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जानिए अतिबेन वरसात को ओर्गानिक फॉर्मिंग ने कैसे सशक्त किया

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Swati Bundela
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क्या आपने कभी ये सोचा है कि देश का विकास अगर होता है , तो इसमें सबसे बड़ा हाथ गाओं की औरतों का हो सकता है? हमारे देश की 70 प्रतिशत आबादी गाँव में रह खेती में व्यस्त है। ऐसा ही एक राज्य है गुजरात जिसे महिला सशक्तिकरण एक एहम हिस्सा है । इस राज्य में कई ऐसी संस्थाओं ने इस सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया।

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आईये एक ऐसी महिला के बारे में जाने-


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अतिबेन वरसात


गांव पडिपंचल, गुजरात से आयीं हुई वर्षा अतिबेन बारवीं कक्षा तक पढ़ी हुई है। उनके घर में चार सदस्य हैं, और वो एच.आर.डी.सी( ह्यूमन रिसोर्सेज डेवेलपमेंट सेन्टर) नामक संस्था से जुड़ी हुई है। उन्हें घर से ही खेती बाड़ी के बारे में सीखा दिया गया था। वर्षा का कहना था कि,“मेरे परिवार का ये कहना था कि अगर तुम घर से कुछ सीख के जाओगी तो ससुराल में तुम्हे आसानी होगी” इसी सोच के साथ उन्होंने जमके खेती करना सीखा, पर बात यहाँ खत्म नही हुई।

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महिलाओं की समस्या
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गांव में वर्षा को दूसरों की तरह ही ये लगता था कि पिता के ज़मीन की वारिस लड़कियाँ नही हो सकती। पति की ज़मीन की हकदार वो पति के मृत्यु के बाद होती है। कमला बेन नामक एक स्त्री से मिलने के बाद उन्हें समझ आया कि आदिवासी औरतों का पिता के ज़मीन पे हक़ हो सकता है। ये सब सुनने के बाद उन्होंने एच डी आर सी में अपनी शुरुआत की और बाल सुरक्षा अभिज्ञान में भी अपने आप को व्यस्त किया.


इनका सफर अब तक
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3 महीने की ट्रेनिंग के बाद उन्हें धीरे धीरे काम करने को कहा गया और डब्ल्यू.जी.डब्लूएल.ओकी सहायता से इन्होंने ओर्गानिक फार्मिंग को बढ़ावा दिया। 10 गांव से हाथ मिलाके इन्होंने खेती को बढ़ावा दिया। ये ही नही, इन्होंने ओर्गानिक दवाइयों को बनाया ताकि शहर से आये हुए दवाइयां पे ज्यादा खर्च न हो। अब औरतो को हल जोतने के लिए आदमियों पे निर्भर नही रहना पड़ता था, औरते ही औरतो की मदद करदेती है । बीज़ खरिदने नही पड़ते और आर्थीक रूप से ये आदमियों पे निर्भर नही है।


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कठिनाईयां

इनके सफर में काफी अड़चने आयी। अतिबेन के अनुसार, “जब ज़मीन हमारे नाम हुई और हम किसी सरकारी दफ्तर से लाभ मांगने जाते थे, वो ये कहते है कि ज़मीन पति के नामपे क्यों नही है”। अक्सर देर रात में उन्हें रिक्शा ले के घर जाना पड़ता है।
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अतिबेन के उलेखनीय कार्य

मुम्बई में होने वाले एक समारोह में जहां अलग अलग जगह से अलग अलग लोग आके अपने स्टाल्स और दुकानें लगा रहे थे वहीं अतिबेन ने अपनी दुकान लगाई।“ पहले तो अंग्रेज़ी न आने के कारण काफ़ी दिक्कते आयी, मशहूर सेलेब्रिटीज़ जैसे दिया मिर्ज़ा एवं जूही चावला आये”। दूसरे दिन ट्रन पकड़ना आसान होगया और वर्षा ने अपने साइड के दुकान वाले से अंग्रेज़ी में लोगो से वार्तालाप करवाने की कोशिश की, ताकि वो समझे कि वो क्या कहना चाहती है। गुजरात लौटने के कुछ ही दिन बाद कस्तूरी संस्था वाले पड़ी पांचाल आये और औरतों के काम को सराहा ।


क्या है इसका भविष्य

कई औरतें अपने आप को अर्थिक रूप से सक्षम बना रही है। महानगरों में जाकर उल्लेखनीय कार्य कर रही है। दूसरों के पास जाके ओर्गानिक फॉर्मिंग का संदेश दे, दूसरों को आकर्षित कर रही है। अतिबेन के अनुसार “मुझे बहुत अच्छा लगता है जब शहर की औरते हमारा काम देखने आती है और ये देखती है कि हम कैसे दवाइयाँ बनाते है और ओर्गानिक खेती करते है।

इंस्पिरेशन
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