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आखिर क्यों बेटियां घर खर्च में अपना योगदान नहीं दे सकती?

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Swati Bundela
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आज के दौर में महिलाएं शिक्षा अर्जित कर रही है और हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है. अपने कौशल से वे धन कमाने में सक्षम है. " पर बेटियों से कोई पैसे लेता है क्या?" और अगर कोई लेना भी चाहे, तो कौन, घर वाले या ससुराल वाले?

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ऐसे सवालों से कितने ही लोग डर जाते हैं. वे बेटियों की तरक्की पर नाज करते हैं, किंतु उनकी कमाई को ना लेना या उस पैसे को उनके लिए ही जोड़ना सही समझते हैं. शादी से पहले अगर बेटी घर खर्च में योगदान दें तो समझ भी आता है, पर शादी के बाद वही कमाई उसके पति और ससुराल के लिए कैसे हो जाती हैं?



माता-पिता अपनी बेटियों की शिक्षा के लिए खून-पसीना बहा कर धन जमा करते हैं इसलिए मेरे अनुसार, उनकी कमाई पर सबसे पहला हक उनके माता-पिता का ही होता है. कई दशक पहले बेटियां आर्थिक रूप से परिवार में हिस्सेदारी नहीं निभा पाती थी क्योंकि उनको परंपराओं के नाम पर घर से बाहर जाना स्वीकारा नहीं था, शिक्षा अर्जित करना तो दूर की बात थी. पर अब जमाना बदल रहा है, और धीरे ही सही लोगों की सोच भी. महिला शिक्षा की चुनौती को काफी हद तक पार करने में हम सफल हुए हैं, और अगली चुनौती है उस शिक्षा का जीवन जीने में उपयोग. जब पैसा किसी व्यक्ति का लिंग नहीं देखती तो घर खर्च उठाने की जिम्मेदारी लिंग पर आधारित क्यों ?
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मैं यही कहना चाहूंगी कि एक बेटी को आर्थिक रूप से अपने परिवार को सहारा देने के लिए " बेटा" बनने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है.



शिक्षा पर धन खर्च करना किसी भी अन्य निवेश की तरह है. आखिर बेटी को मनचाहे मुकाम पर पहुंचाने का श्रेय माता-पिता के सहयोग तथा उनके कारण प्राप्त शिक्षा का होता है, तो भला वे ही क्यों उसके प्रतिफल से वंचित रह जाए ? मेरे अनुसार बेटी की कमाई का सबसे पहला हिस्सा माता पिता के लिए और उसके बाद घर खर्च के लिए होना चाहिए. जब वे बेटी के अतीत का हिस्सा है तो उसके कारण बने भविष्य का भी हिस्सा है.
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मेरे अनुसार बेटी की कमाई का सबसे पहला हिस्सा माता पिता के लिए और उसके बाद घर खर्च के लिए होना चाहिए. जब वे बेटी के अतीत का हिस्सा है तो उसके कारण बने भविष्य का भी हिस्सा है.



जब शादी के बाद भी बेटा अपने परिवार का घर खर्च उठाता है, तो बेटी का घर खर्च में योगदान देना और शादी के बाद किस घर में देना सोच-विचार का मुद्दा कैसे बन जाता है? यह केवल उस महिला का निर्णय होता है कि वह अपनी मेहनत की कमाई को कैसे और कहां खर्च करना चाहती है. शादी के बाद भी अपने माता-पिता को आर्थिक सहयोग प्रदान करना हर बेटी की प्राथमिक जिम्मेदारी है.



बेटियां घर खर्च में अपना योगदान दे सकती है क्योंकि वह ऐसा करने में पूर्णतह सक्षम है. और अपनी जिम्मेदारी उठाने के लिए उन्हें किसी से पूछने की जरूरत नहीं है. समाज उस बेटे का तिरस्कार करता है जो अपने माता पिता को आर्थिक सहयोग नहीं देता, और दूसरी तरफ, बेटी से आर्थिक सहयोग की कोई उम्मीद नहीं करता. आखिर में मैं यही कहना चाहूंगी कि एक बेटी को आर्थिक रूप से अपने परिवार को सहारा देने के लिए " बेटा" बनने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है.
#फेमिनिज्म
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