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हर्षिनी की कहानी साहस और ताकत की है. आंध्र के कृष्णा जिले के बलुसुपाड़ा के एक छोटे से गांव में बड़ी हुई, हर्षिनी का जन्म पुरुष शरीर के साथ हुआ था, लेकिन उनका दिल एक महिला की तरह था.
"जब मैं केवल पांच वर्ष की थी, मुझे अपनी बहन के कपड़े पहनना अच्छा लगता था लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे लड़के के रूप में बड़ा होने के लिए मजबूर किया जबकि वह जानते थे कि मैं न तो लड़का थी और न ही शारीरिक रूप से लड़की थी. हर्षिनी ने SheThePeople.TV से कहा,“ मेरा दिल एक लड़की का था और वह बात मुझे नुक़सान पहुंचाती थी कि मैं लड़कों की तरह व्यवहार कर रही हूं.”
जबकि उसके किसान पिता उससे घृणा करते थे वही उसकी मां - एक दैनिक वेतन मजदूर ने उसे प्यार दिया जो उसके बड़े होने के लिये जरुरी था. घर आराम का एक स्थान था, लेकिन जब उसने स्कूल में प्रवेश लिया, तो उसे गांव के बच्चों ने लगातार धमकाया और चिढ़ाया.
"मुझे लड़के के कपड़े पहन कर स्कूल में जाना पसंद नहीं था, लेकिन मेरी मां ने मुझे समझाते हुये कहा, कि दुनिया के लिए मुझे एक लड़के की तरह दिखना होगा. जब मैं बड़ी हो रही थी और लगभग 11 या 12 साल की थी, मुझे एहसास हुआ कि मैं वास्तव में एक लड़की थी लेकिन गलत शरीर में पैदा हुई थी. मेरे आस-पास के बच्चे मुझे चिढ़ाते थे और धमकाते थे. एक बार जब मैं 7 वीं कक्षा में ट्यूशन के लिये जा रही थी, तो एक लड़के ने मुझे 'छक्का' कहा और मैं टूट सी गई थी."
उस दिन हर्षिनी अपनी ट्यूशन से वापस आई और अपनी मां से कहा कि वह कभी बाहर नहीं जाना चाहती.
बड़े होते वक़्त वह ज्यादातर समय अपने घर के अंदर रही क्योंकि उसे डर था कि अगर वह बाहर जायेंगी तो उसे फिर से बाहर वालों की बातें सुनने मिलेंगी. उसे सबसे ज्यादा अच्छा पढ़ने में लगता था.
हर्षिनी ने कहा, "मैं हर रात सोने के पहले रोती थी क्योंकि मुझे लगता था कि ऐसा कोई नहीं था जो मेरे जैसा दिखता या मुझसे बात करता था क्योंकि मुझे ट्रांसजेंडर या हमारे समुदाय के बारे में कोई ज्ञान या जागरूकता नहीं थी." उसने बताया कि घर पर वह सभी घरेलू काम करती थी और अपने परिवार के लिए भी कम उम्र से खाना बनाती थी.
सभी तरफ से पीड़ा और उत्पीड़न का सामना करने के बाद, हर्षिनी किसी तरह से अपना कॉलेज जीवन शुरू करने में कामयाब रही.
वह फिर कॉलेज भी एक लड़के के रूप में नहीं जाना चाहती थी. लेकिन उसके परिवार ने उसे ऐसा करने से हतोत्साहित किया. "जब मैं कॉलेज जाने लगी, तो मुझे अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ा. मुझे अच्छी तरह से शिक्षित और स्वतंत्र देखने का सपना मेरी मां का था. उनके नैतिक समर्थन और दृढ़ता से मुझे अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री-एमए मिली. लेकिन तब तक, मैंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया था. जब मैंने अपनी मां को खो दिया तब मुझे एहसास हुआ कि मैं उनसे कितना प्यार करती थी और वह अकेली थी जिसने मुझे समझ लिया और स्वीकार किया कि मैं कौन हूं. उस समय के दौरान, मैं अवसाद से गुजर रही थी और मैंने आत्महत्या की भी कोशिश की. लेकिन सौभाग्य से मैं बच गई. "
कॉलेज में, हर्षिनी ने यह भी महसूस किया कि उसकी भावनाएं लड़कों के लिये भी शुरू हो गई थी. तब उसने फैसला किया वह अपने शरीर को बदल लेगी और शारीरिक रूप से भी लड़की बन जाएगी. उस समय उसकी मुलाक़ात अन्य ट्रांसजेंडरों से भी हुई, जिन्होंने उसे बताया कि सर्जरी उसे एक महिला में बदल सकती है. वह बेहद खुश हुई और मुंबई आने के लिए घर से भाग गई. लेकिन उसके सपने बिखर गए. मुंबई में, उसका सामना क्रूर वास्तविकता के साथ हुआ कि कैसे ट्रांसजेंडर कैसे सामान्य जीवन जीते हैं. उसे खुद को बनाए रखने के लिए भीख मांगने और सेक्स करने के लिए कहा गया.
