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जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं उन्हें अपने आस-पास के लोगों से उमीदें भी बढ़ने लगती है जिस कारण वो चाहते हैं कि अपने यंगर एज से वो ज़्यादा अच्छा काम कर सकें। ऐसे समय में बच्चों के अंदर मच्योरिटी और इंडिपेंडेंस भी बढ़ती है जिस कारण वो लोगों से ये एक्सपेक्ट करते हैं की उन्हें प्राइवेसी दी जाएगी। अक्सर पेरेंट्स को बच्चों की ये प्राइवेसी की डिमांड समझ में नहीं आती है और इसलिए वो इसका पालन नहीं करते हैं। लेकिन थोड़ी सी प्राइवेसी और थोड़ा सा स्पेस आपके बच्चों के डेवलपमेंट में बहुत बड़ा हेल्प कर सकता है। जानिए बच्चों को प्राइवेसी देने के ये 5 कारण:
किशोरावस्था में बच्चे प्यूबर्टी के कारण कई तरह के बॉडी चैंजेस से गुज़र रहे होते हैं और इसके कारण वो कई बार ज़रूरत से ज़्यादा इमोशनल भी हो सकते हैं। एक पैरेंट होने के नाते अगर आप उसकी प्राइवेसी को रेस्पेक्ट देंगे और उस हिसाब से ही उसको लाइफ में आगे गाइड करेंगे तो आप दोनों के बीच का ट्रस्ट लेवल ज़रूर बढ़ेगा।
ओवर प्रोटेक्टिवनेस की फीलिंग को अपने बच्चे के टीनएज इयर्स तक आते-आते काबू में करना बहुत ज़रूरी है वरना आप कब अपने बच्चे की लाइफ को कण्ट्रोल करने लगेंगे आपको पता भी नहीं चलेगा। इसलिए जब आप उनकी प्राइवेसी को भंग नहीं करेंगे तो वो अपने लिए खुद डिसिशन लेना सीखेंगे जो आगे उन्हें जीवन में बहुत हेल्प कर सकता है।
जब आप अपने बच्चे की प्राइवेसी को समझते हैं तो ना सिर्फ आप उसको लाइफ में स्पेस दे रहे हैं बल्कि आप उसके पूरे जनरेशन को समझने की भी कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में आप दोनों के बीच ऐज गैप भी कम हो सकता है। बच्चे अपनी प्राइवेसी को एन्जॉय करते हुए आपसे हर तरह की बात शेयर कर पाते हैं और इस कारण आप-दोनों अपने थॉट्स भी एक-दूसरे के सामने रखते हैं जो बहुत ज़रूरी है।
जब आप बच्चे को प्राइवेसी देते हैं तो इसका मतलब ही है कि आप उस पर भरोसा करते हैं। ये भरोसा ही बच्चों के अंदर आत्मविश्वास बढ़ाता है और उन्हें निडर बनने की हिम्मत देता है। जो बच्चे आत्मविश्वास से भरपूर होते हैं उनमें लीडरशिप क्वालिटीज़ भी जल्दी आती है और समाज को लेकर उनकी सोच भी ज़्यादा अक्सेप्टिंग होती है।
अगर आप अपने बच्चे की लाइफ को कण्ट्रोल करने की कोशिश ख़त्म नहीं करेंगे तो वो आपसे और भी ज़्यादा बातें छुपाने लगते हैं और ऐसे में आपका भरोसा भी तोड़ सकते हैं। कभी-कभी अगर आपको बहुत ज़रूरी लगे तो आप उनकी प्राइवेसी को इनवेड कर सकते हैं लेकिन उसके पीछे की अपनी वजह को भी अपने बच्चों से ज़रूर एक्सप्लेन करें।
1. प्राइवेसी देने से बढ़ता है ट्रस्ट लेवल
किशोरावस्था में बच्चे प्यूबर्टी के कारण कई तरह के बॉडी चैंजेस से गुज़र रहे होते हैं और इसके कारण वो कई बार ज़रूरत से ज़्यादा इमोशनल भी हो सकते हैं। एक पैरेंट होने के नाते अगर आप उसकी प्राइवेसी को रेस्पेक्ट देंगे और उस हिसाब से ही उसको लाइफ में आगे गाइड करेंगे तो आप दोनों के बीच का ट्रस्ट लेवल ज़रूर बढ़ेगा।
2. ओवर प्रोटेक्टिवनेस होगी ख़त्म
ओवर प्रोटेक्टिवनेस की फीलिंग को अपने बच्चे के टीनएज इयर्स तक आते-आते काबू में करना बहुत ज़रूरी है वरना आप कब अपने बच्चे की लाइफ को कण्ट्रोल करने लगेंगे आपको पता भी नहीं चलेगा। इसलिए जब आप उनकी प्राइवेसी को भंग नहीं करेंगे तो वो अपने लिए खुद डिसिशन लेना सीखेंगे जो आगे उन्हें जीवन में बहुत हेल्प कर सकता है।
3. ऐज गैप होगा कम
जब आप अपने बच्चे की प्राइवेसी को समझते हैं तो ना सिर्फ आप उसको लाइफ में स्पेस दे रहे हैं बल्कि आप उसके पूरे जनरेशन को समझने की भी कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में आप दोनों के बीच ऐज गैप भी कम हो सकता है। बच्चे अपनी प्राइवेसी को एन्जॉय करते हुए आपसे हर तरह की बात शेयर कर पाते हैं और इस कारण आप-दोनों अपने थॉट्स भी एक-दूसरे के सामने रखते हैं जो बहुत ज़रूरी है।
4. लीडरशिप क्वालिटीज़ का होगा विकास
जब आप बच्चे को प्राइवेसी देते हैं तो इसका मतलब ही है कि आप उस पर भरोसा करते हैं। ये भरोसा ही बच्चों के अंदर आत्मविश्वास बढ़ाता है और उन्हें निडर बनने की हिम्मत देता है। जो बच्चे आत्मविश्वास से भरपूर होते हैं उनमें लीडरशिप क्वालिटीज़ भी जल्दी आती है और समाज को लेकर उनकी सोच भी ज़्यादा अक्सेप्टिंग होती है।
5. आपका भरोसा टूटने के चान्सेस कम होते हैं
अगर आप अपने बच्चे की लाइफ को कण्ट्रोल करने की कोशिश ख़त्म नहीं करेंगे तो वो आपसे और भी ज़्यादा बातें छुपाने लगते हैं और ऐसे में आपका भरोसा भी तोड़ सकते हैं। कभी-कभी अगर आपको बहुत ज़रूरी लगे तो आप उनकी प्राइवेसी को इनवेड कर सकते हैं लेकिन उसके पीछे की अपनी वजह को भी अपने बच्चों से ज़रूर एक्सप्लेन करें।