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यह कैसे काम करता है?
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक 45 वर्षीय समीरा क्लबों और आयोजकों को स्टील के बर्तनों को उधार देती है वह भी मुफ्त में. एक बार उनका उपयोग हो जाने के बाद आप को उन्हें साफ करना होता है और बर्तन वापस कर देना होता है. अगर किसी को यह विचार पसंद आता है तो वह बैंक में और अधिक बर्तन दान में दे सकते है.
इसकी अवधारणा यह है कि डिस्पोजेबल प्लेटों और कांच के बर्तनों का उपयोग कम किया जायें और उसके बदले स्टील का उपयोग करे जिसे धोया जा सकता है और फिर से उपयोग किया जा सकता है
उन्होंने इंडिया एक्सप्रेस को दिये इंटरव्यूह में कहा, "लोग समझते हैं लेकिन हर किसी के पास उसका उपयोग करने का अपना कारण है. तो मैं इस योजना के साथ आयी कि में फिर से इस्तेमाल की जाने वाली क्रॉकरी मुफ्त में उपलब्ध कराउं. लोगों को खरीदने के लिए कहना किसी भी तरह से व्यावहारिक बात नहीं थी."
उन्होंने यह भी कहा, "बड़ी संख्या में डिस्पोजेबल प्लेटें और कांच की बर्तन जो किसी भी भंडारे, लंगर और चबील के बाद सार्वजनिक स्थानों में छोड़ दिये जाते थे वह मुझे हमेशा परेशान करते थे. प्लास्टिक कचरा नालियों को ब्लाक कर देता है और वह जाकर जाल में फंस जाता है. कई बार जानवर उन्हें निगल लेते है क्योंकि बचा हुई खाना उसमें जाकर फंस जाता है.
उन्होंने अब तक कितनी कामयाबी हासिल की है.?
सतीजा ने पहले ख़ुद के पैसे लगायें और 100 स्टील के ग्लास और 75 प्लेटें खरीदी. उन्हें बर्तनों की पहली खेप ऐसे दोस्त की मदद से मिली जिसके संबंध किसी फैक्ट्री में थे.
केंद्र सरकार के कर्मचारी ने फिर फेसबुक पर' क्रॉकरी बैंक नाम एक फेसबुक पेज बनाया. संदेश सरल था और उसमें कहा गया कि "पूछो - उपयोग - धो - वापसी".
सतीजा ने पिछले महीने निर्जला अकादशी से आगे, चबेल का आयोजन करने वाले समूहों को इस्पात चश्मा उधार देने से शुरू किया था। चश्मे लोगों को लासी की सेवा के लिए इस्तेमाल किया जाता था। "मैंने केवल चश्मा के साथ शुरू किया और उन्हें दो समूहों को दिया। मेरी संतुष्टि के लिए, हम काफी मात्रा में डिस्पोजेबल ट्रैश से बच सकते हैं, "उसने कहा।
एक समूह ने ग्लासों को रख लिया क्यों कि वह नियमित रुप से छबील का आयोजन करता है. उनमें से एक ने उसे कुछ चश्मे दान भी दिए हैं. सतीजा को अर्थिक मदद भी मिली है. लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि केवल वह लोग ही जिन्होंने बर्तनों का इस्तेमाल किया है या फिर बैंक को क्रॉकरी दी है वही इस काम में मदद दे. जोड़ दी है, उन्हें योगदान देना चाहिए।
सतीजा ने अपनी शुरुआत उस ग्रुप को बर्तन उधार देकर की जिन्होंने पिछले महीने निर्जला अकादशी में छब्बील का आयोजन किया. इसमें ग्लासों का इस्तमाल करते हुये लोगों को लस्सी दी गई.
उन्होंने कहा, “मैंने शुरुआत ग्लासों से ही की और उसे दो ग्रुपों को दिया. मेरा मानना है कि हम बहुत बड़ी तादाद में डिस्पोसेबल कचरे से बच सकते है.”
उनका संग्रह
उसका संग्रह अब 400 बर्तनों तक बढ़ गया है. उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि बर्तनों को धाना आसान है अगर वह घर की पार्टी है या भंडारा या लंगर है लेकिन अगर वह सड़की किनारे की पार्टी है तो इसमें समस्या उत्पन्न होती है. . वह कहती है, "सड़कों या सार्वजनिक स्थानों पर समस्या उत्पन्न होती है जहां पानी की उपलब्धता नही होती है. मैं ऐसे मामलों में पानी उपलब्ध कराने के लिए नागरीय निकायों से बात करने पर विचार कर रही हूं. ".
सतीजा का 'बैंक' अभी गुरुग्राम में ही काम कर रहा है. उन्हें आशा है कि लोगों को इस पहल से प्रेरणा मिलेंगी और इस तरह के कई बैंक समुदाय स्तर पर खुलने शुरू हो जाएंग.