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मिलिए उर्वशी यादव से - गुडगाँव की मशहूर छोले-कुलचे की रेडी चलाने वाली साहसी महिला से

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Swati Bundela
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उर्वशी यादव जो की कुछ साल पहले तक किड्जी में एक सम्मानीय प्राथमिक अध्यापिका थी, वहाँ उन्होंने 3 साल तक कार्य किया उसके बाद जीवन में अचानक कठिन परिस्थितियों के चलते उन्होंने अपने जीवन को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए इस छोले- कुलचे की रेडी पर छोले - कुलचे बेचकर अपने जीवन का निर्वाह करने की शुरुआत की।यह उनका बहुत ही बड़ा कदम था उनके जीवन की और एक नयी शुरुआत करने का क्यूंकि वह सम्मान से अपने जीवन को बिना किसीकी सहायता के अपनी मेहनत से जीना चाहती थी । आइये शीदपीपल.टीवी को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने हमे अपने जीवन में आयी चुनौतियों के बारे में बताया।

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आपने रेडी से ही शुरुआत करना क्यों ज़रूरी समझा ?          



मुझे हमेशा से ही खाना बनाने का बहुत शोक था इसलिए जीवन में एक ऐसा समय आया जब मेरे पति को एक दुर्घटना में उनके कूल्हे के जोड़ में चोट आयी तो मेरे पास उस समय बहुत ही कम खर्च था जिससे मै उनका इलाज करवा पाती और जीवन को आगे बढ़ा पाती । मै एक साधारण सी अध्यापिका थी जिसे वेतन में चंद पैसे मिलते थे घर का सारा खर्च मेरे पति की कमाई से ही चलता था तो उस समय मै अपने किसी रिश्तेदार से भी मदद नहीं लेना चाहती थी । मेरी सोच यह थी की मै अपने जीवन की कठिनाइयों को अपनी मेहनत से खुद सुलझाउंगी जिससे की अगर मुझे इस व्यवसाय में नुक्सान भी हो तो मै संतुष्ट रहूँ की यह मेरे खुद के कार्य का नतीजा है।

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आपको कैसा महसूस होता है अपने इस व्यवसाय के साथ ?



मुझे बहुत खुशी महसूस होती है की ये जो भी है बस मेरा है चाहे मै इसमें कमाउन या नुक्सान करू सब कुछ मेरा है। मै जब चाहे आकर दिन की शुरुआत करू , जब चाहे अपनी जरूरत के अनुसार इसे बंद कर सकती हूँ। मुझे बहुत गर्व महसूस होता है की मै अपने फैसले खुद ले सकती हूँ ।

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अपने संघर्षों के बारे में हमे बताएं।



मैंने जून 2016 में इस रेडी की शुरुआत की पहले तो सामाजिक कठिनाइयाँ बहुत थी क्योंकि छोले कुलचे की रेडी खोलना मेरे पूरे परिवार के लिए एक बहुत चौंकाने वाली बात थी। उन्हें लगा की इससे परिवार के नाम और प्रतिष्ठा पर बहुत गहरा असर पड़ेगा।उस समय सभी दोस्तों और परिवार वालो ने मेरा साथ छोड़ दिया था। मै फिर भी डटी रही क्यूंकि मेरे पिता ने मुझे हमेशा सिखाया था की कभी हार नहीं मानना और कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना, तो उनकी सीख को मैंने अपनी प्रेरणा का स्त्रोत माना। समाज की बहुत सी रूढ़िवादी बातों का सामना करके मैंने जब रेडी की शुरुआत की तो उस समय गर्मी का मौसम था,तेज़ धुप और गर्मी से मुझे बहुत परेशानी हुई। मेरी त्वचा बहुत नाज़ुक है तो गर्मी में तेज़ धुप में खड़े रहकर काम करने के कारण मेरा पूरा शरीर लाल पड़ गया था ।

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खाना बनाने के अपने जूनून को आपने कब पहचाना ?



एक पंजाबी परिवार से होने के कारण मुझे बचपन से ही खाना बनाने का बहुत शौंक था, जब भी मेरे मायके में कोई भी जश्न का मौका होता था तो सब घर पर मिलकर ही खाना बनाते थे क्यूंकि मेरी परिवार बहुत बड़ा था और जब शादी के बाद ससुराल आयी तो यहाँ परिवार छोटा था परन्तु जब भी कोई जश्न या उत्सव होता था तो मै खुद ही 40 -50 लोगो का खाना बनाती थी । तो मुझे हमेशा खाना बनाने में बहुत सुकून महसूस होता था ।

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अगर आप छोले खुल्छे न बनाती, तो क्या करना चाहती ?



मै अगर छोले - कुलचे नहीं बनाती तो भी खाने से ही जुडी रहती क्यूंकि मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है अगर मै खाना नहीं बनाती तो भी कोई और उत्तर - भारतीय व्यंजन बनाकर उसका व्यवसाय करती परन्तु खाने से ही जुड़ी रहती।



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आप लोगो को जीवन के प्रति क्या सीख देना चाहेंगी ?



मै सबसे यही कहना चाहूंगी की चाहे जीवन में कितनी ही बड़ी मुश्किल क्यों ना आ जाए,हमे  हमेशा हिम्मत से काम लेना चाहिए कभी भी हार नहीं माननी चाहिए क्योंकि जीवन में सुख - दुःख दोनों आते है। अगर जीवन में अभी दुःख है तो ख़ुशी भी ज़रूर मिलेगी, रात के बाद सुबह ज़रूर होगी ।



 
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