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Gender Stereotype: जेंडर स्टीरियोटाइप तोड़ने वाली ये 5 कला

चाहें समाज में एक स्त्री और पुरुष का रोल हो या कोई काम सबके मन में ये जरुर रहता हैं कि घर का काम महिलाएं बेहतर तरीके से कर लेंगी वहीं बाहर का काम एक पुरुष बेहतर तरीके से कर कर लेगा और ना जाने ऐसे ही कई धारणाएं समाज में बन चुकी हैं।

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Khushi Jaiswal
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(Image Credit : The Social Talks)

Gender Stereotype: हमने हमेशा हर चीज़ को बाँटा है चाहें समाज में एक स्त्री और पुरुष का रोल हो या कोई काम सबके मन में ये जरुर रहता है कि घर का काम महिलाएं बेहतर तरीके से कर लेंगी वहीं बाहर का काम एक पुरुष बेहतर तरीके से कर कर लेगा और ना जाने ऐसे ही कई धारणाएं समाज में बन चुकी हैं लेकिन कला किसी की बाध्य नहीं कोई इंसान या कोई नियम कला को नहीं बाँट सकती न की बांध सकती हैं ऐसे ही आज के युग में इस लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़कर नया स्तर बनाने वाले कुछ कला के बारे में हमनें इस आर्टिकल में जिक्र किया है

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Gender Stereotype: जेंडर स्टीरियोटाइप तोड़ने वाली ये 5 कला

1. फैशन 

फैशन भी एक कला है लेकिन हमने इसे भी स्त्री और पुरुष में बाँट दिया है आज-कल फैशन इंडस्ट्री रोज ऐसे स्टीरियोटाइप को तोड़ रहीं हैंहम अक्सर कभी किसी मेल मॉडल को साड़ी में रैंप वाक करते देखंगे तो एक फीमेल को धोती में ऐसेही जेंडर न्यूट्रल कपड़े पहनकर मॉडल्स और डिज़ाइनर ने सारी प्रतिबंधो को तोड़ा है

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2.  फिल्मों और कहानियों में क्वीर समुदायों की हिस्सेदारी

आज कल के कहानियों में, परचार में, नाटक में, फिल्मों में कहीं न कहीं आपको एलजीबीटीक्यू+ सुमुदायों की हिस्सेदारी देखने मिल जाएंगी ऐसे कई फिल्म जैसे बधाई हो ,कपूर एंड संस आदि में एलजीबीटीक्यू+ सुमुदाय के बारे में फिल्म बनाकर सदियों से चली आई स्टीरियोटाइप को तोड़ा गया है

3. संगीत 

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भारत में संगीत कई करोड़ वर्षों से गाया जा रहा हैंकई संगीतकारों ने एक से बढ़ कर एक संगीत हमे दिए हैं लेकिन कहीं न कहीं संगीत में भी जेंडर स्टीरियोटाइप हमें देखने को मिलती थी ऐसे ही स्टीरियोटाइप को तोड़कर बॉलीवुड में अनेक लिरिक्स राइटर और संगीत कार ने हमे बत्तमीज दिल जैसे गाने दिए हैं जो समाज के बंधे हर बंधन को तोड़ता हैं और एक इंडिपेंडेंट महिला की आजाद जिंदगी के बारे में जिक्र करता है

4. नृत्य

हमारे भारतीय संस्कृति में अनेक तरह के नृत्य हैं लेकिन उसी तरह वो भी महिलाए और पुरुष में बाटे गए हैं जैसे कत्थक में अधिकतर तक महिला ही नृत्य करती थी पर अनेक नृत्यकार जैसे बिरजू महारज ने अपने नृत्य से इतहास रच दिया है 

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5. थिएटर 

भारत में थिएटर ने हमेशा से ऐसे जेंडर स्टीरियोटाइप को तोड़ने के लिए एक से बढ़कर एक नाटक प्रस्तुत की है जैसे एक मराठी नाटक "सखाराम बाइंडर" जिसे विजय तेंदुलकर ने 1972 में लिखा था जिसमे एक पुरुष घरेलू कामगार की कहानी की पड़ताल करता है।

जेंडर स्टीरियोटाइप
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