एक ट्रांसजेंडर होने के नाते, हर्षिनी को बाहरी दुनिया से घृणास्पद व्यवहार का सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि अपने घर पर भी इस तरह का व्यवहार देखने को मिला. उसके पिता ने निजी कॉलेजों में अध्ययन करने के लिए उसका ख़र्च नही उठाया, जबकि उसके भाई अच्छे विश्वविद्यालय में गए. उसे सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ी.
उसकी मां की मृत्यु के बाद, हर्षिनी को पता था कि अब वह अपने गांव में नहीं रह सकती थी. तो वह फिर से मुंबई चली गई, लेकिन इस बार सेक्स बदलने का आप्ररेशन करवाने के लिये पर्याप्त कमाई के एकमात्र उद्देश्य के साथ वह गई. अपने ज्ञान और डिग्री के साथ उनसे एक गैर सरकारी संगठन में काम शुरु कर दिया और 2014 में ऑपरेशन करवाया. लेकिन अपनी सर्जरी के बाद, उसके समुदाय ने फिर से उसे यौन कार्यकर्ता बनने के लिए मजबूर करना शुरू कर दिया.
उसने कहा, "मैं कुछ अलग करना चाहता थी, अपने परिवार का सहयोग करना चाहती थी लेकिन मैं सेक्स का काम करके ऐसा नहीं करना चाहता थी." एकमात्र विकल्प एक गैर सरकारी संगठन में काम करना था. उसने कई बार कंपनियों में आवेदन दिया, लेकिन प्रारंभिक कार्यवाही के बाद, उन्हें नौकरी नहीं मिली क्योंकि कंपनियां ट्रांसजेंडर व्यक्ति की भर्ती नहीं करना चाहती थीं.
परिवर्तन की हवाएं
हालांकि, हर्षिनी का जीवन बदल गया जब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ने उसे नौकरी देने के लिये बुलाया.
वह अब वहां एक कार्यकारी सहायक के रूप में काम कर रही है. "कंपनी हमेशा से सहायक रही और मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ करने और नई चीजों को सीखने के लिए प्रोत्साहित करती रही. जिस टीम के साथ मैं काम करती हूं वह भी बहुत ही सहायक रही है और उसने मुझे स्वीकार किया है कि मैं कौन हूं. कंपनी का वातावरण भी बहुत अच्छा था और मुझे बिल्कुल अलग नहीं लगता है. हर कोई मुझसे एक दोस्त की तरह व्यवहार करता है. यह बात मुझे और अधिक करने के लिए प्रोत्साहित करती है और अब मुझे विश्वास है कि मैं अपनी महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने में सक्षम हूं. "
हर्षिनी ने मिस ट्रांसक्यून इंडिया में भी भाग लिया है, और इसे एक प्रतियोगी के रूप में चुना गया था.
हर्षिनी की जीवन यात्रा हमें सिखाती है कि यदि आप सभी के लिए अवसर बढ़ाते हैं और लिंग समावेशी बन जाते हैं, तो प्रत्येक व्यक्ति - उनके लिंग के बावजूद - उत्कृष्टता प्राप्त करने की क्षमता रखता है. ट्रांसजेंडर को आज भी सेक्स के काम का सहारा लेना पड़ता है और भीख मांगनी पड़ती है क्योंकि समाज उनके प्रति मित्रता का हाथ नहीं बढ़ाता है. हम सभी को समाज के सभी सदस्यों के समावेशी और सहायक बनने के लिए एक साथ आने की जरूरत है. केवल तभी सही परिवर्तन होगा.
