुषों के अनुसार होता है। कई बार महिलाओं को सामान दर्जा नही दिया जाता जैसे कि पोस्ट एक ही होना पर इकलौता केबिन या आफिस सिर्फ पुरुष को दिया जाता है। अगर कार्य क्षेत्र में ही सामान्यता नही होगी, तो घर में या आम ज़िन्दगी में भी नही हो सकती।
समाज में तौर तरीके से रहना
जैसे लड़कियों को ये बताया जाता है कि उन्हें बाहर निकल के बुर्का पहन ना है या किसी एक तरीके से बर्ताव करना है , धीरे और आराम से बोलना है, लड़को को ये हिदायतें कम दी जाती है। शायद इसलिए भी क्योंकि माये अपने पति के दबाव में चुप रहती है। जब भी वो कुछ सिखाने की कोशिश करती है तो रूढ़िवादी सोच के कारण उन्हें चुप करा दिया जाता है। अगर लड़को को जनता के सामने एक सही तरीके से भर्तव करना सिखाये तो महिलाओं के खिलाफ हुए शोषण को रोका जा सके।