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Diwali 2024: क्या आप जानते है 5 दिनों की दिवाली में प्रत्येक दिन का महत्त्व

दिवाली का त्योहार केवल एक दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि पूरे पाँच दिनों तक चलने वाला पर्व है, जिसमें हर दिन का विशेष महत्व और अलग-अलग धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक संदेश छिपा हुआ है।

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kukshita kukshita
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shethepeople.tv

5 Days Of Diwali Significance: दिवाली त्यौहार बुराई पर अच्छाई, अज्ञान पर ज्ञान, और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। यह केवल एक दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि पूरे पाँच दिनों तक चलने वाला पर्व है, जिसमें हर दिन का विशेष महत्व और अलग-अलग धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक संदेश छिपा हुआ है। इन पांच दिनों के माध्यम से हमारी परंपराएं और मान्यताएं जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं, जिससे हमें अपने जीवन को और भी बेहतर बनाने की प्रेरणा मिलती है।

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दिवाली का त्योहार मनाते समय लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करते हैं, दीपक जलाते हैं, रंगोली बनाते हैं, और अपने घरों को सजीव बनाते हैं। यह पर्व हमें एकजुटता, प्रेम, और भाईचारे का संदेश देता है। इस दौरान हर कोई नए कपड़े पहनता है, मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं, और लोग मिल-जुलकर खुशियाँ मनाते हैं। इस पर्व में देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जो धन और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं, ताकि घर-परिवार में सुख-शांति और वैभव का वास हो।

दिवाली के पाँच दिनों का महत्व और उनकी परंपराएं

1. धनतेरस (पहला दिन)

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दिवाली का पहला दिन धनतेरस के रूप में मनाया जाता है, जो मुख्य रूप से धन, समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान इस दिन भगवान धनवंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे, जिन्हें आरोग्य और स्वास्थ्य का देवता माना जाता है। इसलिए इस दिन बर्तन, सोने-चांदी के आभूषण और धन का सामान खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी की पूजा कर घर में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।

कुछ परिवारों में इस दिन घर के मुख्य द्वार पर दीप जलाए जाते हैं और रंगोली बनाई जाती है, ताकि लक्ष्मी माता घर में प्रवेश करें और दरिद्रता दूर हो। साथ ही, आयुर्वेद में विश्वास रखने वाले लोग भगवान धनवंतरि से अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना भी करते हैं।

2. नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली (दूसरा दिन)

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दिवाली के दूसरे दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाता है, जो मुख्य दिवाली से एक दिन पहले आता है। इस दिन को नरकासुर के वध की खुशी में मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध कर 16,000 कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त कराया था। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर उबटन लगाकर स्नान करते हैं, जिसे ‘अभ्यंग स्नान’ कहा जाता है। यह स्नान नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और शरीर को शुद्ध करता है।

कुछ क्षेत्रों में इस दिन को रूप चौदस भी कहते हैं, जिसमें लोग सौंदर्य और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं। यह दिन हमें हमारे शरीर और मन को शुद्ध रखने की प्रेरणा देता है।

3. दीपावली (तीसरा दिन)

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दीपावली का तीसरा दिन इस पूरे पर्व का सबसे मुख्य दिन होता है। यह दिन माता लक्ष्मी के स्वागत के लिए होता है, जो धन, वैभव और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। इस दिन लक्ष्मी माता के साथ-साथ भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है, ताकि जीवन में ज्ञान, शांति और समृद्धि का वास हो। यह मान्यता है कि भगवान राम 14 वर्षों का वनवास और रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे, तो अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत के लिए दीप जलाए थे। इसलिए इस दिन को दीपों का पर्व भी कहा जाता है।

रात को दीप जलाने के पीछे मान्यता यह भी है कि अंधकार पर प्रकाश की जीत हो और हमारे जीवन में सकारात्मकता का संचार हो। लोग अपने घरों को दीपों, मोमबत्तियों, रंगोली और फूलों से सजाते हैं। आतिशबाजी की जाती है और मिठाइयां बांटी जाती हैं। यह दिन परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खुशियां मनाने का होता है।

4. गोवर्धन पूजा या अन्नकूट (चौथा दिन)

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दिवाली के चौथे दिन को गोवर्धन पूजा या अन्नकूट के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर इंद्र देव द्वारा लाई गई भारी बारिश से गोकुलवासियों को बचाया था।

इस दिन लोग गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाते हैं और पूजा करते हैं। इस पूजा में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और भगवान को भोग अर्पित किया जाता है। इसे अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है, जिसमें अनाज, सब्जियां, और मिठाइयां भगवान को चढ़ाई जाती हैं। गोवर्धन पूजा के साथ ही प्रकृति की पूजा का संदेश मिलता है और जीवन में संतुलन का महत्व बताया जाता है।

5. भाई दूज (पांचवां दिन)

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दिवाली के पाँचवें और अंतिम दिन को भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक है और रक्षाबंधन की तरह इस पर्व में भी भाई और बहन एक-दूसरे के प्रति अपने स्नेह और सम्मान को प्रकट करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने आए थे और यमुनाजी ने अपने भाई का स्वागत करते हुए लंबी उम्र की कामना की थी।

भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं और उनकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं। बदले में भाई अपनी बहनों की सुरक्षा का वचन देते हैं और उन्हें उपहार भी देते हैं। यह दिन भाइयों और बहनों के अटूट प्रेम, एक-दूसरे के प्रति सुरक्षा, और सद्भावना का प्रतीक है।

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