"जब मैं केवल पांच वर्ष की थी, मुझे अपनी बहन के कपड़े पहनना अच्छा लगता था लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे लड़के के रूप में बड़ा होने के लिए मजबूर किया जबकि वह जानते थे कि मैं न तो लड़का थी और न ही शारीरिक रूप से लड़की थी. हर्षिनी ने SheThePeople.TV से कहा,“ मेरा दिल एक लड़की का था और वह बात मुझे नुक़सान पहुंचाती थी कि मैं लड़कों की तरह व्यवहार कर रही हूं.”
जबकि उसके किसान पिता उससे घृणा करते थे वही उसकी मां - एक दैनिक वेतन मजदूर ने उसे प्यार दिया जो उसके बड़े होने के लिये जरुरी था. घर आराम का एक स्थान था, लेकिन जब उसने स्कूल में प्रवेश लिया, तो उसे गांव के बच्चों ने लगातार धमकाया और चिढ़ाया.
"मुझे लड़के के कपड़े पहन कर स्कूल में जाना पसंद नहीं था, लेकिन मेरी मां ने मुझे समझाते हुये कहा, कि दुनिया के लिए मुझे एक लड़के की तरह दिखना होगा. जब मैं बड़ी हो रही थी और लगभग 11 या 12 साल की थी, मुझे एहसास हुआ कि मैं वास्तव में एक लड़की थी लेकिन गलत शरीर में पैदा हुई थी. मेरे आस-पास के बच्चे मुझे चिढ़ाते थे और धमकाते थे. एक बार जब मैं 7 वीं कक्षा में ट्यूशन के लिये जा रही थी, तो एक लड़के ने मुझे 'छक्का' कहा और मैं टूट सी गई थी."
उस दिन हर्षिनी अपनी ट्यूशन से वापस आई और अपनी मां से कहा कि वह कभी बाहर नहीं जाना चाहती.
बड़े होते वक़्त वह ज्यादातर समय अपने घर के अंदर रही क्योंकि उसे डर था कि अगर वह बाहर जायेंगी तो उसे फिर से बाहर वालों की बातें सुनने मिलेंगी. उसे सबसे ज्यादा अच्छा पढ़ने में लगता था.
हर्षिनी ने कहा, "मैं हर रात सोने के पहले रोती थी क्योंकि मुझे लगता था कि ऐसा कोई नहीं था जो मेरे जैसा दिखता या मुझसे बात करता था क्योंकि मुझे ट्रांसजेंडर या हमारे समुदाय के बारे में कोई ज्ञान या जागरूकता नहीं थी." उसने बताया कि घर पर वह सभी घरेलू काम करती थी और अपने परिवार के लिए भी कम उम्र से खाना बनाती थी.
हार्षिनी
सभी तरफ से पीड़ा और उत्पीड़न का सामना करने के बाद, हर्षिनी किसी तरह से अपना कॉलेज जीवन शुरू करने में कामयाब रही.
वह फिर कॉलेज भी एक लड़के के रूप में नहीं जाना चाहती थी. लेकिन उसके परिवार ने उसे ऐसा करने से हतोत्साहित किया. "जब मैं कॉलेज जाने लगी, तो मुझे अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ा. मुझे अच्छी तरह से शिक्षित और स्वतंत्र देखने का सपना मेरी मां का था. उनके नैतिक समर्थन और दृढ़ता से मुझे अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री-एमए मिली. लेकिन तब तक, मैंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया था. जब मैंने अपनी मां को खो दिया तब मुझे एहसास हुआ कि मैं उनसे कितना प्यार करती थी और वह अकेली थी जिसने मुझे समझ लिया और स्वीकार किया कि मैं कौन हूं. उस समय के दौरान, मैं अवसाद से गुजर रही थी और मैंने आत्महत्या की भी कोशिश की. लेकिन सौभाग्य से मैं बच गई. "
कॉलेज में, हर्षिनी ने यह भी महसूस किया कि उसकी भावनाएं लड़कों के लिये भी शुरू हो गई थी. तब उसने फैसला किया वह अपने शरीर को बदल लेगी और शारीरिक रूप से भी लड़की बन जाएगी. उस समय उसकी मुलाक़ात अन्य ट्रांसजेंडरों से भी हुई, जिन्होंने उसे बताया कि सर्जरी उसे एक महिला में बदल सकती है. वह बेहद खुश हुई और मुंबई आने के लिए घर से भाग गई. लेकिन उसके सपने बिखर गए. मुंबई में, उसका सामना क्रूर वास्तविकता के साथ हुआ कि कैसे ट्रांसजेंडर कैसे सामान्य जीवन जीते हैं. उसे खुद को बनाए रखने के लिए भीख मांगने और सेक्स करने के लिए कहा गया.
