Advertisment

कश्मीर की पहली महिला वुशु चैंपियन जबीना अख्तर से मिलें

author-image
Swati Bundela
New Update
पिछले साल अर्मेनिया में आयोजित वुशु इंटरनेशनल चैम्पियनशिप में कांस्य पदक विजेता, जबीना अख्तर मार्शल आर्ट के इस रूप को अपनाने वाली पहली कश्मीरी महिला चैंपियन है. बारामूला के तंगमर्ग जिले के एक छोटे से गांव काजीपोरा की रहने वाले अख्तर, बारामुल्ला जिले के वुशु एसोसिएशन की महासचिव भी हैं. उनका पहला प्यार क्रिकेट था और उन्होंने उसे राष्ट्रीय स्तर पर भी खेला. जबीना एक ऐसे माहौल में बड़ी हुई जो लड़कियों को बड़े सपने देखने से रोकती थी लेकिन इस खिलाड़ी के लिये कोई सीमा नहीं थी. वह वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय वुशु चैंपियनशिप के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, जो नवंबर में चीन में आयोजित की जाएगी. लेकिन वह चिंतित भी है कि प्रायोजक की कमी की वजह से उन्हें जाने का मौका नही मिल पायें. इसके अलावा, एक वुशु कोच, जबीना पहलवान गीता फोगट से प्रेरित है और वुशु में ट्रेन करने के लिए अधिक से अधिक लड़कियों को चाहती है. जबीना के पसंदीदा मार्शल आर्ट फॉर्म को चीनी कुंगफू के रूप में जाना जाता है और यह एक पूर्ण संपर्क खेल है.

Advertisment


SheThePeople.TV ने जबीना अख्तर के साथ वुशु के जुनून और कश्मीर से महिला खिलाड़ी के रूप में चुनौतियों के बारे में बात की. साक्षात्कार के कुछ संपादित अंश:

वुशु में आने के लिये आपको किस चीज़ ने प्रेरित किया?

Advertisment


एक दिन मैं टेलीविज़न पर पहलवान गीता फोगट को देख रही थी, इस खेल के लिए उसके जुनून ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर वह कर सकती है तो मैं क्यों नहीं कर सकती! और मैंने अपने दिमाग को खेल में करियर बनाने के लिए तैयार किया, जहां मैं साबित कर सकती हूं कि एक औरत क्या कर सकती है जो एक आदमी कर सकता है. वुशु, शक्ति, गति और लचीलापन का एक खेल है. मुझे वुशु एक ऐसा खेल लगता है जिससें मैं अपने आप को सुरक्षित बना सकती हूं.



मैंने वर्ष 2007 में खेलना शुरू किया और राज्य, राष्ट्रीय और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं के माध्यम से अपना रास्ता बनाया. वैसे, मुझे कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन मैंने उम्मीद नही खोई. मैं दृढ़ता से खड़ी थी और अपने देश को गर्व का अहसास करना चाहती थी.
Advertisment


चैंपियन का यह मतलब नहीं है कि आप हमेशा विजेता हो लेकिन जो हिस्सा लेते हैं वे असली चैंपियन बन जाते हैं.



Advertisment

आप क्रिकेट भी खेलती हैं तो आपने अपना करियर क्यों बदल दिया?



इसमें कोई संदेह नहीं है, मुझे क्रिकेट खेलना अच्छा लगता है लेकिन मैं वुशु को लेकर भावुक हूं. मैंने सोचा कि एक बार में विभिन्न तरह की चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय खेल के केवल एक रूप में विशेषज्ञता हासिल करना बेहतर है.

आप बारामुल्ला में एक अकादमी चलाती हैं, हमें कोच के रूप में अपने अनुभव के बारे में बताएं.
Advertisment




Jabeena Akhter, Washu
Advertisment




लड़कियों को मजबूत बनाने और उन्हें एक सुरक्षित वातावरण देने के विचार के साथ इस अकादमी की स्थापना की गई थी. जम्मू-कश्मीर में बच्चों के लिए कई अकादमिया हैं लेकिन लड़कियों के लिए कोई अलग नहीं है और लड़कों की तुलना में भाग लेने वाली लड़कियों की संख्या काफी कम है. मैं इस खेल में एक कोच के रूप में सेवा करने का आनंद लेती हूं. मैं देखती हूं कि अधिक से अधिक लड़कियां इसके लाभ सीखने के बाद इस खेल में रूचि विकसित कर रही हैं. अब वे अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए अच्छी संख्या में आती हैं.

