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मिलिए ऐतिकला'स किचन की संस्थापक श्रीमती विजया ऐतिकला से

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Swati Bundela
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मिलिए ऐतिकला'स किचन की संस्थापक विजया ऐतिकला जी से जिन्होंने 42 साल की उम्र में आत्मनिर्भर होने के एक प्रयास में रसोई के ज़रिये आगे बढ़ने की शुरुआत की। उन्होंने 4 जून, 2018 को ऐतिकला'स किचन की शुरुआत की। आइये शीदपीपल .टी वीको दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने हमे अपने अनुभवों के बारे में बताया।

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  1. आपने ऐतिकला'स किचन शुरू करने का विचार का विचार कैसे आया ?







मेरे पति इंडियन एक्सप्रेस में काम किया करते थे और फिर उनकी रिटायरमेंट के बाद हमे समझ नहीं आ रहा था की हम जीवन की शुरुआत कैसे करें, फिर एक दिन मुझे मेरे अच्छे खाना बनाने के कारण एक कैटरिंग का आर्डर मिला और फिर वही से मेरी ऐतिकला'स किचन की शुरुआत हुई।

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  1. आपको कैसा महसूस होता है अपने इस व्यवसाय के साथ ?







मुझे बहुत ही ज़्यादा ख़ुशी और गर्व महसूस होता है खुद पर । मेरे बच्चे भी मुझसे बहुत खुश है उन्हें भी मुझ पर गर्व महसूस होता है। मुझे ऐसा लगता है जैसे किसी ने मुझे पंख दे दिए हो और मई उड़ सकती हूँ। अब मै किसी पर किसी भी तरह से निर्भर नहीं हूँ।

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  1. खाना बनाने के अपने जूनून को आपने कब पहचाना ?







जब मै 5 साल की थी तब से ही घर संभालती थी और जब 8 साल की हुई तो सारा खाना बनाना सीख गई क्योंकि मेरी माँ घर का सारा काम मुझसे ही करवाती थी। जब 16 साल की हुई तो छोटी सी उम्र में मेरी शादी हो गई।मेरे पति इंडियन एक्सप्रेस में काम करते थे तो उनका ट्रांसफर कोलकाता हुआ तो मै उस वक़्त एक रेस्टोरेंट में इडली खाने गई जो की 20 रुपये की एक इडली और स्वाद में बहुत बेकार तो मुझे लगा की इससे अच्छी इडली मै बना सकती हूँ और लोगो को कम दाम में दे सकती हूँ जिसके लिए मैंने अपने पति से भी कहा पर वह इस व्यवसाय के लिए नहीं माने और मैंने बहुत कोशिश की कोलकाता में अपना रेस्टोरेंट खोलने की पर मुझे किसीका साथ नहीं मिला।

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  1. आप अगर खाना न बनाती तो क्या करना चाहती ?







मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है। मै खाना बनाने के अलावा और कुछ करना नहीं चाहती। आज मै टिफ़िन सर्विस चला रही हूँ। रोज़ के 25 से 27 टिफ़िन भेजती हूँ और कैटरिंग के आर्डर भी लेती हूँ । मै जो कर रही हूँ उसमे बहुत खुश हूँ।

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“खान बनाना मेरे लिए एक पूजा की तरह है जिसे मै हर दिन करना चाहूंगी।“







  1. आप लोगो को जीवन के प्रति क्या सीख देना चाहेंगी ?







हमेशा अपने दिल की सुनो क्योंकि जब हम खुद की सुनते है तो हम और बेहतर होते है हमे अपनी कमियां अपनी अच्छाइयां सब पता है हम जानते है की सबसे अच्छे तरीके से हम क्या कर सकते है तो अपने आपको पहचानो और दूसरा आत्मनिर्भर बनो क्योंकि आत्मनिर्भर बनने से ज़्यादा ख़ुशी और आत्मविश्वास हमे दुनिया में कही से नहीं मिल सकता । आत्मनिर्भर होना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है ।



 
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