हर्षिनी ने कहा, "मैं मुंबई में केवल दो दिनों तक रही और जब मैंने यह सब सुना, तो मैं बहुत रोई कि मैंने भिखारी के जीवन जीने के लिये इतनी पढ़ाई तो नही की."
एक ट्रांसजेंडर होने के नाते, हर्षिनी को बाहरी दुनिया से घृणास्पद व्यवहार का सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि अपने घर पर भी इस तरह का व्यवहार देखने को मिला. उसके पिता ने निजी कॉलेजों में अध्ययन करने के लिए उसका ख़र्च नही उठाया, जबकि उसके भाई अच्छे विश्वविद्यालय में गए. उसे सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ी.
उसकी मां की मृत्यु के बाद, हर्षिनी को पता था कि अब वह अपने गांव में नहीं रह सकती थी. तो वह फिर से मुंबई चली गई, लेकिन इस बार सेक्स बदलने का आप्ररेशन करवाने के लिये पर्याप्त कमाई के एकमात्र उद्देश्य के साथ वह गई. अपने ज्ञान और डिग्री के साथ उनसे एक गैर सरकारी संगठन में काम शुरु कर दिया और 2014 में ऑपरेशन करवाया. लेकिन अपनी सर्जरी के बाद, उसके समुदाय ने फिर से उसे यौन कार्यकर्ता बनने के लिए मजबूर करना शुरू कर दिया.
उसने कहा, "मैं कुछ अलग करना चाहता थी, अपने परिवार का सहयोग करना चाहती थी लेकिन मैं सेक्स का काम करके ऐसा नहीं करना चाहता थी." एकमात्र विकल्प एक गैर सरकारी संगठन में काम करना था. उसने कई बार कंपनियों में आवेदन दिया, लेकिन प्रारंभिक कार्यवाही के बाद, उन्हें नौकरी नहीं मिली क्योंकि कंपनियां ट्रांसजेंडर व्यक्ति की भर्ती नहीं करना चाहती थीं.
परिवर्तन की हवाएं
हालांकि, हर्षिनी का जीवन बदल गया जब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ने उसे नौकरी देने के लिये बुलाया.
हर्षिनी, जेएलएल में कार्यकारी सहायक
वह अब वहां एक कार्यकारी सहायक के रूप में काम कर रही है. "कंपनी हमेशा से सहायक रही और मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ करने और नई चीजों को सीखने के लिए प्रोत्साहित करती रही. जिस टीम के साथ मैं काम करती हूं वह भी बहुत ही सहायक रही है और उसने मुझे स्वीकार किया है कि मैं कौन हूं. कंपनी का वातावरण भी बहुत अच्छा था और मुझे बिल्कुल अलग नहीं लगता है. हर कोई मुझसे एक दोस्त की तरह व्यवहार करता है. यह बात मुझे और अधिक करने के लिए प्रोत्साहित करती है और अब मुझे विश्वास है कि मैं अपनी महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने में सक्षम हूं. "
"आज भी लोगों को ट्रांसजेंडर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, यही कारण है कि समाज हमारे साथ भेदभाव करता है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद धारा 399 को खत्म करने के बाद, मुझे लगता है कि परिवर्तन आएगा और समाज हमारे लिंग के प्रति और सहानुभूति रखेगा.”
हर्षिनी ने मिस ट्रांसक्यून इंडिया में भी भाग लिया है, और इसे एक प्रतियोगी के रूप में चुना गया था.
हर्षिनी की जीवन यात्रा हमें सिखाती है कि यदि आप सभी के लिए अवसर बढ़ाते हैं और लिंग समावेशी बन जाते हैं, तो प्रत्येक व्यक्ति - उनके लिंग के बावजूद - उत्कृष्टता प्राप्त करने की क्षमता रखता है. ट्रांसजेंडर को आज भी सेक्स के काम का सहारा लेना पड़ता है और भीख मांगनी पड़ती है क्योंकि समाज उनके प्रति मित्रता का हाथ नहीं बढ़ाता है. हम सभी को समाज के सभी सदस्यों के समावेशी और सहायक बनने के लिए एक साथ आने की जरूरत है. केवल तभी सही परिवर्तन होगा.