Advertisment


इस तरह की प्रशिक्षण से गुजरने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हर जिले में लड़कियों के लिए समर्पित अकादमियों का विकास करना है.

खेल के प्रति आपको क्या प्रेरित करता है?



खेल मेरे लिए सबकुछ है, मैं एक खिलाड़ी बनने के लिए पैदा हुई थी. आत्म-प्रेरणा बहुत महत्वपूर्ण है जो आप को अपनी पसंद का काम करने के लिये. पेशेवर खेल उद्योग तेजी से बढ़ रहा है इसलिए खेल की मार्केटिंग करने वालों के लिये कई चुनौतियां हैं. हमें प्रशंसकों को समझने की आवश्यकता है क्योंकि प्रायोजन की पहचान करना आवश्यक है.

अगली महत्वपूर्ण बात प्रशंसकों तक पहुंचने के लिए पदोन्नति है और न केवल क्रिकेट या हॉकी जैसे लोकप्रिय खेलों में बल्कि अंडररेटेड खेलों में भी. हकीकत में इन खेलों में अवसरों की ज्यादा गुंजाइश है.

आपके रास्ते पर आने वाली सबसे बड़ी चुनौतियां क्या हैं?



एक कोच के रूप में सबसे बड़ी चुनौती सामाजिक बाधाओं और वित्तीय मुश्किलों से निपटने की है. मैं वित्तीय सहायता की कमी के कारण हांगकांग 2017 में एक प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकी. हालांकि, मैं कार्यों को प्राथमिकता देना जारी रखती हूं और बाधाओं के बावजूद खुद का काम जारी रखने पर यक़ीन करती हूं.



Jabeena Akhter, Washu

आप अपने जीवन, परिवार और पेशे को कैसे संतुलित करती हैं?



मैंने उन चीज़ों के लिए अपनी प्राथमिकता निर्धारित की जो मेरे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. मुझे जीवन और पेशे को संतुलित करना आसान है क्योंकि मेरे चारों ओर हर कोई सहायक है.



राज्य की लड़कियों का इस खेल में आने की क्या संभावना है? क्या उन्हें उतना बढ़ावा मिलता है जिसकी वह हक़दार हैं?

हमारे राज्य में लड़कियों को अपनी पसंद का खेल खेलने में बहुत संभावनाएं हैं. यहां सुविधाओं की कमी है और सामाजिक बाधायें भी है जिसकी वजह से वह जोखिम लेने से बचती है.

सामान्य रूप से खेल ने इस क्षेत्र में महिलाओं को कैसे आगे बढ़ाया है? क्या महिलाएं अब पेशेवर खेल खेलना चाहती हैं?



आजकल महिलाएं कुश्ती, क्रिकेट, वॉलीबॉल, हॉकी और वुशु में प्रतिस्पर्धा कर रही हैं. निश्चित रूप से इस तरह के एक्सपोजर ने महिलाओं को समाज में एक अलग जगह दी है. महिलाएं अब पेशेवरों रुप से खेलों के साथ संबंध बना रही है. महिलाओं ने साबित कर दिया है कि खेल किसी विशेष जेंडर से संबंधित नहीं होता है.

महिलाओं के खेल और लिंग भेदभाव पर आपका क्या सोचना है?



जहां तक लिंग भेदभाव का सवाल है, यह अभी भी हमारे देश के कुछ हिस्सों में विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में प्रचलित है. यद्पि समानता निर्धारित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, फिर भी हमें लंबा सफर तय करना है. हमें शिक्षा को जेंडर संवेदनशील बनाना है और लड़कियों को अपने सपनों को विस्तार देना है ताकि वह आगे बढ़ सकें.

अंत में, इच्छुक लड़कियों के लिए आपकी सलाह?



आप जिस खेल को प्यार करते हैं उस पर ध्यान केंद्रित करें. आशा मत खोयें और हर दिन की गिनती करें. अपनी ऊर्जा को पूरी तरह से लगायें. हर कठिनाई के बाद आसानी है.
प्रेरणादायक कहानियां क्रिकेट जबीना अख्तर वुशु हॉकी
Advertisment