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जानिए क्यों वीरे दी वेडिंग और बधाई हो साल की महान नारीवाद फिल्में है

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Swati Bundela
26 Dec 2018
जानिए क्यों वीरे दी वेडिंग और बधाई हो साल की महान नारीवाद फिल्में है
फिल्में, पुस्तकें और कला समाज को आयना दिखाने के लिए होते है. महिलाओं को पुरुषों के अनुसार ही दर्शाया जाता है. उनके अनुसार अच्छी महिलाएँ शांत, सहेज और कोमल दर्शायी जाती है. हमारे समाज में महिलाओं की शारीरिक ज़रूरतों को नज़रअंदाज़  कर दिया जाता है. महिलाओं की कामुकता पर बात होना तो क्या, मुँह ही फेर लिया जाता है.

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ऐसी फिल्म जो बेखौफ महिलाओं को अपनी इच्छाओं और शारीरिक ज़रूरतों पर बात करते दिखाती है या उनकी एक्टिव सेक्स लाइफ को दर्शाती है, महत्वपूर्ण है. ऐसे ही समाज को आयना दिखाती है, कुछ फिल्में जैसे वीरे दी वेडिंग और बधाई हो. इसी साल रिलीज़ हुई यह फिल्में नारीवाद के उत्तम उदाहरण है.

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दोस्ती के अलावा बहुत कुछ कहती है वीरे दी वेडिंग

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वीरे दी वेडिंग चार दोस्तों(जिनका किरदार निभाया है- करीना कपूर, सोनम कपूर, स्वरा भास्कर और शिखा तलसानिया ने) की कहानी है, जो बचपन की मस्तियों से जवानी की ग़लतियों तक साथ हैं. इन महिलाओं की ज़िन्दगी पुरुषों के आगे पीछे नहीं, बल्कि उनकी अपनी मर्ज़ी से चलती है. यह कहानी नारीवाद और महिलाओं की कामुकता पर एक महत्वपूर्ण चित्रण है.

२०१९ में रिलीज़ हुई वीरे दी वेडिंग और बधाई हो ने समाज को आइना दिखाया है

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स्क्रीन पर जब महिला अपनी कामुकता और इच्छा खुल कर व्यक्त करती है, तो समाज को यह बर्दाश्त नहीं होता. जब की, इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिज़नस किया है. समाज और पुरुष चाहे न चाहे, यह फिल्म आवश्यक है, यह दर्शाने के लिए कि महिलाएँ भी अपने मुताबिक़ ज़िन्दगी जी सकती है, वो भी बेहतर और रंगीन अंदाज़ में.

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'बधाई हो' कला से समाज बदल रहा है

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पवित्रता और ममता की मूर्त एक माँ, अपनी अधेड़ उम्र में गर्भवती हो जाए, वो भी जब बच्चों की उम्र हो बच्चे करने की. जी हाँ, कुछ ऐसी ही कहानी है, 'बधाई हो' की. नकुल(आयुष्मान खुराना) यह बर्दाश्त नहीं कर पता कि उसकी माँ गर्भवती है और अपने माँ-बाप से नाराज़ हो जाता है.



क्या इतना बुरा हाल है हमारी मानसिकता का? क्या अपने माँ-बाप की एक्टिव सेक्स लाइफ सहन नहीं कर सकती आज की पीढ़ी? क्या एक माँ औरत नहीं? क्या एक माँ की कोई शारीरिक इच्छा नहीं ? क्यों देवी बना देते है हम उन्हें? क्यों हमारा समाज भेदभाव करता है? यह फिल्म ऐसे ही कुछ प्रश्नों का मुहतोड़ जवाब देती है. सिर्फ नारीवाद नहीं, बल्कि एक ज़रूरी मुद्दे पर बात करती है बधाई हो.



हमें, समाज को और आने वाली पीढ़ी को, ऐसे ही कला और फिल्मों की ज़रूरत है. शर्म के परदे को हटा, ऐसे मुद्दों पर बात करना, महिलाओं के लिए एक अति आवश्यक जीत है. हमें आशा है, निर्माता ऐसी ही खूबसूरत कहानियों के साथ समाज की ज़ंजीरों को तोड़े और हर किसी को खुल कर जीने का साहस दे.
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