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भारत में महिलाओं को संसद और राज्य विधानसभाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नही मिलता है लेकिन राजनीतिक रूप से वे अपने वोट के ज़रिये में अपनी उपस्थिति महसूस कर रही हैं. यह स्वीकार किया गया है कि दुनिया भर में, राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व किसी न किसी तरह से जटिल मुद्दों को हल करने में काफी हद तक फायदेमंद होता है, ख़ासकर उस समय जब हर कोई सामूहिक रूप से लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ रहे है.
सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि महिलाएं पहले से कहीं अधिक मतदान कर रही हैं और उनका अधिक मतदान करना देश को प्रभावित करेगा और संरचनात्मक परिवर्तनों में सुधार लायेंगा.
महिला साक्षरता और जागरूकता में वृद्धि ने महिलाओं के बीच राजनीतिक समझ पैदा की है. राष्ट्रीय चुनाव अध्ययन (एनईएस) के सर्वेक्षण आंकड़ों से पता चला कि 2014 में लगभग 61 प्रतिशत महिला उत्तरदाताओं को समाचार मीडिया के संपर्क में लाया गया था, जो कि 2009 में 35 प्रतिशत था. दिलचस्प बात यह है कि महिलाएं अपने मतदान के अधिकार का ज्यादा उपयोग कर रही है और राज्य के चुनाव मतदान में उनकी हिस्सेदारी पुरुषों से दो तिहाई ज्यादा रही. यह सभी भारतीय राज्यों में लागू होती है उनमें भी जो सामाजिक या आर्थिक रूप से पिछड़े हुये है.
भारत की संसद के अनुसार, महिला मतदाता मतदान 1950 में 38.8 प्रतिशत से बढ़कर 1990 के दशक में लगभग 60 प्रतिशत तक हो गया. इसी अवधि के दौरान पुरुष मतदान में वृद्धि केवल 4% रही है. इससे पता चलता है कि महिलाओं को, जब मंच और अवसर दिया जाता है, तो वह सिस्टम को बदलने में सक्ष्म है. इस वर्ष द एकोनोमिक एंड पोलिटिक्ल वीकली में प्रकाशित एक अध्ययन में, शोधकर्ता ने बताया है कि मतदान के समय जेंडर पूर्वाग्रह में स्थिर और तेज गिरावट नज़र आ रही है.
2004 में, पुरुषों का प्रतिशत राष्ट्रीय चुनावों में महिलाओं से 8.4 प्रतिशत ज्यादा थी. लेकिन 2014 तक, यह अंतर सिकुड़ कर 1.8 प्रतिशत अंक तक आ गया. भारत के 29 राज्यों में से 16 में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं ने मतदान किया. 2014 के चुनावों में कुल 260.6 मिलियन महिलाओं ने वोट देने के अधिकार का इस्तेमाल किया.
भारत के 29 राज्यों में से 16 में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं ने मतदान किया. 2014 के चुनावों में कुल 260.6 मिलियन महिलाओं ने वोट देने के अधिकार का इस्तेमाल किया.
मतदान में महिलाओं की भागीदारी सामाजिक-राजनीतिक लिंग समानता को भी बढ़ावा देती है. भारत का मतदान क्षेत्र, जो काफी हद तक पुरुष-वर्चस्व वाला रहा है, अब बदलाव के दौर से गुज़र रहा है.
महिला मतदाताओं के महत्व की बात आती है तो कुछ महत्वपूर्ण बिंदु यह हैं:
हालांकि महिला मतदाताओं में बढ़ोतरी दर्ज हुई है, लेकिन देश को गंभीर लिंग असंतुलन का सामना करना पड़ रहा है.
महिला मतदाताओं का प्रतिशत बढ़ा है, लेकिन ज्यादातर राज्यों में वयस्क जनसंख्या लिंग अनुपात की तुलना में यह कम है. देश की 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में हर 1,000 पुरुषों के लिए लगभग 943 महिलाएं हैं. विश्व बैंक के मुताबिक, भारत 194 देशों में से नीचे से 186वें स्थान पर है. भारत के पंजीकृत मतदाताओं के बीच लिंग अनुपात और भी बदतर है. देश में हर 1000 पुरुषों में केवल 908 महिलायें ही मतदाता सूची में है.
देश में हर 1000 पुरुषों में केवल 908 महिलायें ही मतदाता सूची में है.
प्रगति के बावजूद यह बताता है कि भारतीय महिलाएं पीड़ित है चुनाव के दौरान भी. असंतुलन स्पष्ट रूप से पुरुषों की तुलना में महिलाओं को वोट देने के लिए पंजीकृत होने की संभावना कम करता है.
हम इस तथ्य से अवगत हैं कि भारत में महिलाओं को संसद और राज्य विधानसभाओं में कम प्रतिनिधित्व मिला है. 542 सदस्यीय लोकसभा में और 245 सदस्यीय राज्यसभा में महिला प्रतिशत क्रमश: 11.6% और 11% है. अधिक महिलाओं के राजनीतिक में आने के लिये बिल्कुल कोई प्रयास नहीं किया गया है. अफसोस की बात है कि, राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के संदर्भ में इंटर-संसदीय संघ (आईपीयू) और यूएन वुमेन, द्वारा हाल ही में जारी की गई वुमेन इन पालिटिक्स 2017 के अनुसार, भारत का नंबर 148 वें स्थान पर है 193 सन-सूचीबद्ध देशों में से. हम कैबिनेट में केवल 18.5% महिला मंत्रियों की वजह से में 88 रैंक भी आते है.
राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामलें में भारत 193 शासन-सूचीबद्ध देशों में से 148 स्थान पर है.
महिलाओं को वोट का अधिकार, मानव अधिकार है जो देश के विकास से जुड़ा हुआ है. सबसे पहले, देश भर में क्षेत्रों के दूरस्थ क्षेत्रों में भी महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में बताया जाना चाहियें. संस्थानों और परिवारों को निर्णय लेने में अपनी महिलाओं को शामिल करने और उन्हें अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम बनाना चाहिए.
राज्य की संस्थायें भी महिलाओं के लिए वोटिंग को आसान बनाने का प्रयास कर रही है. उदाहरण के लिए, भारत का चुनाव आयोग, मतदान बूथों की सुरक्षा में सुधार करके अधिक महिलाओं को वोट देने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहा है. अधिकारियों ने चुनाव के दिन महिलाओं के लिए अलग-अलग कतार बना कर क्षेत्र को और अधिक सुविधाजनक बना दिया है. सभी लोगों को बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं के ज़रिये मतदान सुनिश्चित करने की कोशिश करना चाहिये तभी हम देश को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से विकसित कर पायेंगे.
सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि महिलाएं पहले से कहीं अधिक मतदान कर रही हैं और उनका अधिक मतदान करना देश को प्रभावित करेगा और संरचनात्मक परिवर्तनों में सुधार लायेंगा.
महिला मतदाताओं में वृद्धि
महिला साक्षरता और जागरूकता में वृद्धि ने महिलाओं के बीच राजनीतिक समझ पैदा की है. राष्ट्रीय चुनाव अध्ययन (एनईएस) के सर्वेक्षण आंकड़ों से पता चला कि 2014 में लगभग 61 प्रतिशत महिला उत्तरदाताओं को समाचार मीडिया के संपर्क में लाया गया था, जो कि 2009 में 35 प्रतिशत था. दिलचस्प बात यह है कि महिलाएं अपने मतदान के अधिकार का ज्यादा उपयोग कर रही है और राज्य के चुनाव मतदान में उनकी हिस्सेदारी पुरुषों से दो तिहाई ज्यादा रही. यह सभी भारतीय राज्यों में लागू होती है उनमें भी जो सामाजिक या आर्थिक रूप से पिछड़े हुये है.
भारत की संसद के अनुसार, महिला मतदाता मतदान 1950 में 38.8 प्रतिशत से बढ़कर 1990 के दशक में लगभग 60 प्रतिशत तक हो गया. इसी अवधि के दौरान पुरुष मतदान में वृद्धि केवल 4% रही है. इससे पता चलता है कि महिलाओं को, जब मंच और अवसर दिया जाता है, तो वह सिस्टम को बदलने में सक्ष्म है. इस वर्ष द एकोनोमिक एंड पोलिटिक्ल वीकली में प्रकाशित एक अध्ययन में, शोधकर्ता ने बताया है कि मतदान के समय जेंडर पूर्वाग्रह में स्थिर और तेज गिरावट नज़र आ रही है.
2004 में, पुरुषों का प्रतिशत राष्ट्रीय चुनावों में महिलाओं से 8.4 प्रतिशत ज्यादा थी. लेकिन 2014 तक, यह अंतर सिकुड़ कर 1.8 प्रतिशत अंक तक आ गया. भारत के 29 राज्यों में से 16 में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं ने मतदान किया. 2014 के चुनावों में कुल 260.6 मिलियन महिलाओं ने वोट देने के अधिकार का इस्तेमाल किया.
भारत के 29 राज्यों में से 16 में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं ने मतदान किया. 2014 के चुनावों में कुल 260.6 मिलियन महिलाओं ने वोट देने के अधिकार का इस्तेमाल किया.
महिला मतदाताओं का महत्व
मतदान में महिलाओं की भागीदारी सामाजिक-राजनीतिक लिंग समानता को भी बढ़ावा देती है. भारत का मतदान क्षेत्र, जो काफी हद तक पुरुष-वर्चस्व वाला रहा है, अब बदलाव के दौर से गुज़र रहा है.
महिला मतदाताओं के महत्व की बात आती है तो कुछ महत्वपूर्ण बिंदु यह हैं:
- ऐतिहासिक रूप से बताया जा सकता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं राजनीति में कम रुचि लेती हैं. इसकी वजह से महिलायें पिछली सीट में आ गई. सार्वजनिक सुरक्षा, स्वच्छता या स्वास्थ्य देखभाल जैसे क्षेत्र इस वजह से काफी हद तक उपेक्षित रहें.
- वोट देने का अधिकार समझने वाली महिलाएं ज्यादा अंतर डाल सकती हैं और परिस्थितियों को बेहतरी के लिये बदल सकती हैं.
- चूंकि पुरुष हमेशा बड़ी संख्या में मतदान करने के लिए निकलते हैं, इसलिए यह राजनीतिक दलों के लिए जरुरी हो गया है कि वह पुरुष मतदाताओं को लुभायें और महिलाओं को अनदेखा करें.
- एक अध्ययन में बताया गया है कि महिला मतदाताओं में वृद्धि, सार्वजनिक और निजी जीवन में जेंडर भूमिकाओं के बारे में प्रचलित रूढ़िवाद को कम करने में मदद करते है.
- एक अन्य अध्ययन से पता चला कि कैसे महिला राजनेता अपने क्षेत्राधिकार के तहत रहने वाली लड़कियों की आकांक्षाओं और शैक्षणिक प्राप्ति के लिए बेहद फायदेमंद हो सकती हैं.
हालांकि महिला मतदाताओं में बढ़ोतरी दर्ज हुई है, लेकिन देश को गंभीर लिंग असंतुलन का सामना करना पड़ रहा है.
महिला मतदाताओं का प्रतिशत बढ़ा है, लेकिन ज्यादातर राज्यों में वयस्क जनसंख्या लिंग अनुपात की तुलना में यह कम है. देश की 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में हर 1,000 पुरुषों के लिए लगभग 943 महिलाएं हैं. विश्व बैंक के मुताबिक, भारत 194 देशों में से नीचे से 186वें स्थान पर है. भारत के पंजीकृत मतदाताओं के बीच लिंग अनुपात और भी बदतर है. देश में हर 1000 पुरुषों में केवल 908 महिलायें ही मतदाता सूची में है.
देश में हर 1000 पुरुषों में केवल 908 महिलायें ही मतदाता सूची में है.
प्रगति के बावजूद यह बताता है कि भारतीय महिलाएं पीड़ित है चुनाव के दौरान भी. असंतुलन स्पष्ट रूप से पुरुषों की तुलना में महिलाओं को वोट देने के लिए पंजीकृत होने की संभावना कम करता है.
महिला मतदाताओं के ज्यादा मतदान से क्या संसद में महिलाओं को प्रतिनिधित्व बढ़ेंगा?
हम इस तथ्य से अवगत हैं कि भारत में महिलाओं को संसद और राज्य विधानसभाओं में कम प्रतिनिधित्व मिला है. 542 सदस्यीय लोकसभा में और 245 सदस्यीय राज्यसभा में महिला प्रतिशत क्रमश: 11.6% और 11% है. अधिक महिलाओं के राजनीतिक में आने के लिये बिल्कुल कोई प्रयास नहीं किया गया है. अफसोस की बात है कि, राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के संदर्भ में इंटर-संसदीय संघ (आईपीयू) और यूएन वुमेन, द्वारा हाल ही में जारी की गई वुमेन इन पालिटिक्स 2017 के अनुसार, भारत का नंबर 148 वें स्थान पर है 193 सन-सूचीबद्ध देशों में से. हम कैबिनेट में केवल 18.5% महिला मंत्रियों की वजह से में 88 रैंक भी आते है.
राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामलें में भारत 193 शासन-सूचीबद्ध देशों में से 148 स्थान पर है.
हम और अधिक महिला मतदाताओं को कैसे प्रोत्साहित कर सकते हैं?
महिलाओं को वोट का अधिकार, मानव अधिकार है जो देश के विकास से जुड़ा हुआ है. सबसे पहले, देश भर में क्षेत्रों के दूरस्थ क्षेत्रों में भी महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में बताया जाना चाहियें. संस्थानों और परिवारों को निर्णय लेने में अपनी महिलाओं को शामिल करने और उन्हें अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम बनाना चाहिए.
राज्य की संस्थायें भी महिलाओं के लिए वोटिंग को आसान बनाने का प्रयास कर रही है. उदाहरण के लिए, भारत का चुनाव आयोग, मतदान बूथों की सुरक्षा में सुधार करके अधिक महिलाओं को वोट देने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहा है. अधिकारियों ने चुनाव के दिन महिलाओं के लिए अलग-अलग कतार बना कर क्षेत्र को और अधिक सुविधाजनक बना दिया है. सभी लोगों को बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं के ज़रिये मतदान सुनिश्चित करने की कोशिश करना चाहिये तभी हम देश को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से विकसित कर पायेंगे.